Development ज़रूरी है , या की Democracy ?

छात्र जब प्रोफेसर आनंद कुमार से पूछते है की कौन अधिक आवश्यक है : development या की Democracy तब मैं सोच के जंजाल में फँस जाता हूँ की छात्रों को कैसे समझाया जाये की वह किस विचार की तुलना किस विचार से कर रहे हैं। क्या कार के पहिये की हवा और कार में ईंधन कितना डलवाना है के बीच किसी एक को चुनने को बोला जा सकता है ??

शायद development से अभिप्राय पदार्थवाद (materialism) का है, मानव जीवन(human development) का उत्थान नहीं। पदार्थवाद का  विकास होता है बिजली, विद्युत ऊर्जा के बे-रोक टोक इस्तेमाल से उत्पन्न चमचमाती रौशनी , सडकों पर चमकते हुए विज्ञापन बोर्ड जिनमे सेक्स और बाकी सब अभद्र वस्तुओं का विज्ञापन हो; ठन्डे वातानुकूलित माल सामानों से भरे हुए जबकि प्राकृतिक संसाधनों पर लगातार दबाव बना हुआ है; चिकनी तीव्र गति कारें जबकि सड़कें हादसों से, परिवहन चालन नियम उलंघन से, नाबालिग चालाक और शराब पी कर गाडी चलाने वालों से भरी हुई हैं।
   यह है पदार्थवादी विकास, खपत-खोरों(consumerists) का समाज जो विकास के नाम पर धीरे धीरे सामूहिक विनाश की और बढ़ रहा होता है। खपतखोर समाज का उद्देश्य बस जीना, खाना, सेक्स और मौजमस्ती तक सिमित होता है। वह मौजमस्ती, हंसी और ठट्ठा को ही जीवन का असल आनंद मानने की कोशिश करता है, जबकि अंदर का खोखलापन उसे शान्ति नहीं प्राप्त करने देता है।
  
    डेमोक्रेसी में विकास खपतखोर और पदार्थवाद से नहीं होता है। डेमोक्रेसी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के माध्यम से विचारों की प्रतियोगिता करवाती है और इस प्रकार योग्यता को प्रसारित करती है। जब योग्यता प्रफुल्लित होती है , नेतृत्व में आती है तब सामाजिक उत्थान होता है। सामाजिक उत्थान ही वह विकास है जो की मानव विकास कहलाता है। इसमें खपतखोर आचरण नहीं होता है, इसमें पदार्थवाद नहीं होता है। इसमें जीवन आनंद होता है, हंसी और ठट्ठा:गिरी नहीं। इसमें शान्ति मिलती है।

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता