भारतीय प्रजातंत्र ...क्या यह उदारवादी तानाशाही का भ्रमकारी स्वरुप है ?
उदारवादी तानाशाही (benevolent dictatorship ) राजनीति शास्त्र में चिन्हित एक किस्म की शासन व्यवस्था है / इसकी एक खासित्यत यह है की यह प्रजातंत्र से मिलती-जुलती होने की वजह से प्रजातंत्र से भ्रमित हो सकती है / एक और शाशन प्रणाली , प्रबुद्ध निरंकुश राजशाही (enlightened absolutism ) , की भी यह खासियत है की वह प्रजातंत्र से भ्रमित करी जा सकती है /
तानाशाही में ज्यादातर तो तानाशाह एक बहोत की क्रूर , निर्दयी , सिर्फ अपनी मर्ज़ी से चलने वाला शासक होता है / मगर उदारवादी तानाशाही में शासक जनता पर जुल्म ढाने में व्यसनित नहीं होता बल्कि उनको उनके गरीब हाल पर जीवन-यापन के लिए छोड़ देता है / यदा कदा उनकी ज़िन्दगी में कुछ ख़ुशी के अवसर भी प्रदान करवाता है, और कुछ एक व्यवस्था से उनको जीवन में आगे बड़ने की उम्मीद भी दिलवाता है / इससे जनता में ना-उमीदगी नहीं फैलती और वह कभी भी शासक के विरुद्ध विद्रोह के लिए एकमत हो कर खड़े नहीं होते / शासक की तानाशाही अपनी रहा यूँ ही चलती रहती है, और जनता अलग अपनी राह पर , अपना जीवन सुधारने के संघर्ष में आजीवन व्यस्त रहती है / प्रजातंत्र से उदारवादी तानाशाही में अंतर यह है की प्रजातंत्र में जनता चुकी टैक्स देती है, वह सरकार से हिसाब मांग सकती है, और सरकार को समाज के सभी व्यक्तियों को एक न्यूनतम गरीबी रेखा से ऊपर रखने का कर्त्तव्य होता है/ यानी भोजन, पानी, मकान और जीवन की भौतिक सुविधाए हर एक को मिलनी ही चाहिए/ भिकारी, अनाथ, विकृत, अपाहिज , इत्यादि वर्ग भी एकदम तयशुदा रूप में बुनियादी ज़रूरतों से महरूम नहीं हो सकते / यह 'इकनोमिक लिबरेशन' की व्यवस्था है, जिसने हर व्यक्ति बिना किसी भय के कोई भी विचार रख सके और व्यक्त भी कर सके / प्रजातंत्र में दरिद्र कोई नहीं होता, क्योंकि एक न्यूनतम आर्थिक स्थिति पर शासन हर व्यक्ति की बुनियादी सुविधा प्रदम करवाएगा ही / हाँ कोई अधिक धनवान हो सकते है, कोई कम धनवान / यही कारण है की कए सारे प्रजातंत्र देशो को एक विपरीत, फिरकी करती हुई बुद्धि में पूंजीवादी देश भी समझा जाता है /
इसके विपरीत उदारवादी तानाशाही में उम्मीद की रौशनी तो गरीब , विकलांग, भिकारी , सभी को दी जाती है , मगर यह सुनिश्चित नहीं होता है की हर एक को जीवन की बुनियादी सुविधाएं भी मिलेगी की नहीं / कुछ एक माध्यम से, जैसे लाटरी, या किसी क्विज के माध्यम से अचानक , रातों-रात धन कमाने का अवसर हर एक को मिलता है / आगे आपकी किस्मत / यानी , जनता में एक भय हर पल बना रहता है की कब किस्मत बिफर गयी और फिर से दरिद्रगी में आ जाये, जहाँ वह भी वैसे ही जीवन जिये जैसे राह में , या स्टेशन पर दिखने वाले भिकारी / यह भय उन्हें हमेशा अपने तानाशाह के सम्मान में नतमस्तक करके रखता है की सिर्फ उस "दयालु" शासक की वजह से ही उन्हें जीवन में यह मौका मिला की वह किसी भिकारी की तरह बदतर जीवन नहीं जी रहे हैं / ऐसे में हर प्रकार के विचार रखने में मानसिक तौर पर पूर्ण स्वतंत्र नहीं होते, ख़ास तौर पर वह विचार जो उनके "मालिक " या "राजा" को कोई असुविधा दें /
