syncreticism और विशेषण उपनाम - धार्मिक पंथ

हिन्दू प्रथाओं में आपसी विवाद के अंश बहुतायत है।इसे अंग्रेजी भाषा में syncreticism कहते हैं। मेरा मानना है की पश्चिमी विचारकों का हिन्दू पंथ को 'धार्मिक पंथ' कहने का आशय सारा यही नहीं था कि यहाँ कृष्ण और उनके भगवद् गीता में किसी धर्म नाम की वस्तु की शिक्षा दी गयी है।
पश्चिमी दार्शनिकों के अनुसार धर्म का अर्थ सिर्फ मर्यादित आचरण, रीत रिवाज़ का पालन, वगैरह तक सिमित नहीं था। उन्होंने सफलता से हिन्दू प्रथाओं में syncreticism को तलाश लिया था, और इसलिए वह अचरज में थे कि आखिर इतने सारे अंतर्कलह प्रथाओं के बावज़ूद यह सब समुदाये एक सह अस्तित्व में कैसे कायम हैं। वह सोच रहे थे की यह समुदाये कैसे तय करते है की कब आपसी समानताओं को विशिष्टता देना है और कब अन्तरकलहि भिन्नताओं को । इसका उत्तर उन्होंने तलाश किया था हिन्दू प्रथाओं में एक विशिष्ट प्रथा में -- निरंतर न्याय करते रहने की विधि में। और जिसको की हिन्दू पंथ में फिर से यही "धर्म" केह कर धर्म के विविध अर्थो में पुकारा जाता है।
बस इसीलिए पश्चिमी विचारकों ने हिन्दू भूमि पर चलन में प्रथाओं को विशेषण नाम दे दिया - धार्मिक पंथ।

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