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Showing posts from February, 2014

केजरीवाल ने त्यागपत्र का रास्ता ही क्यों चुना? ..एक विचार

     यह समझना ज़रूरी है की केजरीवाल ने 18फरवरी को अपने प्रिय विधेयक, जन लोकपाल बिल, को सभा में प्रस्तुत कर सकने के बहुमत परिक्षण में असफल होने के उपरान्त त्यागपत्र का रास्ता ही क्यों चुना, और क्यों नहीं मुख्य मंत्री बने रहते हुए जन-सेवा करी ।     बहोत सारे लोग केजरीवाल से यह उम्मीद कर रहे थे और आज भी कर रहें हैं की केजरीवाल को जन सेवा के वास्ते पद पर कायम रहना चाहिए था और ऐसा करने से उन्हें पद-अनुभव भी मिलता और जनता में योग्यता भी सिद्ध होती।      इस प्रशन के उत्तर में पहले हमें "जन सेवा" के भावार्थ को भी समझना होगा। तर्क निरक्षण के लिए एक प्रश्न करना होगा क्या शीला दीक्षित जी की कांग्रेस सरकार जन सेवा नहीं कर रही थी? सही, एक संतुलित आंकलन में, जन सेवा तो सब ही सरकारें कर रही होती हैं।        तब जन सेवा के प्रसंग से क्या भावार्थ हुआ ? यह की जो पिछली सरकार ने किसी कारणों से करने से मना कर दिया था वह यह सरकार कर देगी। इसमें वैध कारण और अवैध कारण पर एक नपी-तुली चुप्पी है और दोनों को मिला कर एक रूप, एक शब्द में "जन सेवा" कह दिया जा रहा है। किसी सिद्धांत प्रेरित जन सेव

'Dynasticism in a democracy : a logical tangle which a democracy must solve out for its sustenance"

"Dynasticism in a democracy : a logical tangle which a democracy must solve out for its sustenance" ______________________________________________________________  Let us think in a little logical manner about the problems and challenges of dynasticism in a democracy. In a fair and just world it is wrong,both, to deny someone an opportunity,or, to unfavourably extend someone an opportunity for reasons of his birth. It applies to everyone- the rich and the poor people.  Then how do we ensure that the worthy people , no matter a dynast or of a commoner birth, are reached their rightful place.  It is this question which gives the cover of legitimacy to a crooked dynasticism to walk into the democratic system. There comes an unresolved ambiguity of whether a person reached (/failed to reach) a position by virtue of his merit, or, by virtue of his birth ,--an ambiguity which a sustaining Democracy MUST resolve in order to continue to sustain itself.      Without a check on th

समाचार लेखन में न्याय के आधारभूत सिद्धांतों की आवश्यकता

US never warned India about Devyani Khobragade’s arrest Read more at:  http://www.firstpost.com/blogs/us-never-warned-india-about-devyani-khobragades-arrest-1391935.html?utm_source=ref_article प्रमाण के सिद्धांतों में यह विषय सर्व-स्वीकृत रहा है की अत्यंत सूक्षमता की हद्दों तक जाने वाले प्रमाण की बाध्यता नहीं रखी जाएगी | यदि किसी व्यक्ति ने किसी को बन्दूक की गोली से मार कर हत्या करी है -- तब इस हत्या के प्रमाण में हत्या के मंसूबे, हथियार और हत्या करने वाले वाले संदेह्क का हथियार से सम्बन्ध -- इतना अपने आप में पूर्ण प्रमाण माना जायेगा की हत्या किस व्यक्ति ने करी है | बचाव पक्ष के अभिवाक्ताओं को यह प्रमाण माँगने का हक नहीं होगा की यदि "रमेश ने गोली चलाइये भी, तब भी--, चलिए मान लिया की बन्दूक पर रमेश की उँगलियों के निशान भी मिले, रमेश के पास वजह भी थी , --तब भी प्रमाणित करिए की मोहन की मृत्यु उसी गोली से हुयी जिसे रमेश ने चलाया था |"     प्रमाण के लिए यह कभी भी आवश्यक नहीं माना जाता है की "चश्मदीद होना चाहिए जिसने देखा की रमेश ने ही बन्दूक का घोडा दबाया था, और यह भी दे

भ्रष्टाचार वाली अर्थव्यवस्था का जन-प्रशासन पर प्रभाव - जनकल्याण के ध्येय का परित्याग

