हिंदी समाचार पत्रकारिता और हिंदी भाषी का गिरता बौद्धिक स्तर

अभी १० सितम्बर को हमने हिंदी दिवस के रूप में मनाया / मगर आज (यानी 06 oct 2012) अरविन्द के लगाये इल्जामे पर छिड़ी बहस को "आज तक " पर सुनने के बाद में फिर से यह दुःख मन रहा था की क्यों और कैसे हिंदी मूर्खो द्वारा बोले जाने वाली भाषा बनी और क्यों हिंदी भाष्य जगत मूर्खो की दुनिया बन गया है / बहस के संचालक सुमित अवस्थी बहस के दौरान केजरीवाल के लगाये इल्जामे को "अरविन्द की राजनीती करने की मंशा" का चौंगा पहनाने में लगे थे/ ऐसा करते समय सुमित से जो त्रुटी हो रही थी वह यह थी की वह अपने श्रोताओं में विधि-विधान के तकनीकी ज्ञान के प्रचार-प्रसार के पत्रकारिता के अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर रहे था / असल में पत्रकारिता का एक कर्त्तव्य मस्तिष्क को ज्ञान का भोजन दे कर शांत रखने का भी है / अगर किसी तकनीकी ज्ञान, उदहारण के तौर पर मान लीजिये "सूरज पूरब से उगता है या पश्चिम से ?" , पर भी छिड़ी बहस में बहस का संचालक बहस को आगे बड़ने का मौका दे , यह कह कर की "पार्टी 'अ' का इलज़ाम है की सूरज पूरब से उगता है ", तो मस्तिष्क को बहुत अघात पहुचेगा/ अब ऐसे कहने पर फिर बात उटती है की केजरीवाल के दिए सबूत को कितना सत्यात से स्वीकार कर लिया जाये की यह उतने ही सत्य और स्पष्ट है की उन्हें "सूरज पूरब से उगता है " का दर्जा मिले / सुमित को पत्रकारिता में स्वयं को यह विधि का तकनीकी- ज्ञान रखना ही होगा की कौन से और किस तरह के सबूत को "प्रथम दर्जे में स्वीकृत सबूत" (first order) का स्थान देना होगा / और उनका यह कर्त्तव्य भी है की अपने श्रोताओं में यह विधि-पूर्त, वैज्ञानिक समझ का विकास करे / अनजाने में समाचार चेनल खुद में ही किसे के द्वारा उपलब्ध करे गए प्रमाण की प्रमाणिकता पर सवाल उठा कर एक नया सवाल पैदा कर देता है , "दूसर दर्जे का प्रमाण देने" (Second degree) के लिए की प्रमाण की प्रमाणिकता के क्या प्रमाण है / ऐसा करने पर सुमित में यह समझ होनी चाहिए की नतीजे में प्रमाण की प्रमानिकित के प्रमाण की प्रमाणिकता करते हुए यह प्रश्न अनंतता में चला जायेगा और मुद्दा अपराध से भटक कर कुछ प्रमाण की प्रमाणिकता के प्रमाण की बहस में जा चूका होगा / यह श्रोता की मस्तिष्क को चरस या भांग की गोली का भोजन देने के समान है , धीरे-धीरे स्वयं से भी घृणा सिखाने जैसा , की सत्य-असत्य और धरम-अधर्म तो कुछ भी होता ही नहीं क्योंकि किसी भी कृत्य को अपराध कभी भी नहीं माना जा सकता , क्यों की प्रमाण नाम की कोई वस्तु के खुद के प्रमाण होने के कोई सबूत नहीं होते / न्याय का विधि पूर्त और वैज्ञानिक ज्ञान कोई ख़ास विषय के अध्ययन से प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती / और साधारण आम-बातचीत में छिपे तर्कों से भी विकसित कर लिया जा सकता है /

 समाचार पत्रकारिता के उद्देश्य क्या होते हैं ? आखिर क्यों कोई व्यक्ति कहीं दूर घट रहीं घटनायों में दिलचस्पी लेगा ? प्रश्न के तमाम उत्तर हैं/ एक सर्वोच्च उत्तर तो यह की हर व्यक्ति सामाजिक न्याय का संज्ञान लेना चाहता है क्यों की कल को उसी स्थिति में उसे भी वही न्याय मिलेगा /

 राजनीति का विपरीत विचार वैज्ञानिकता होती है / राजनीत में इंसानों में मत-विभाजन होता है, मगर विज्ञानं में तकनीकी सत्य के उजागर होने के बाद इंसानों में एक-मतत्ता आती है / राजनीति अज्ञानता, शब्द -भ्रम, कु-तर्कता, अस्पष्टता और अनिश्चितता के माहोल में करी जाती है/ विज्ञानं में प्रकाश , ज्ञान, स्पष्टता , भेद विखंडन होता है/

 मगर क्योंकि सत्य क्या है यह तो इंसान अभी तक नहीं जान पाया है, तो किसी भी विषय पर सत्य से सबसे निकटतम कुछ जानकारी अगर इंसान को है तो वह उस विषय की तकनीकी जानकारी होती है / समाज और शाशन व्यवस्था के सुचारित चलन के लिए विधि की तकनीकी समझ प्रतेक नागरिक में होनी चाहिए / पत्रकारिता के भी यही कर्त्तव्य है की विधि के ज्ञान को प्रसारित करे / निष्पक्षता के नाम पर अंधियार-गर्दी फेलाने का कर्म ना हो की "सूरज पूरब से उगता है या पश्चिम से" पर भी एक बहस करवा दे, और "राजनीति गरम हो रही है' का एलान कर दें / और फिर हिंदी दिवस पर हिंदी के घटते प्रभावों पर अपना शोक व्यक्त करता फिरे / अरविन्द ने भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाये है , वह तोह अभी आरोप के दर्जे में ही रखे जा सकते है , मगर जो प्रमाण दिए है वह "आरोप" की संज्ञा के बाहर "प्रथम दृष्टि प्रमाण " के दर्जे के लिए मान्य है / सुमित उन प्रमाणों को 'आरोप' कह कर अरविन्द के कार्यो को भी 'आरोप" कह कर नष्ट हो जाने में सहायता कर रहे हैं / और सुमित का पत्रकारिता की नैतिकता में यह कर्तव्य है की श्रोतायो को बताये की यह प्रमाण कितने मान्य है कितने नहीं / सुमित को पत्रकारिता के माध्यम से जन गण में यहज्ञान प्रसारित करने की आवश्यकता है की अरविन्द के दिए प्रमाण "आरोप" है या स्वीकृत तथ्य आगे की कार्यवाही के लिए ; की साधारण मनुष्य की समझ से उन्हें किसी पुलिस और सत्र न्यायलय द्वारा भी मान्य प्रमाण माना जाना चाहिए या नहीं /  आरोप और प्रमाण में क्या अंतर है / प्रथम दृष्टि प्रमाण का आरोप पर करी जाने वाली कार्यवाही से क्या सम्बन्ध है
   

 सोचता हूँ की क्या सुमित इस आलोंचना पर अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए यह प्रश्न तो नहीं उठा लेंगे की, "आप कैसे कह सकते हैं की आप जो कह रहे है वही सही है और किसी और की कही बात सही नहीं है " / अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रयोग से भी इंसान स्वयम को मिथ्या में डालने में कोई कमी नहीं छोड़ता /

Comments

Popular posts from this blog

क्या वैज्ञानिक सम्बन्ध होता है खराब राजनीतिक माहौल और विभित्स rape प्रकरणों के बीच में

Vedic Sholks have wisdom to speak "diplomatically" , the glorified name for speaking lies.

गहरी बातें क्या होती है