आत्म -पूजन मनोविकार से कुटिल बुद्धि चिंतन की कड़ी
क्या यह संभव है की पुराने सामंतवाद के युग का आत्म-पूजन मनोविकार हमारे आधुनिक प्रजातंत्र में कुटिल बुद्धि का कारक बना हुआ है ? कुटिल बुद्धि से मेरा अर्थ है जुगाड़ बुद्धि (crooked thinking), वह जो विचारों के अर्थ को उसके ठीक विपरीत कर के समझतें हैं / पुराने युग में सामंतवादी , ज़मीदार, अक्सर आत्म-पूजन मनोविकृत लोग हुआ करते थे/ इसलिए क्यों की उनके पास जनता पर शासन करने के ताकत असीम थी/ भई कोई सरकार , कोर्ट, कचेहरी तो थी नहीं/ राजा-रजवाडो का ज़मान था/ अगर राजा को शिकायत करें भी तब भी राजा से ज़मींदार की नजदीकियां उनकी ताकत का पैमाना बन कर दिखाती थी / रामायण का पूरी कहानी रावण के अन्दर बैठे अहंकार से उत्पन्न हुए त्रुटियों को झलकाती है / आश्चर्य है की यही अहंकार को उसके सही मानसिक-रोग के लक्षणों में हम लोग आज भी नहीं पहचान सकें और आज के युग में भी भारतीय संस्कृति में लोगो की एक दूसरे से सर्वाधिक जो शिकायत रखतें है वह है 'ईगो' की / "ईगो प्रॉब्लम" इंसान में व्याप्त 'अहम्' का ही बढा हुआ स्वरुप है/ अहम् ह...