    'निवेशक' शब्द मुझे एक प्रयोक्ति सा सुनाई देने लग गया है -- एक ऐसी विधि के लिए जिसके द्वारा हमारे देश से ही प्राप्त काला धन हमारी अर्थव्यवस्था में वापस एक "वैध" तरीके लगा दिया जाता है|     अर्थशास्त्र विषय का मूलभूत सिद्धांत है की अर्थ , यानी पैसा , हमेशा गोल चक्र में चलता है | यह केन्द्रीय बैंक से चालू होता है और वापस बैंक में लौटता है | रास्ते भर यह जितने लोगों के हाथों से गुज़रता है , वह सूचकांक होता है की देश में उतना व्यापार हो रहा है, जो की फिर एक प्रतिक्रिया में सूचकांक है की देश में कितना विकास और कितनी खुशहाली है | इसे जीडीपी कहते हैं |      यदि हमारे देश का कोई अमीर आदमी अपने रहने के लिए आलिशान महंगा-सा महल बनवाता है तो इसमें सब लोग जलन भाव में क्यों आ जाते है , इर्ष्या क्यों करने लगते हैं | भई, अपना महल बनवाने में उस अमीर आदमी ने मजदूरों को उनकी मजदूरी के पैसे तो दिए ही होंगे न ? कोई हाथ तो नहीं कटवा दिया होगा| देश में सरकारी श्रमिक विभाग तो है न जो की सुनिश्चित करेगा की मजदूरी का भाव क्या होगा और उचित श्रमिकी दी जाए |       कम से कम अमीर आदमियों का उं

बिगड़ती प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का उपचार - शक्तियों का संतुलन

     भारत में प्रयक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में हर जगह राजनीतिज्ञ ही नियंत्रण करते हैं| कभी यह तंत्र हमे धोखा देने के लिए 'नेता-विपक्ष' और 'नेता-सदन' नाम के दो अलग-अलग से प्रतीत होते व्यक्तियों का ज़िक्र कर देता है , कभी एक 'संसदीय-दल' का नामकरण कर लेता है -- मगर असल प्रकृति में रहेता एक ही है -- चुनावी प्रक्रिया से आया वह अयोग्य व्यक्ति जो की मात्र अंधभक्ति से प्राप्त लोकप्रियता से सब नागरिकों और संस्थाओं पर नियंत्रण करे हुआ है |    संविधान के निर्माताओं ने यहाँ पर एक बहोत बड़ी भूल कर दी लगती है | आयरलैंड और अमरीका के संविधान से अनुकृत हमारे संविधान ने लोकतंत्र के ठीक वही पेंच गायब कर दिए है और एक भ्रमकारी, आभासीय प्रतिस्थानक लगा दिया है जिससे के प्रजातंत्र एक मुर्ख-तंत्र में परिवर्तित हो जाए |     हम में से अधिकाँश व्यक्ति हमारे भारतीय प्रजातंत्र की कमियों को महसूस करते है --और इसका दोषी हमारी अंधभक्त, अल्प-शिक्षित जनसँख्या को मानते है | मगर एक अनभ्यस्त तर्क में समझे तो पता चलेगा की प्रजातंत्र का निर्माण ही अशिक्षा और गरीबी को मिटाने के लिए हुआ था ! यानी हम जिसे

सोशल मीडिया , जन सुनवाई और जन-कल्याणकारी विचार

    यदि आप के विचार ऐसे हैं कि उनको सिर्फ गोपनियत में किन्हीं चुनिंदा लोगों के सामने ही प्रस्तुत किया जा सकता है, या कि आप के विचारों में से जन-कल्याण(Public Interest) के विपरीत के कर्म प्रवाहित होते हैं - तब फेसबुक औए ट्विटर जैसे सामाजिक विचार मीडिया आपके लिए उपयुक्त स्थल नहीं हैं।         सामाजिकता का प्रथम सूत्र न्याय है। जो सही होगा, जो उपयुक्त होगा उसको ही सब लोग स्वीकार करेंगे, और जो सही नहीं होगा उसको बहिष्कार करेंगे। मगर समाज में यह कहीं भी तय नहीं होता है की क्या-क्या सही माना जायेगा और क्या-क्या गलत माना जायेगा। समाज में जो तय है वह यह है कि सही और गलत का न्याय सभी लोग मिल कर करेंगे। यानी की न्यायायिक प्रक्रिया तय हो जाती है कि जन-सुनवाई का प्रयोग होगा। जन-सुनवाई(Public hearing) न्यायायिक प्रक्रिया का सर्वोच्च सूत्र है।         अन्तराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों में जन सुनवाई का कई बार उल्लेख है। न्यायालयों का दरवाजा खुला रखने के पीछे की मंशा यही से ही निकलती है कि कोई भी व्यक्ति कभी भी अन्दर आ कर प्रमाण परीक्षण क्रिया को देख सकता है और स्वयं को संतुष्ट कर सकता है कि स

जन-सुनवाई (Public Hearing) का महत्व , and regarding the two-faced laws in India which effectively make the application of law a discretionary work , not a logical consequence.

सन्दर्भ : १८ फरवरी को लोक सभा के सीधा प्रसारण को बंद कर के पारित किया गया तेलंगाना राज्य का विधेयक जन-सुनवाई सत्यापन का सर्वोच्च मानदंड है | आज यह सीधा प्रसारण पर रोक लगा कर यही प्रमाणित हुआ है की देश में प्रजातंत्र सिर्फ एक आभासीय वस्तु है -- जनता को भ्रमित कर के विभाजित रखने की एक साज़िश , जिसम की असली फायदा सिर्फ नेता लोगों को ही हो रहा है | आधी जनता कहेगी "यह सही है" , बाकी आधी कहेगी "यह गलत है" | जनता के आपस के इस मतभेद में नेता जी लोग फायदा लेंगे और ऐसे ही सत्यापन को बिफर देंगे | Reference the latest episode of appointment of Additional Director of the CBI by the Prime Minister's Office, the people of India should look at the way the rules are formulated - often with an in-built mechanism of flouting ,or, prone to flouting with a small twist of logic . Action-A : requires that the CVC Should be consulted prior to appointing a person on the post. Action-NOT-A : says that appointment can be made WITHOUT regard for the consultation given by the CVC ,b

आम आदमी पार्टी की आर्थिक और विदेश नीतियों पर एक विचार

आम आदमी पार्टी की अपनी कोई विशिष्ट आर्थिंक या विदेश निति नहीं है| वैसे सच बोले तो देश में बाकी दोनों बड़ी पार्टियों की भी कोई निति है क्या ? और छोटी क्षेत्रीय पार्टियों की क्या निति है?- कुछ नहीं | क्योंकि उन्हें कुछ ज्यादा आवश्यकता ही नहीं है अपने क्षेत्र से बाहर मुंह घुमा कर देखने की | हाँ कुछ एक पार्टियाँ विदेश से सम्बंधित विषयों पर कुछ-कुछ हल-चल करती है -- मगर विदेश से अर्थ सिर्फ पाकिस्तान, बंग्लादेश , नेपाल तक है | कुछ एक चीन को दुश्मन मानती है और कुछ एक चीन को आर्थिक प्रतिस्पर्धी | अमरीका को वामपंथी पार्टियाँ दुश्मन और "पूंजीवादी" ही मानती है |   आर्थिक नीतियों पर तो छोटी पार्टियों की निति तो एक शब्द में समझा जा सकती है - भ्रष्टाचार |    यह सारी नीतियाँ किसी फिल्मी प्रभाव में उत्पन्न है , किसी मूलभूत अध्ययन से निकले सिद्धांत पर नहीं आधारित हैं | संक्षेप में कहें तो -- जिसकी जैसी भावना, वही उसकी निति है | तथ्यों का संग्रह और अध्ययन किसी ने नहीं किया है |           आम आदमी पार्टी का उद्गम भ्रष्टाचार निवारण के आन्दोलन से हुआ है और वही यह तय कर देता है की इसका मुख्य ध्या

Lack of Legal Expertise cannot hide the freedom and the duty to communicate, unless ofcourse "lacking Legal Expertise" is a cover for linguistics and semantics inabilities.

     When every piece of written letters start to frighten you that a "legal expert" would be required to "interpret it" and make a appropriate response , know it that you have become unworthy of your existence in the human form.       One of the greatest quality of human existence is their ability to communicate - their thoughts and their desires. The immense conquest of humans over the other species of life came with the help of their brain skills. Communication in the USP of humans. Written communication served the purpose of preserving the knowledge found and discovered by one generation for transfering to the next generation. Each generation contributed to the enhancement of the common knowlwdge bank, instead of re-discovering what the old ones had already discovered.      Written communications made the original terms and conditions of the contract permanent- preserved for a life time, and served as evidence for everyone to see. That what everyone in the so

Democratic freedoms are meant for a better solution-finding, not to fizzle out the solution itself.

VD: U r right. .honest people become Khemka and face multiple transfers. Some people enjoy 20 yrs without transfers due to political patronage. Its easier to run a tape record than to build a track record. AAP is choosing the easy way out. ____________________________________________________________ MS When the winds of change start to blow they don't follow the old tracks. Change don't run in a competitive race on the same old race courses. Why would they be a change if they too do the same. ________________________________________________________________ VD:    The whole idea sounds as if its a genetic disease and they will replace it with purer genetic pool. __________________________________________________________________ MS haha..A Paulo Coelho puzzle about a king in whose kingdom a magician a put some potion in the well from which everyone in the town drinks the water. The potion makes everyone dumb headed and behave foolish. Every one has gone bonkers except t

दो-मुहि नियम व्यवस्था से केजरीवाल का इस्तीफ़ा

अच्छा खेल मात्र किसी एक खिलाडी के अच्छा खेलने से नहीं हो सकता है | खेल के नियम भी उस खेल को अच्छा खेलने के लिए प्रेरित करने वाले होने चाहिए |   मात्र तेंदुलकर यदि अच्छा खेल खेले मगर यदि मैच पहले से ही फिक्स्ड था तो कोई आनंद नहीं है उस मैच को देखने में | आत्म-जागृति के साथ स्वयं को मुर्ख नहीं बना सकते हैं | आत्मा को खोखला नहीं कर सकते हैं | _________________________________________________________ बहोत समय तक मैं श्री श्री रविशंकर जी के विचार पर मंथन करता रहा। श्री श्री का मानना है कि अरविन्द को त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था क्योंकि देश में भ्रष्टाचार निवारण के और भी कानून हैं और यदि अरविन्द सत्ता में कायम रहते तब उन कानूनों का प्रयोग करके भ्रष्ट राजनेताओं से देश को मुक्ति दिला सकते थे। श्री श्री एक महंत व्यक्ति हैं और संभवतः प्रशासन व्यवस्था तथा न्यायायिक प्रक्रियों के मिलन से निर्मित इस जटिल निति-निर्माण प्रणाली के गहरे पेंचों का स्पष्टता से नहीं समझ रहे होंगे।    असल में यह निति निर्माण के जंजाल को न समझ पाने कि दिक्कत सिर्फ श्री श्री की है , बल्कि हम सभी नागरिकों कि ही है। हम सब

50% power bill waiver by the AAP's Delhi Government to those who protested against the inflated bills: WHAT IS THE LOGIC OF MEDIA IN MAKING CLAIMS OF PROPRIETY ?

It is cumbersome to understand the propriety issue the News Media is trying to raise in the AAP's decision to give subsidy to those who supported their call for protest by not paying their bills. Back in time, a propriety issue had risen when the AAP has called on people to protest by not paying up their Electricity Bills. The moralists asked the AAP to give back something in return to such people who would be supporting their call. It came as a due moral obligation on the AAP to give back , to share away, the fruits of the protest they all suffered. Therefore the propriety issue of why should the AAP benefit its supporters is a question of Morality, and is well answered. The second question related to the propriety could be about from which funds should this subsidy be borne?? From the AAP's personal funds, or the State's fund?? Is the second question really so difficult to answer? It HAS TO BE the State's fund. The funds of AAP are the common collection of the

अधिकारीयों की गुप्त समीक्षा पद्धति और इसके सामाजिक प्रभाव

हरयाणा के एक उच्च अधिकारी श्री अशोक खेमका, और हरयाणा के ही वन विभाग के अधिकारी श्री संजीव चतुर्वेदी के पेशेवर जीवन में घटी त्रासदी देश और समाज के लिए एक चिंता का विषय होना चाहिए | यह दो व्यक्ति समाज के सामने जीवंत उधाहरण है हमारी सरकारी व्यवस्था का जिसमे हम स्वच्छ और निष्पक्ष अधिकारीयों को किस प्रकार से और किस हद्द तक प्रताड़ित कर सकने की क्षमता रखते है -- यह एहसास होता है | तर्क के एक सिद्धांत तो यह बताता ही है की यह दोनों तो मात्र सिरा है एक ऐसे हिम खंड का जिसमे नीच न जाने ऐसे कितने और व्यक्ति और अधिकारी होंगे जो की ज्यादा सक्षम अधिक प्रभाशाली और अधिक समग्रता से कर्तव्य निभानते होंगे , मगर हमारी जन प्रशासन व्यवस्था ने उन्हें ऐसे ही प्रताड़ित करा होगा | श्री संजीव चतुर्वेदी के केस में तो अभी कुछ दिन पहले सीधा राष्ट्रपति हस्तक्षेप के बाद कुछ परिवर्तन हुआ है | मगर हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होगा |व्यवस्था का दुर्गुण न जाने कितने और अभी भुगत ही रहे होंगे | क्या कारण है और व्यवस्था का ऐसा कौन से तर्क है जिसमे यह प्रताड़ना संभव हो पाती है ? समाचार पत्रों से मिली खबरों में टटोले तो उत्तर

