भक्तों की जनता को ग़ुमराह करने की नीति

भक्त लोग कपिल सिब्बल के एक पुराने इंटरव्यू की क्लिप को आजकल viral कर रहे हैं, जिसमे वह पाकिस्तान और बांग्लादेश के "minorities" को भारत की नागरिकता दिए जाने की हिमायत करते हैं।

यह क्लिप सं 2003 के आसपास की है।

और फिर एक हालफिलहाल की क्लिप से जोड़ते हुए भक्त लोग दावा कर रहे हैं कि कपिल सिब्बल बदल गए हैं, UTurn कर रहे हैं, क्योंकि दूसरी वाली क्लिप में कपिल सिब्बल  मोदी सरकार की नागरिकता संशोधन कानून को धर्म आधारित भेदभाव बताते हुए इसको खारिज़ करने की मांग रखते दिख रहे हैं।

गौर करें कि सं 2004 से लेकर 2014 तक 10 साल कपिल सिब्बल की पार्टी की ही सरकार थी, मगर वह लोग कोई नागरिकता कानून खुद नही लेकर आये थे। 

दूसरा , की कपिल सिब्बल ने minorities शब्द का प्रयोग करते हुए उनको नागरिकता देने की बात करि थी, मगर किसी भी धर्म आधारित भेदभाव नही किया था। 

शयाद इसी मुश्किल लक्ष्य के चलते उनकी सरकार ने अभी तक खुद कोई कानून नही दिया था। बिना किसी भेदभाव वाले संकट के सिर्फ minorities को ही नागरिकता देना - यह मुश्किल ही था। क्योंकि संवैधानिक मर्यादा टूटती थी। 

और फिर राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण अभियान से तो गाज़ दोहरी गिर सकती थी। जो ग़लती कहीं भी कांग्रेस सरकार ने नही करि है।

तो कपिल सिब्बल ने u turn नही किया है। 

बल्कि भक्त फिर से जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं कि कपिल सिब्बल u turn करे हैं ! नागरीकता पंजीकरण को नए कानून से जोड़ देने के बाद होने वाले प्रभावों की तो भक्त कहीं भी बात ही नही कर रहे हैं।

यह कैसा षड्यंत्र  है जनता को गुमराह करने का ? Bicycle और tricycle में समानताएं बहोत होती हैं, हालांकि दोनों में अंतर भी बहोत बुनियादी होता है। tricycle एक रिक्शा होता है, जिसका उद्देश्य ही दूसरा हो जाता है एक bicycle के मुक़ाबले। 

वही खेल खेला है भक्तों ने। बात में समानता इस हद तक है कि कपिल सिब्बल भी पाकिस्तनी अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के हिमायती थे। जो कि हमे भी स्वीकृत है। मगर बड़ा अंतर यह है कि यह कार्य उन्होंने धर्म आधारित भेदभाव नीति का सहारा लेकर नही होने दिया था। बल्कि शायद इसी मुश्किल के चलते 10 साल अपनी सरकार के दौरान भी खुद यह काम नही किया ।

छल करना भक्तों की पुरानी नीति रही है। ग़लत काम खुद करेंगे, और बदनाम दूसरे को करने की साज़िश साथ मे कर देंगे।

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