आत्म -पूजन मनोविकार से कुटिल बुद्धि चिंतन की कड़ी
क्या यह संभव है की पुराने सामंतवाद के युग का आत्म-पूजन मनोविकार हमारे आधुनिक प्रजातंत्र में कुटिल बुद्धि का कारक बना हुआ है ? कुटिल बुद्धि से मेरा अर्थ है जुगाड़ बुद्धि (crooked thinking), वह जो विचारों के अर्थ को उसके ठीक विपरीत कर के समझतें हैं / पुराने युग में सामंतवादी , ज़मीदार, अक्सर आत्म-पूजन मनोविकृत लोग हुआ करते थे/ इसलिए क्यों की उनके पास जनता पर शासन करने के ताकत असीम थी/ भई कोई सरकार , कोर्ट, कचेहरी तो थी नहीं/ राजा-रजवाडो का ज़मान था/ अगर राजा को शिकायत करें भी तब भी राजा से ज़मींदार की नजदीकियां उनकी ताकत का पैमाना बन कर दिखाती थी /
रामायण का पूरी कहानी रावण के अन्दर बैठे अहंकार से उत्पन्न हुए त्रुटियों को झलकाती है / आश्चर्य है की यही अहंकार को उसके सही मानसिक-रोग के लक्षणों में हम लोग आज भी नहीं पहचान सकें और आज के युग में भी भारतीय संस्कृति में लोगो की एक दूसरे से सर्वाधिक जो शिकायत रखतें है वह है 'ईगो' की /
"ईगो प्रॉब्लम" इंसान में व्याप्त 'अहम्' का ही बढा हुआ स्वरुप है/ अहम् ही इंसान को अन्य पशुयों से अलग करता है / इंसान स्वयं को आईने में देख कर पहचान सकने की काबलियत रखता है / वैज्ञानिक समझ से यह एक जटिल क्षमता है जो कुछ ही जीवों में पायी जाती है / इस क्षमता का अर्थ है की जीव में एक समालोचनात्मक-चिंतन, या फिर कि रचनात्मक -चिंतन संभव है, क्यों कि वह जीव स्वयं के 'अक्स' को देख सकता है , और उससे याददाश्त में रखने की काबलियत है / अब 'अहम्' यही से विक्सित होता है की वह स्वयं की याददाश्त में स्वयं की छवि को किस रूप में गृहीत करता है / यह छवि ही 'अहम्' है / अगर यह छवि उसकी कल्पनाओं से प्रभावित हो कर वास्तविकता से दूर चली जाती है तो "ईगो प्रॉब्लम" विकसित हो जाता है / साधारणतः "ईगो प्रॉब्लम " किसी पूर्व जानकारी के नयी जानकारी के टकराव से होता है क्यों की मस्तिष्क अभी पुरानी जानकारी के प्रकाश में हे अहम् को सजोंये रखता है / नए जानकारी में नयी-छवि, या छवि-परिवर्तन में समय तो लगेगा ही /
अब अगर छवि किसी भगवान् की ही बनी हो तब यह "ईगो प्रॉब्लम" बढ कर आत्म-पूजन मनोविकार हो जाती है / भारतीय संकृति में स्वयं की छवि में भगवान् में देखना कोई बड़ी मुश्किल बात नहीं है, क्योंकि हमारी सभ्यता ही "हीरो वरशिप ", यानी नायक-पूजन की है / हमे अपने हीरो की पूजा करना बचपान से सिखाया गया है / हमारे हीरो, भगवान् , अकसर इंसान के अवतार में ही धरती पर आये हैं, यानी वह हम में भी तो हो सकते है , "है, की नहीं ?"/