न्याय एवं जन सुनवाई का महत्त्व

प्राकृतिक न्याय का एक महत्वपूर्ण सूत्र है -- जन सुनवाई | न्यायलय की सम्मान, उसका आदर इसी से बनता है की वह हर कृत्य निष्पक्ष करता है | मगर वह स्वयं कैसे प्रमाणित करता है की उसकी कार्यवाही निष्पक्ष है ??  इस प्रश्न का उत्तर है -- जन सुनवाई (Public Hearing) |  "नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र " (International Covenant on Civil and Political Rights) के अनुबंध १४ में यह प्रतिज्ञा रही है की सभी नागरिकों का अधिकार रहेगा की उन्हें एक जन सुनवाई प्रदान करवाई जाए -- जिससे की यदि उनके साथ न्यायायिक कार्यवाही के दौरान कोई त्रुटी अथवा कोई अन्याय हो रहा हो तब वह जन समुदाय से सहायता मांग सके | इस अनुबंध का सीधा अर्थ यह है की सभी किस्म की न्यायालय की कार्यवाही आम जनता के लिए खुली होनी ही चाहिए | मगर इसी अनुबंध १४ में यह भी बताया गया है की कोई भी न्यायालय किन किन हालात में सुनवाई को बंद दरवाज़े में कर सकता |  Article 14 of the ICCPR ( http://www.ohchr.org/en/professionalinterest/pages/ccpr.aspx ) 1. All persons shall be equal before the courts and tri

Consumerism in the Asian societies-- a dominant cause of their social decay

Here I see the problem also*(, inter alia) to be rooted in ''Consumerism''. Indian , proper to say the entire Asian people which includes the Indian, Chinese people as well, - have become immensely consumerist in their behavior. By Consumerism I will now define more accurately what I mean-- Someone who has lost his moral intelligence to be able to differ between an idea and the object which symbolizes the idea. Sometime back I put two facebook entries pertaining to the Consumerism issue. one post related to the Objectives of Mar Exploration Missions set by various counties and the related mindsets, and the other about How the Symbols of an Idea, when they displace the idea itself , they bring down a Dystopian Dysgenics in the entire society. Consumerism is connected with the increased instances of rapes and other immoral behaviors in that the increased and unabashed display of women in near-nudity and highly sensuous, erotic forms for the purpose

संस्कृति , मानसिकता और वैज्ञानिक मिशन के उद्देश्य

तमाम देशों के अपनी अपनी सभ्यता है और विचार हैं। यही विचार उनके वैज्ञानिक और अंतरिक्ष अनुसंधान के उदेश्य को तय करते हैं। उदहारण के लिए : अमेरिकी स्वयं को विश्व कल्याण का नेत्रित्व कर्ता मानते हैं। इसलिए मंगल गृह से सम्बंधित खोजों का अमेरिकन का उद्देश्य पराग्राही जीवन की खोज, जीवन क्या है, उसको समझना, और सुदूर भविष्य में जब धरती किसी खगोलिय कारण से मनुष्यों के रहने लायक न रह जाए तब विस्थापित करने के लिए तैयार करना है। चीनी लोग खपत-खोर(consumerist) किस्म के हैं और हर एक वस्तु की खपत करने का रास्ता दूंडते रहते हैं। उनका मंगल गृह का उद्देश्य है कि कभी सुदूर भविष्य में मंगल के खाद्यानों को मनुष्य के उपभोग के लिए धरती पर लाने का मार्ग प्रशस्त करना। तब जब मनुष्यों की बढाती आबादी धरती के खाद्यानों को पूरी तरह खपत कर चुकी होगी। चीन मौजोदा में धरती का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारतीय लोग आपस में अपने पडोसी से गुप-चुप प्रतिस्पर्धा और ईष्या के लिए जाने जाते हैं। हमारा मंगल गृह पर खोजों का उद्देश्य है वहां भारतीय तिरंगे को जल्दी से जल्दी, अपने प्रतिस्पर्धी से पहले फैलाना और वहां प्राप्त किये गए

