मुन्नार में मुद्रा बनाने की मशीन

केरल के मुन्नार जिले में पहाड़ी, ठण्ड क्षेत्र में चाय के बागान है। वहां आने वाले सैलानियों के लिए टाटा कंपनी ने एक चाय संग्रहालय (tea Museum) बनाया है। इस म्यूजियम के अंदर चाय की औद्योगिक स्तर पर पैदावार से सम्बंधित ऐतिहासिक विशिष्ट वस्तुओं को संरक्षित करके प्रदर्शित किया गया है।
इन्हीं वस्तुओं के बीच चाय उद्योग के आरंभिक दौर की एक आवश्यक उपकरण है मुद्रा सिक्का बनाने के उपकरण , Coinage Machine. निकट में प्रदर्शित अभिलेख में इस उपकरण की ऐतिहासिक विशिष्ट का ब्यौरा दर्ज़ है।
ब्यौरा बताता है की चाय के पौधों की उपयोगिता तो इंसान बहोत पहले से जानता था, मगर उद्योग स्तर पर पैदावार नहीं होती थी। चाय की फसल चीन और भारत में कम से कम तीन हज़ार सालों पूर्व से हो रही है।अंग्रेज़ सौदागर अपने नाविक जहाजों से भारत केरल के रस्ते ही पहुंचे थे और सबसे प्रथम इन्होंने यहाँ केरल में पाये जाने वाले मसालों का व्यापार शुरू किया था। चाय भी इन्हीं मसालों में आती है। और पश्चिम देशों में बहोत लोकप्रिय होने लगी थी। इसलिए इसकी बाजार मांग पूरी करने के लिए इसकी पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता थी। तब औद्योगिक स्तर पर पैदावार के लिए अंग्रेजों ने आवश्यक संसाधनों की भी मुन्नार में नींव डाली। इन संसाधनों में रेल गाड़ी भी शामिल है, पतली narrow गेज पहाड़ी क्षेत्र वाली, जिससे चाय की माल ढुवाई करी जाती थी। म्यूजियम में उन रेलगाड़ी के पहिये भी नुमाईश पर रखे हैं।
चाय उद्योग में मुद्रा सिक्के छापने वाली मशीन का सामाजिक आर्थीक महत्त्व है। उस आरंभिक दौर में मुन्नार के लोगों और समाज में मुद्रा नामक वस्तु का उपयोग नहीं था। इसके चलते चाय कंपनी को मज़दूरों को स्थायी तौर पर मज़दूरी के लिए रोकने का कोई जरिया ही नहीं था। भई, श्रमिक आखिर किस लोभ में वहां निरंतर श्रम करेगा ? इसका उपाय निकला की चाय कंपनी ने अपने खुद के मुद्रा बना कर मज़दूरों को श्रमिकी में देना आरम्भ किया और साथ में यह वादा किया की इस मुद्रा के बदले वह कंपनी की कोई भी व्यावसायिक उत्पाद 'आपसी आदान-प्रदान' की जगह 'खरीद और बेच' सकेंगे।
तो इस प्रकार वहां के समाज में मुद्रा की नीव डली और आधुनिक आर्थिक व्यवस्था आरम्भ हुई।

उद्योग स्तर उत्पाद से होते हुए हमारा समाज आज खपतवाद तक आ गया है, और विशाल स्तर निर्माण से आगे बढ़ कर हम आज प्राकृति संसाधन विनाशक स्तर पर निर्माण करने लग गए है। यह सब आरम्भ हुई व्यावसायिकता के प्रसार से, और व्यावसायिकता का आरम्भ हुआ था मुद्रा के मानव समाज में प्रवेश से।

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