और आज भी हम अक्सर जीवित इंसान को नायक मान कर स्वयं ही उसकी पूजा करने लगते है, जैसे सचिन तेंदुलकर या अमिताभ बच्चन/ यह काल्पनिक या अत्यधिक दूर बैठे नायक का पूजन भी अंततः हमारे आत्म-पूजन की इच्छा का पोषण कर रहा होता है , क्योंकि हम स्वयं उसका अनुसरण कर रहे होता हैं, और उस काल्पनिक नायक की पूजन में हम स्वयं में उसके जीवन की घटनाओं का अनुसरण कर स्वयं के कर्मो को सरहना कर रहे होते हैं/ नायक क्योंकि सभी के द्वारा पूजा जाता है, तो एक तरीके से हम अपने उन अनुसरण किया गए कर्म की समाज के हर व्यक्ति से स्वीकृति कर रहे होते हैं /
आत्म-पूजन मनोविकार के व्यक्ति हर एक विचार को स्वयं के केंद्र से ही देखतें है , की किसी सर्वमान्य बौद्धिक विचार से उनको कैसे लाभ पहुँच सकता है, या उनकी इस अहम् की छवि को कोई लाभ कैसे मिलेगा / वह ऐसा जान बूझ कर नहीं कर रहे होते है, बल्कि उनका मस्तिष्क इसी तरह से कार्य करने के लिए स्वयं को प्रशिक्षित कर चुका होता है / आत्म-पूजन भी एक तरह का बुद्धि-योग है , जो मष्तिष्क को कुछ ख़ास तरह से कार्य करने का प्रशिक्षण दे देता है / आत्म-पूजन मनोविकार से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर बचपान से ही ऐसा पोषण किया गया होता है की मानो उसको हमेशा से सिर्फ अच्छे , सही कर्म करने के लिए प्रशिक्षित किया गया हो / अब वह स्वयं को हमेशा सही, उचित, भगवान्-मयी , भगवान् का अनुसरण करने वाले के रूप में ही छवि रख कर देखता है / एक अन्य अर्थ में , --वह कभी गलत हो ही नहीं सकता !
नतीजे में यह व्यक्ति अपनी समालोचनात्मक चिंतन को जागृत नहीं कर पाता है /
धीरे-धीरे वह कुटिल-बुद्धि (जुगाड़ मानसिकता )योग में चला जाता है जब वह हास्य रूप, या किसी भी प्रकार से , कुछ भी कर के विचारों को स्वयं के पूर्ति में परिवर्तित कर के समझाना आरम्भ कर देता है / तो शायद ऐसे शुरू होती है यह आत्म -पूजन मनोविकार से कुटिल-बुद्धि चिंतन (crooked thinking) की कड़ी /
रामायण का पूरी कहानी रावण के अन्दर बैठे अहंकार से उत्पन्न हुए त्रुटियों को झलकाती है / आश्चर्य है की यही अहंकार को उसके सही मानसिक-रोग के लक्षणों में हम लोग आज भी नहीं पहचान सकें और आज के युग में भी भारतीय संस्कृति में लोगो की एक दूसरे से सर्वाधिक जो शिकायत रखतें है वह है 'ईगो' की /
"ईगो प्रॉब्लम" इंसान में व्याप्त 'अहम्' का ही बढा हुआ स्वरुप है/ अहम् ही इंसान को अन्य पशुयों से अलग करता है / इंसान स्वयं को आईने में देख कर पहचान सकने की काबलियत रखता है / वैज्ञानिक समझ से यह एक जटिल क्षमता है जो कुछ ही जीवों में पायी जाती है / इस क्षमता का अर्थ है की जीव में एक समालोचनात्मक-चिंतन, या फिर कि रचनात्मक -चिंतन संभव है, क्यों कि वह जीव स्वयं के 'अक्स' को देख सकता है , और उससे याददाश्त में रखने की काबलियत है / अब 'अहम्' यही से विक्सित होता है की वह स्वयं की याददाश्त में स्वयं की छवि को किस रूप में गृहीत करता है / यह छवि ही 'अहम्' है / अगर यह छवि उसकी कल्पनाओं से प्रभावित हो कर वास्तविकता से दूर चली जाती है तो "ईगो प्रॉब्लम" विकसित हो जाता है / साधारणतः "ईगो प्रॉब्लम " किसी पूर्व जानकारी के नयी जानकारी के टकराव से होता है क्यों की मस्तिष्क अभी पुरानी जानकारी के प्रकाश में हे अहम् को सजोंये रखता है / नए जानकारी में नयी-छवि, या छवि-परिवर्तन में समय तो लगेगा ही /
