उत्तर भारत की छात्र राजनीति के विषय में

छात्र राजनीति पर एक और गंभीर बात है, जो की हमें "sir" या फ़िर "हाँसिल" जैसी फिल्मों से देखने को मिलती है।
वह ये कि बहोत बड़ी आबादी राजनीति में असल में दिलचस्पी के नाम पर नशा कर रही होती है !
राजनीति में दिलचस्पी एक प्रकार का नशा होता है, यह जानकारी बहोत कम लोगों को है।
राजनीति करने में इस किस्म की kick यानी नशे का आनंद का प्रभाव मिलता है मस्तिष्क को, और जो की युवाओं में बहोत पसंद किया जाता है -पुरुष और महिलाएं, दोनों ही।
अपने प्रतिद्वंदी को तमाम तिकड़मों में हराने की कोशिश करते रहने में कुछ वैसा ही नशा मिलता है जैसा की सत्यजीत रे की फ़िल्म "शतरंज के खिलाड़ी" में दोनों नवाबों को शतरंज खेलने से मिलता था।
यह वो आवश्यक आत्मज्ञान है, जो की लोगों के चिंतन से विलुप्त है। ये वो लोग हैं, बहोत बड़ी संख्या में, जो राजनीति को समाज और प्रशासन के साधन की तौर पर नही देखते-बूझते हैं , आर्थिक विकास को प्राप्त करने के लिए, या फिर की समाज के आसपास उचित नैतिकता और अध्यात्म का प्रभाव क्षेत्र निर्मित करने के लिए, उचित उदाहरण प्रस्तुत करके।
यह आबादी विश्वविद्यालयों के युवाओं के भीतर बड़ी संख्या में पायी जाती है, जहां वह पढ़ाई-लिखाई की साधना करने के स्थान पर वास्तव में "राजनीति का नशा" भोग कर रहे होते हैं।

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