राजनीति की भ्रमकारी भाषा

हमारे यहाँ शान्ति की भाषा में भी एक किस्म का भ्रस्टाचार छिपा हुआ है / जब भी किसी विवाद के निष्कर्ष में यह कहा जाता है की "हमे सब को साथ ले कर चलना है , सभी धर्मो, सभी समुदायों, सभी क्षेत्रों को ", हम अपनी संस्कृति में धर्मं और इमानदारी से भी समझौता करना प्रवाहित करवा रहे होते हैं / राष्ट्रीय एकता, शांति, क़ानून-व्यवस्था की आड़ में विपक्ष अगर सत्तारुड पार्टी के  गलत कर्मो को उजागर करना छोड़ देगी तो प्रजातंत्र कैसा चलेगा? कैसे सत्य की तलाश होगी और एक सच्ची एक-मतत्ता से आने वाली शान्ति व्यवस्था प्राप्त होगी / 
पिचले दशकों में पेशे या शिक्षा से वकील राजनीतज्ञों ने देश में अपनी "न्याय" की समझ से इंसान की "निर्णय" की समझ को बहुत अघात किया है / सभी मनुष्यों में बाल्यकाल से ही एक सही , उचित मनोभाव में पालन होने पर एक आत्मा का निवास स्वयं ही होता है / निर्णय के योग्यता उस आत्मा (सेंस ऑफ़ जस्टिस, conscience ) से खुद ही आती है / जिनमे इसका आभाव होता है वह वैज्ञानिक दृष्टि एक "शोशियोपेथ " या फिर "साईंकोपेथ" कहलातें हैं / आगे, अति विक्सित न्याय भी इसी भौतिक न्याय की समझ के धरातल पर क्रमिक विकास करता हुआ आगे बढता है / मगर दर्शन में छिछले, परन्तु विधि ज्ञान में थोड़े "पढ़े लिखे " वकील-राजनीतज्ञों ने कोर्ट की चारदीवारों में न्याय के तरल तदेव क्रमिक-विकासशील स्वाभाव को अलग-अलग दृश्य बिंदु में भेज कर आभास देते हैं की न्याय कितना तरल और असाधारण है / सामान्यतः सभी मुकद्दमे "पब्लिक ट्रायल " होते हैं , मगर ज्यादातर बार मुकद्दमों की बहस और फेसलों की वजह की जानकारी आम जनता में कम ही आती थी / नयी इन्टरनेट प्रेरित व्यवस्था में अब मामले वकीलों की हाथ में नहीं रह गयी है / आज "मीडिया ट्रायल" आम हो गया है / न्याय दृष्टि  में "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" में यह कोई गलत विकास नहीं हुआ है / अब 'न्याय ' और 'निर्णय' में भ्रम उत्पन्न  करना आसान नहीं रह गया है / ख़ास तौर पर तब जब मीडिया ट्रायल इन्टरनेट पर मिली जन-प्रकाशन अथवा जन-प्रसारण की क्षमता से ताल मेल रख कर बने तो  /   तो अब वकीलों और राजनीतिज्ञों को न्याय के साथ छेड़-खानी आसान नहीं रह गयी है / अब जा कर कितनो ही राजनीतिज्ञ भ्रम स्पष्टता की ओर, एक नए प्रकाश में आ रहे है और नष्ट हो रहे हैं / शान्ति के व्यक्तव्य में समझौते के सन्देश छिपाना आसान नहीं होगा /

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