अब अगर छवि किसी भगवान् की ही बनी हो तब यह "ईगो प्रॉब्लम" बढ कर आत्म-पूजन मनोविकार हो जाती है / भारतीय संकृति में स्वयं की छवि में भगवान् में देखना कोई बड़ी मुश्किल बात नहीं है, क्योंकि हमारी सभ्यता ही "हीरो वरशिप ", यानी नायक-पूजन की है / हमे अपने हीरो की पूजा करना बचपान से सिखाया गया है / हमारे हीरो, भगवान् , अकसर इंसान के अवतार में ही धरती पर आये हैं, यानी वह हम में भी तो हो सकते है , "है, की नहीं ?"/
और आज भी हम अक्सर जीवित इंसान को नायक मान कर स्वयं ही उसकी पूजा करने लगते है, जैसे सचिन तेंदुलकर या अमिताभ बच्चन/ यह काल्पनिक या अत्यधिक दूर बैठे नायक का पूजन भी अंततः हमारे आत्म-पूजन की इच्छा का पोषण कर रहा होता है , क्योंकि हम स्वयं उसका अनुसरण कर रहे होता हैं, और उस काल्पनिक नायक की पूजन में हम स्वयं में उसके जीवन की घटनाओं का अनुसरण कर स्वयं के कर्मो को सरहना कर रहे होते हैं/ नायक क्योंकि सभी के द्वारा पूजा जाता है, तो एक तरीके से हम अपने उन अनुसरण किया गए कर्म की समाज के हर व्यक्ति से स्वीकृति कर रहे होते हैं /
आत्म-पूजन मनोविकार के व्यक्ति हर एक विचार को स्वयं के केंद्र से ही देखतें है , की किसी सर्वमान्य बौद्धिक विचार से उनको कैसे लाभ पहुँच सकता है, या उनकी इस अहम् की छवि को कोई लाभ कैसे मिलेगा / वह ऐसा जान बूझ कर नहीं कर रहे होते है, बल्कि उनका मस्तिष्क इसी तरह से कार्य करने के लिए स्वयं को प्रशिक्षित कर चुका होता है / आत्म-पूजन भी एक तरह का बुद्धि-योग है , जो मष्तिष्क को कुछ ख़ास तरह से कार्य करने का प्रशिक्षण दे देता है / आत्म-पूजन मनोविकार से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर बचपान से ही ऐसा पोषण किया गया होता है की मानो उसको हमेशा से सिर्फ अच्छे , सही कर्म करने के लिए प्रशिक्षित किया गया हो / अब वह स्वयं को हमेशा सही, उचित, भगवान्-मयी , भगवान् का अनुसरण करने वाले के रूप में ही छवि रख कर देखता है / एक अन्य अर्थ में , --वह कभी गलत हो ही नहीं सकता !
नतीजे में यह व्यक्ति अपनी समालोचनात्मक चिंतन को जागृत नहीं कर पाता है /
धीरे-धीरे वह कुटिल-बुद्धि (जुगाड़ मानसिकता )योग में चला जाता है जब वह हास्य रूप, या किसी भी प्रकार से , कुछ भी कर के विचारों को स्वयं के पूर्ति में परिवर्तित कर के समझाना आरम्भ कर देता है / तो शायद ऐसे शुरू होती है यह आत्म -पूजन मनोविकार से कुटिल-बुद्धि चिंतन (crooked thinking) की कड़ी /
शिक्षाप्रद आलेख के लिए आभार ..
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