कभी-कभी तानाशाह कोई एक ख़ास व्यक्ति ना हो कर किसी चुनावी व्यवस्था से आने वाले एक या दो ख़ास गुट के लोग हो जाते हैं / तब उदारवादी तानाशाही , उदारवादी कुलीनशाही बन जाती है, और प्रजातंत्र से और अधिक भ्रमित करने वाली व्यवस्था बन जाती है, क्योंकि मतदान की व्यवस्था में जनता को लगता है की सरकार को आखिर वह ही चुन रहे हैं /
तानाशाही में ज्यादातर तो तानाशाह एक बहोत की क्रूर , निर्दयी , सिर्फ अपनी मर्ज़ी से चलने वाला शासक होता है / मगर उदारवादी तानाशाही में शासक जनता पर जुल्म ढाने में व्यसनित नहीं होता बल्कि उनको उनके गरीब हाल पर जीवन-यापन के लिए छोड़ देता है / यदा कदा उनकी ज़िन्दगी में कुछ ख़ुशी के अवसर भी प्रदान करवाता है, और कुछ एक व्यवस्था से उनको जीवन में आगे बड़ने की उम्मीद भी दिलवाता है / इससे जनता में ना-उमीदगी नहीं फैलती और वह कभी भी शासक के विरुद्ध विद्रोह के लिए एकमत हो कर खड़े नहीं होते / शासक की तानाशाही अपनी रहा यूँ ही चलती रहती है, और जनता अलग अपनी राह पर , अपना जीवन सुधारने के संघर्ष में आजीवन व्यस्त रहती है / प्रजातंत्र से उदारवादी तानाशाही में अंतर यह है की प्रजातंत्र में जनता चुकी टैक्स देती है, वह सरकार से हिसाब मांग सकती है, और सरकार को समाज के सभी व्यक्तियों को एक न्यूनतम गरीबी रेखा से ऊपर रखने का कर्त्तव्य होता है/ यानी भोजन, पानी, मकान और जीवन की भौतिक सुविधाए हर एक को मिलनी ही चाहिए/ भिकारी, अनाथ, विकृत, अपाहिज , इत्यादि वर्ग भी एकदम तयशुदा रूप में बुनियादी ज़रूरतों से महरूम नहीं हो सकते / यह 'इकनोमिक लिबरेशन' की व्यवस्था है, जिसने हर व्यक्ति बिना किसी भय के कोई भी विचार रख सके और व्यक्त भी कर सके / प्रजातंत्र में दरिद्र कोई नहीं होता, क्योंकि एक न्यूनतम आर्थिक स्थिति पर शासन हर व्यक्ति की बुनियादी सुविधा प्रदम करवाएगा ही / हाँ कोई अधिक धनवान हो सकते है, कोई कम धनवान / यही कारण है की कए सारे प्रजातंत्र देशो को एक विपरीत, फिरकी करती हुई बुद्धि में पूंजीवादी देश भी समझा जाता है /
इसके विपरीत उदारवादी तानाशाही में उम्मीद की रौशनी तो गरीब , विकलांग, भिकारी , सभी को दी जाती है , मगर यह सुनिश्चित नहीं होता है की हर एक को जीवन की बुनियादी सुविधाएं भी मिलेगी की नहीं / कुछ एक माध्यम से, जैसे लाटरी, या किसी क्विज के माध्यम से अचानक , रातों-रात धन कमाने का अवसर हर एक को मिलता है / आगे आपकी किस्मत / यानी , जनता में एक भय हर पल बना रहता है की कब किस्मत बिफर गयी और फिर से दरिद्रगी में आ जाये, जहाँ वह भी वैसे ही जीवन जिये जैसे राह में , या स्टेशन पर दिखने वाले भिकारी / यह भय उन्हें हमेशा अपने तानाशाह के सम्मान में नतमस्तक करके रखता है की सिर्फ उस "दयालु" शासक की वजह से ही उन्हें जीवन में यह मौका मिला की वह किसी भिकारी की तरह बदतर जीवन नहीं जी रहे हैं / ऐसे में हर प्रकार के विचार रखने में मानसिक तौर पर पूर्ण स्वतंत्र नहीं होते, ख़ास तौर पर वह विचार जो उनके "मालिक " या "राजा" को कोई असुविधा दें /
कभी-कभी तानाशाह कोई एक ख़ास व्यक्ति ना हो कर किसी चुनावी व्यवस्था से आने वाले एक या दो ख़ास गुट के लोग हो जाते हैं / तब उदारवादी तानाशाही , उदारवादी कुलीनशाही बन जाती है, और प्रजातंत्र से और अधिक भ्रमित करने वाली व्यवस्था बन जाती है, क्योंकि मतदान की व्यवस्था में जनता को लगता है की सरकार को आखिर वह ही चुन रहे हैं /
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