A true and honest 'Expert' takes care that he does not take control of the people's Conscience who have reposed faith in him

Who is an expert? Just when a man stops to listen to the inner voice of his heart he starts to become a slave of Someone else's wishes. One of the ways of making a man begin to doubt his inner voice is by way of introducing the ''experts'' in the task. it therefore becomes essential that that a conscitious expert must carry with care his task of delivering his expertise to the service of the people. What is right and what is wrong is left to every man's own judgement because we each have a conscience, an expert should only bring out to the common knowledge those fine points which may affect our judgement of the right and the wrong. Look at this Delhi JLP Bill issue. It is really a question to our conscience as to what is it we are judging to be ''Unconstitutional''- the freedom and autonomy of an elected government to make its own laws , OR the lapse of not complying with a routine and mundane protocol of seeking a permission before proceedi

Corruption, among other things, a consequence of the haphazard laws in Indian system

Life in India is tough for one of the reasons that our laws are not 'streamlined'. By 'streamlined' it is meant that there are so many laws, and arranged- scattered - in so much of a complex way that it is virtually impossible for anyone to speak conclusively with full confidence whether a task can be done in accordance with the normal conscience a man bears and in conformity of all the legalities, OR it cannot be done. Admire the situation of the passage of the Delhi JLP Bill. Even the people who have spent a life time working within the Administration cannot be confident of whether the law is allowed to be passed or not.Look at the dilemma of the so called constitutional "experts". One really takes a heartful laughter as to what kind of expertise they have where even the experts cannot sound to be in one voice!Then how different are the experts from the common people who follow the laws with the help of ordinary Conscience-born knowledge of the law. Rathe

भ्रम और प्रतीकात्मकता

यह मानव मस्तिष्क की अनंत काल से दुविधा रही है कि वह धीरे धीरे किसी प्रतिक और प्रतीक चिन्हों को ही संप्रत्यय(abstract, conceptual) के स्थान पर एक वस्तु समझ लेता है, जो की असल में संप्रत्यय ही है। उदहारण के लिए किसी भी भगवान् की मूर्ति --> मूर्ति मात्र एक प्रतीक है उस संप्रत्यय श्रद्धा सुमन भगवान् का, मगर मूर्ति खुद एक भगवान् नहीं है। मूर्ति खुद में एक पाषाण ही है। परीक्षा के अंक --> अंक मात्र एक सूचक होते हैं संभावित ज्ञान के, और ज्ञान सूचक होता है बुद्धिमानी का , और फिर बुद्धिमानी सूचक है बौद्धिकता का। मगर परीक्षा के अंक स्वयं में बुद्धि, बुद्धिमानी और बौद्धिकता नहीं है। अच्छे अंक वाले व्यक्ति भी बुद्धू होते हैं और अनपढ़ भी बौद्धिक हो जाते हैं। लाल बत्ति कल्चर एक प्रतीक है आज कल के कूटनेता और आम आदमी के बीच के अवयव अंतर का। लाल बत्ती अपने आप में अपराध/असामाजिक नहीं थी। अभी भी लाल बत्ती संवैधानिक पद , अग्निशमन वाहन ,और चिकित्सीय वाहन के लिए मान्य है।

Foul play by the media against the AAP

It is hard to understand what the news channels , e.g. TimesNow and NDTV , understand by the term 'Aam Aadmi'. The perceptions about, and the ethical, moral and the legal understanding of the 'Aam Aadmi' by these big News Editors is beyond my comprehension. Equality, it is known and has been repeatedly mentioned, that, is about justice, not in the creation. The Lal Batti culture is a symbolique of the behaviours in which a person demands a separate status, a different Justice. It is not to literally mean a Lal Batti, the red light beacon on the car. That Arvind wanted two 'big bunglows' is not significant when we compare it with the size of bunglows of the previous chief ministers. Then, how big should be the 'big' to make it to the debate issue of TimesNow is the question. Further, did he not suffer this criticism at that time when the houses were being allowed, and more importantly, DID he not respond to the criticism by changing his choices. Is