हाई कोर्ट से सलमान खान को सजा निलंबन की राहत के विषय में
सलमान का केस लगता है की दूसरी बार सब कुछ गोल-मटोल होने की राह पर निकल पड़ा है। मेरी समझ से न्यायलय इतिहास की दृष्टि से कुछ चुनिंदा केसों में है जिसमे की दूसरी बार सत्य-परिक्षण करने के लिए विवश होना पड़ा है। किसी केस का दूसरी बार पुनः परिक्षण अपने में न्यायलय और जांच संस्था के ऊपर एक दाग और शर्मिंदगी लाने वाला मसला होना चाहिए। जो न्याय की इस बारीकी को समझते होंगे उन्हें एहसास हो गया होगा की हमारा देश कैसा मूर्खिस्तान बना बैठा है।
बरहाल अब हालात यह है की इस दूसरे पुनः परिक्षण सत्र में भी फिर से वैसी ही गलतियां मिलना शुरू हो रही है जो की जाँच एजेंसी और न्यायलय में भ्रष्टाचार और बेहद मूर्खता भरे कृत्यों की और इशारा कर रही है।
आज का उधाहरण लीजिये। अब यह हाई कोर्ट में पहुँच जाने पर एक नए गवाह और उससे प्राप्त होने वाला नया तथ्य पूरे केस को सत्र न्यायलय में फिर से कुछ लंबी अवधी के लिए लटकाने वाला है। बचाव पक्ष नए गवाह कमाल खान को key witness बुलाएगा जबकि अभियोजन पक्ष पूछेगा की कौन है यह, और अब तक कहाँ था ? और फिर एक बार पुनः इस नए गवाह New Evidence के दिए बयानों से मिले तथ्यों की जाँच होगी, और न्याय निष्कर्ष निकाला जायेगा। इन सब में समय जाने वाला है। तब तक जन ज्ञान में प्रश्न रहेगा की आखिर ऐसा कैसा की इतने बड़े और महत्वपूर्ण गवाह को जाँच एजेंसी ने अब तक अनदेखा कर दिया था। यह अपने आप में अंदर के व्याप्त भ्रष्टाचार को पोल खोल रहा है।
कुल मिला कर यह तो साफ़ हो रहा है की सलमान इस समय न्यायलय, वकीलों , जाँच एजेंसी और कुछ बिकाऊ गवाहों के लिए दुधारू गाय बन गए है। न जाने वह कौन सा ऐहम और क्या आनंद है की कोई इस तरह के ऊर्जा और अर्थ को अत्यधिक व्यय करने वाले मार्ग पर चलना स्वीकार कर रहा है।
अगर सलमान का यह दावा है की भारतीय न्यायालयों में उनके प्रति अन्याय हुआ है और वह इतने लंबे इसलिए संघर्ष कर रहे है तब तो उन्होंने अपनी फिल्मी जीवन में इससे और अधिक "कॉमेडी फ़िल्म" शायद नहीं बनायीं होगी। और शायद मीडिया और सट्टोरी इसी "फिल्म देखने वाले आनंद" ("पिक्चर चल रही है") से इस वास्तविक जीवन केस पर नज़र डाल रहे है।
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