अज्ञातकृत अभिव्यक्ति का अधिकार
http://itlaw.wikia.com/wiki/Anonymous_speech
Right to Anonymous free speech : अज्ञातकृत हो कर अपने विचारों की व्यक्त करना भी प्रजातंत्र में एक प्रकार का संवेधानिक अधिकार है / पुराने समय में जब राजा-महाराजा के काल हुआ करता था , राजा को पसंद ना आने वाले विचार पर व्यक्ति को मृत्यु दंड दे दिया जाता था/ ऐसे में आज को प्रजन्तान्त्रिक युग की नीव डालने में कितने ही लागों ने अज्ञातकृत होने का खतरा लेते हुए भी अपने विचारों को व्यक्त किया, एक आम राय तैयार करवाई और तब कहीं किसी क्रांति में तख्तापलट कर प्रजातंत्र स्थापित किया / इन बातों में यह समझना जरूरी है की आज के स्थापित प्रजातंत्र में सरकारें मतदान के द्वारा चुनी जाती है , मगर प्रजातंत्र खुद किसी मतदान से नहीं स्थापित होते हैं, उसके लिए क्रांति करनी पड़ती है / ऐसी ही समझ के साथ स्थापित प्रजन्तंत्र में अज्ञातकृत हो कर विचारो को व्यक्त करना भी एक अधिकार माना गया है / मगर स्थापित प्रजातंत्र में इसकी कुछ सीमा भी तये करी गयी है / सीमा बस इतनी है की अज्ञातकृत हो कर कहे जा रहे विचार या आरोप पर कार्यवाही के लिए अज्ञातकृत व्यक्ति की पहचान को उजागर करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा है, और आरोप की स्थापन के लिए बाकी अन्य सभी रास्ते तलाशे जा चुके हों /
ज़ाहिर बात है की ऐसे में दूसरे के पास भी अधिकार है की वह अज्ञातकृत आरोप पर अपनी प्रतिक्रिया ना करे / यह सही है, हालाँकि इसकी सीमा खुद-ब-खुद 'अभिव्यति की स्वतंत्रता' के एक ख़ास प्रभाव से तय हो जाती है / अगर अज्ञातकृत हो कर दिए गए प्रमाण न्याय में मान्य हैं तो प्रभावित व्यक्ति को उन अज्ञातकृत आरोपों से स्वयं के बचाव में अपने प्रमाण रखने ही पड़ेंगे / वह आरोप को सिद्ध करने के लिए अज्ञात कृत व्यक्ति की पहचान ना होने से न्यायपालिका में बचाव नहीं ले सकता , ना ही अज्ञात कृत की पहचान उजागर करने की मांग कर सकता है , और ना ही चुनौती दे सकता है की, 'अगर अज्ञातकृत में हिम्मत है तो सामने आ कर आरोप लगाये ' /
न्याय में अभिव्यक्ति को मौलिक अधिकार माना गया है , और मौन को भी अधिकार का दर्जा प्राप्त है / मगर अभिवक्ति और मौन में एक अंतर है , की अभिव्यक्ति को न्यायपालिका किसी भी आदेश से सीमति नहीं कर सकती हैं , मगर मौन को तोड़ने का आदेश देने का अधिकार ज़रूर न्यायपालिका के पास है / इसे कोर्ट का Subpeona अभिव्यक्ति अधिकार कह कर पुकारा जाता है / जब किसी मुकद्दमे में मुकद्दमा आगे बढाने का कोई अन्य तरीका ना बचा हो सिवाए की किसी शम्मलित व्यक्ति जिसने मौन रहने के अधिकार का प्रयोग लिया हो और उसकी चुप्पी के टूटे बिना आगे की छानबीन संभव ना हो , तब कोर्ट Subpeona उस व्यक्ति को सभी सम्बंधित जानकारी व्यक्त करने पर विवश कर सकती है /
Right to Anonymous free speech : अज्ञातकृत हो कर अपने विचारों की व्यक्त करना भी प्रजातंत्र में एक प्रकार का संवेधानिक अधिकार है / पुराने समय में जब राजा-महाराजा के काल हुआ करता था , राजा को पसंद ना आने वाले विचार पर व्यक्ति को मृत्यु दंड दे दिया जाता था/ ऐसे में आज को प्रजन्तान्त्रिक युग की नीव डालने में कितने ही लागों ने अज्ञातकृत होने का खतरा लेते हुए भी अपने विचारों को व्यक्त किया, एक आम राय तैयार करवाई और तब कहीं किसी क्रांति में तख्तापलट कर प्रजातंत्र स्थापित किया / इन बातों में यह समझना जरूरी है की आज के स्थापित प्रजातंत्र में सरकारें मतदान के द्वारा चुनी जाती है , मगर प्रजातंत्र खुद किसी मतदान से नहीं स्थापित होते हैं, उसके लिए क्रांति करनी पड़ती है / ऐसी ही समझ के साथ स्थापित प्रजन्तंत्र में अज्ञातकृत हो कर विचारो को व्यक्त करना भी एक अधिकार माना गया है / मगर स्थापित प्रजातंत्र में इसकी कुछ सीमा भी तये करी गयी है / सीमा बस इतनी है की अज्ञातकृत हो कर कहे जा रहे विचार या आरोप पर कार्यवाही के लिए अज्ञातकृत व्यक्ति की पहचान को उजागर करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा है, और आरोप की स्थापन के लिए बाकी अन्य सभी रास्ते तलाशे जा चुके हों /
ज़ाहिर बात है की ऐसे में दूसरे के पास भी अधिकार है की वह अज्ञातकृत आरोप पर अपनी प्रतिक्रिया ना करे / यह सही है, हालाँकि इसकी सीमा खुद-ब-खुद 'अभिव्यति की स्वतंत्रता' के एक ख़ास प्रभाव से तय हो जाती है / अगर अज्ञातकृत हो कर दिए गए प्रमाण न्याय में मान्य हैं तो प्रभावित व्यक्ति को उन अज्ञातकृत आरोपों से स्वयं के बचाव में अपने प्रमाण रखने ही पड़ेंगे / वह आरोप को सिद्ध करने के लिए अज्ञात कृत व्यक्ति की पहचान ना होने से न्यायपालिका में बचाव नहीं ले सकता , ना ही अज्ञात कृत की पहचान उजागर करने की मांग कर सकता है , और ना ही चुनौती दे सकता है की, 'अगर अज्ञातकृत में हिम्मत है तो सामने आ कर आरोप लगाये ' /
न्याय में अभिव्यक्ति को मौलिक अधिकार माना गया है , और मौन को भी अधिकार का दर्जा प्राप्त है / मगर अभिवक्ति और मौन में एक अंतर है , की अभिव्यक्ति को न्यायपालिका किसी भी आदेश से सीमति नहीं कर सकती हैं , मगर मौन को तोड़ने का आदेश देने का अधिकार ज़रूर न्यायपालिका के पास है / इसे कोर्ट का Subpeona अभिव्यक्ति अधिकार कह कर पुकारा जाता है / जब किसी मुकद्दमे में मुकद्दमा आगे बढाने का कोई अन्य तरीका ना बचा हो सिवाए की किसी शम्मलित व्यक्ति जिसने मौन रहने के अधिकार का प्रयोग लिया हो और उसकी चुप्पी के टूटे बिना आगे की छानबीन संभव ना हो , तब कोर्ट Subpeona उस व्यक्ति को सभी सम्बंधित जानकारी व्यक्त करने पर विवश कर सकती है /
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