समाचार लेखन में न्याय के आधारभूत सिद्धांतों की आवश्यकता

US never warned India about Devyani Khobragade’s arrest

Read more at: http://www.firstpost.com/blogs/us-never-warned-india-about-devyani-khobragades-arrest-1391935.html?utm_source=ref_article

प्रमाण के सिद्धांतों में यह विषय सर्व-स्वीकृत रहा है की अत्यंत सूक्षमता की हद्दों तक जाने वाले प्रमाण की बाध्यता नहीं रखी जाएगी | यदि किसी व्यक्ति ने किसी को बन्दूक की गोली से मार कर हत्या करी है -- तब इस हत्या के प्रमाण में हत्या के मंसूबे, हथियार और हत्या करने वाले वाले संदेह्क का हथियार से सम्बन्ध -- इतना अपने आप में पूर्ण प्रमाण माना जायेगा की हत्या किस व्यक्ति ने करी है | बचाव पक्ष के अभिवाक्ताओं को यह प्रमाण माँगने का हक नहीं होगा की यदि "रमेश ने गोली चलाइये भी, तब भी--, चलिए मान लिया की बन्दूक पर रमेश की उँगलियों के निशान भी मिले, रमेश के पास वजह भी थी , --तब भी प्रमाणित करिए की मोहन की मृत्यु उसी गोली से हुयी जिसे रमेश ने चलाया था |"
    प्रमाण के लिए यह कभी भी आवश्यक नहीं माना जाता है की "चश्मदीद होना चाहिए जिसने देखा की रमेश ने ही बन्दूक का घोडा दबाया था, और यह भी देखा की गोली अपने निशाने पर मोहन को ही लगी थी|" सूक्षमता और अत्यंत दीर्घता से पैदा किया जा सकने वाले भ्रमों से बचना प्रमाणिक क्रिया का ही एक हिस्सा है | अत्यंत सूक्ष्मता का प्रमाण, या अत्यंत दीर्घता का प्रमाण असल में न्याय को भंग कर देने की साज़िश होते हैं |

बन्दूक से निकलता धुआं प्रमाण में स्वीकृत होता है | गोली को बन्दूक की नाल से निकल कर निशाने पर सटीकता से लगते देखने वाले चश्मदीद की आवश्यकता नहीं होती है , क्योंकि इस हद तक प्रमाण उपलब्ध होना संभव ही नहीं होता है |

न्यायायिक विषयों पर समाचार लेखन करने वालों को न्याय विषय की मूलभूत सिद्धांतों की जानकारी होनी ही चाहिए | अब साथ में सलग्न समाचार विषय को देखिया | यह भारतीय राजदूत सम्बंधित विषय से सम्बद्ध समाचार है | समाचार लेखक का मानना है की चुकी अमेरिकी राज्य प्रशासनिक विभाग ने अपने पत्राचार में सटीकता से यह नहीं लिखा था की वह भारतीय राजदूत को आने वाले दिनों में हिरासत में लेंगे , इसलिए यह माना जाना चाहिए की अमेरिकी प्रशासनिक विभाग ने भारतीय दूतावास को उनके द्वारा करी जा रही भारतीय राजदूत की जांच की जानकारी उपलब्ध *नहीं* कराई थी |

इस पूरे प्रकरण में भारतीय मीडिया , भारतीय न्यायलय और विदेश मंत्रालय --बड़ा संदेहास्पद कर्म कर रहे दिख रहे हैं | पीडिता गृह-सहायक को तो भारतीय भी नहीं माना जा रहा है |

Comments

Popular posts from this blog

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार