जासूसी पेशेवरों का व्यावसायिक मानसिक स्वास्थ
ये सिर्फ डोवाल बाबू की दिक्कत नही है, मुझे ऐसा लगता है की सारे ही जासूसी agent के दिमागों में यह विकृतियां आ जाती है की वह समाज को बेकूफ़, फ़ालतू लोगों का जमावड़ा समझने लगते है, और ख़ुद को ज़रूरत से ज्यादा विद्धवान, जिसका काम ही है दुनिया को बचाना।
जासूसी का पेशा करने वालों में ऐसा क्यों होता होगा? क्यों यह अहम भरी और अंतर्मन को नष्ट करने वाली psychiatric दिक्कतें आती है इनमें? क्या लागत है- क्या इन्हें खुद बोध होता होगा की इनके पेशे के चलते इनमें कुछ occupational mental health समस्या आ जाती हैं?
नही।
जासूसी पेशों में रहते रहते इंसान तरह तरह के पाखंडों को रोज़ रोज़ होते देखता होगा, जिसमे उनका subject(शायद इनकी शब्दावली में 'target') दुनिया में कहता कुछ है, मगर भीतर ही भीतर करता कुछ और है, जिसको की यह जासूस लोग चुपके से देख ले रहे हैं।
तो सालों तक ऐसे ही माहौल में रहने में क्यों नही इन जासूसी पेशेवरों में खुद की ही mental health दिक्कत हो जाती होगी जिसमे यह लोग इंसान में conscience के अस्तित्व और महत्व के बोध को ही अपने खुद के भीतर समाप्त कर देते होंगे। इन्हें सभी इंसान पाखण्डी दिखते होंगे, क्योंकि यह लोग तो अपनी सरकारी सुविधाओं से लैस हर इंसान को उसके एकांति, अंतर्मयी पलों में देखते होंगे।
हाल ही में अमेरिका के prism program के खुलासा करने वाले व्यक्ति edward snowden के जीवन पर बनी biopic , snowden, में जासूस लोगों पर पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य के असर को चित्रित किया गया है। वह शक संदेह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है, सभी को पाखण्डी समझता है, अपने रिश्तों को क़ायम रखने की सहज़ योग्यता उसके भीतर नष्ट हो गयी है, और शायद खुद को किसी भगवान की तरह समझने लग गया है, क्योंकि बचपन से बताया जाता है की भगवान हर जगह होता है और इंसान के हर अच्छे-बुरे कर्मों को देख रहा होता है ताकि एक दिन उसका हिसाब मांग सके। क्योंकि ऐसी "भगवान"-कारी काबलियत तो आज के ज़माने में इन सरकारी जासूस लोगों में होती ही है। ज़ाहिर है की यह लोग -- , इनमें से कई, -- खुद को भगवान ही समझने लगते होंगे।
जासूसी कामों में लिप्त मेरे एक uncle जो की retirement के उपरान्त मेरे घर आना जाना हुआ करता था, जब मैं छोटा था, उनको देखा-सुना करता था, और उनके जीवन और चरित्र पर सोचता भी था। क्योंकि तब हम छोटे थे, तो उनकी न समझ आने वाली बातों को मंत्रमुग्ध हो कर ऐसे सुनते थे जैसे कोई बड़ा जासूसी कारनामा हो, और शायद हम ही नादान है जो की इस तरह के उच्च बुद्धि intelligence बातों को पकड़ नही पा रहे हैं। अंग्रेजी साहित्य में तब ताज़ा ताज़ा चरित्र चित्रण करने के सवालों का सामना किया था, तो फ़िर उनके भी चरित्र पर दिमाग़ सोचता था। कुल मिला कर कोई अच्छी छवि नही थी, और देशभक्ति वगैरह को तो उस समय के पूर्व ही हमने पैमाना मानना बंद कर दिया था, इंसान के चरित्र का आंकलन करने के लिए।
न ही हम उनमें वह मानवीय समझ को देखते थे, जिससे की हमें तस्सली हो जाये कि यदि ऐसे इंसान के पास हमसे कुछ अधिक ताथयिक जानकारी है तो भी वह कोई बेहतर निर्णय ले सकेंगे, सामाजिक और राष्ट्रीय हित में।
जासूस लोग कल्याणकारी प्रशासन देने के क़ाबिल तो रह ही नही जाते है। बल्कि समाज को police state में ही तब्दील कर देते हैं, अपनी "चालबाज़ी" tricks से विपक्ष को छकाने के चक्कर में।
रूस में पुतिन बाबू के जीवन को देख कर मेरा ऐसा विश्वास और सुदृढ़ ही होता है की जासूस लोग को शासन की डोर से जितने दूर रखे जा सकते है, रखें जाये तो ही बेहतर होता है। हालांकि आम लोगों की नज़र में इन्हों जान की बाज़ी लगा कर दुश्मन देश में जा कर "देश सेवा' करि होती है, इसलिये लोग इन्हें ही "सच्चा देशप्रेमी, काबिल नेता" मानते है, मगर वास्तव में यह लोग देश के प्रशासन में से लोक कल्याणकारी शक्तियों तथा व्यवस्था को ख़त्म कर देते है, और उसे police state में ला देते है। putin भी पूर्व KGB जासूस रहे है।उनके देश में प्रजातंत्र ख़स्ता हाल हो चुका है। चुनाव प्रक्रिया में ही सेंध मारी कर दी है खुद अपने ही देश की। मातृ सेवा करते करते कब "मातृ %x x%" कर दिया इनको समझ भी नही होगी। हां, मगर दिल से खुद को एक सच्चा मातृ प्रेमी ही मानते होंगे।
यह जासूस लोग आदर्शों की अहमियत नही जानते समझते है - लोक प्रशासन के कार्य में, नीति निर्माण में।।इनको लगता है की सभी कुछ manipulate किया जा सकता है। हर आदर्शवादी इंसान को उसके सार्वजनिक और अंतार्मयी पलों में एक संग देखने से यह उसे भी manipulative आदमी समझते होंगे। क्योंकि आजीवन यह लोग आना दिमाग शत्रु देश की प्रशासन नीति को manipulate करने में ही लगाते है, तो फिर अपने retirement के बाद जब यह अपने देश की ओर पलटते है तब अपने भी देश की व्यवस्था के साथ वही कुछ manipulation कर देते हैं और फिर अबोध विकृति में मातृ %%xx% बन बैठते हैं।
सभ्य समाज के लिए समझदारी इसी में होती है की जासूसी पेशे वालों को उनके retirement के बाद राजनीति से कोसों दूर रखा जाये। मानसिक स्वास्थ्य की बहोत बड़ी विकृतियां होती होंगी इनके भीतर, यह तय मान कर चलिये।
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