अब और कितने पतन की और जायेंगे हम /

खुर्शीद सही कहते हैं : "इस हमाम में तो सब नंगे हैं "|
  क्या नेता , क्या अभिनेता , क्या क्रिकेट खिलाडी , क्या दर्शक , क्या साधू बाबा , और क्या तांत्रिक योगी बाबा , क्या जज और क्या मुजरिम , क्या पत्रकार , और क्या भावी प्रधानमंत्री, और क्या आम आदमी  -- यह भारत नमक देश एक ऐसी सभ्यता बन गयी है जो एक 'नंगा हमाम' की तरह ही है | मानो की जैसे भारतीय सभ्यता ख़त्म ही हो चुकी हो |
   यह वो देश नहीं रह गया है जहाँ सभ्यता का विकास यहाँ की कला, विज्ञानं ,सत्य . धर्म और न्याय की खोज को एक शिखर की और अग्रसर करे , जहाँ सभ्यता विक्सित हो और प्रफ्फुलित हो| यह पतन और खात्मे की कगार पर खडी एक सभ्यता है जो की फिर किसी विदेशी ताकत के आधीन होने के लिए तत्पर है |यहाँ लोग सिर्फ हमाम में ही नंगे नहीं होते, अब तो महफिलों और शासन के गलियारों में भी नंगे लोग पहुच चुके हैं| यहाँ जन-विश्वास पारदर्शिता के द्वारा नहीं , गोपनीयता में दूंढा जाता है | यहाँ शक्ति ने धर्म को अपने आधीन कर लिया है | यह धर्म का अर्थ सत्य और न्याय से नहीं , शक्ति के उपयोग से तय किया जाता है | लोकप्रियता का अर्थ फिल्मी सितारा की प्रसिद्धि हो गया है , और फिल्मी प्रसिद्धि से प्राप्त शासन शक्ति से देश चलाया जाता है |  जागृति का अर्थ हो गया है विज्ञापन प्रचार , और विज्ञापन प्रचार में कलात्मक स्वतंत्रता  होती है जो की कल्पनाओं को जीवंत करने का माधयम है | अंत में विज्ञापन प्रचार से एक काल्पनिक जगत में जनता की "जागृती " कर दी जाती है , अर्थात जनता को एक सामूहिक मुर्खता में प्रक्षेपित कर दिया जाता है |
   यहाँ अन्ना और अरविन्द भरे हमाम में जनता को "भटकाने " का काम साध रहे होते है , क्योंकि यह पर्सर्शिता की मान करते है | महफ़िलो के नंगे घूम रहे इंसानों को पारदर्शिता में हमाम की नन्गता का भय सताता है|

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