Secular Reasoning और Sacramental Reasoning का अंतर
Secular Reasoning और Sacramental Reasoning में भेद होते हैं, हालांकि वह प्रभाव एक जैसे देते देखे जा सकते हैं।
पहले के समय मे जब कोढ़ (Leprosy) ,या छोटी माता (chicken pox) जैसी बीमारियां हुआ करती थी, तो उन्है पूर्व जन्म के बदकर्मों का प्रकोप या फिर इस जन्म में हुई किसी गलती की सज़ा मान कर रोगी को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। एक रोगी से दुसरे स्वस्थ व्यक्ति तक रोग के प्रसार को देखते हुए समाज में छुआछूत विचारधार को बल मिलता था और जन समुदाय अधिक दृढ़ता से ऐसी प्रथाओं का पालन करते थे। रोगी को हेय दृष्टि से देखते और व्यवहार करते थे, शायद अपने को आश्वस्त करने के लिए की अगर उनको यह रोग नही हुए हैं तब इसका मतलब वह अच्छे कर्मों वाले व्यक्ति हैं।
सोचने का यह तरीका sacramentalist है ।
फिर जब secularist विचाधाराओं ने समाज मे पकड़ बनाई तो प्रभाव में वह भी कुछ ऐसे ही थे, हालांकि कारण अलग थे। secularist विचारधारा ने भी कोढ़ और छोटी माता के रोगियों को अलग करके रखने की हिमायत करी। हालांकि कारण germ theory से निकला।secualrist विचारधारा ने कांच से lens का अविष्कार किया।।लेंस से microscope बना और माइक्रोस्कोप से पहली बार इंसानों ने छिद्र विषाणुओं के दर्शन अपनी आँखों से किये और उन पर अध्ययन किये। पाया गया कि विषाणु संपर्क से फैलते हैं। तो उन्होंने संपर्क से फैलने वाले विषाणुओं के रोगों के मरीज़ों को isolate करने की हिमायत करि।।
अब समाज मे पुजारी विचारधारा वाले secramental reasoning में तो isloation जैसी एक प्रक्रिया पहले से ही हो रही थी - छुआछूत यानी untouchability . पुजारी विचारधारा यानी sacramentalist लोगों ने microscope से हुई खोजों को तुरंत अपनी सोच का पुष्टिकरण बता दिया !
हांलकि secularlist और sacramentalist लोगों के सोचने के तरीकों मे अंतर आगे के समय मे और गहरे तरीको से स्पष्ट हो जाता है। secularist लोगो ने न सिर्फ microscope से विषाणु की खोज करि, रसायनों के मिश्रण से साबुन बना कर उनके फैलने से रोकथाम के तरीका भी खोज निकाला। रोगियों के इलाज के लिए रसायन से दवाइयां भी बनाई।
पुजारी मानसिकता यानी sacramentalist इन सब मामलों में चुप हो गए, हालांकि वह लोग आज भी किसी secularist अविष्कार को अपनी पुरानी प्रथा या सोच का पुष्टिकरण करके नए नए साहित्य गढ़ते रहते हैं और अपने को तेज बुद्धि, सत्यवान और अच्छे लोग साबित करते रहते है।
ब्रिटेन के Stonehenge में इंसानों की बलि दी जाती थी। नालियों में इंसानी रक्त बह कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाता था। कहानी गढ़ने वाले इसे आधुनिक अस्पतालों में पाई जाने वाले रक्त संयंत्रों का पूर्वज बताते हैं , जिनमे पतली नालियों में रक्त प्रवाह होता है। आज ऐसी कहानियों से अज्ञान समुदायों को उल्लू बनाया जाता है।
मगर आधुनिक विज्ञान की खोजो का एक अटपटा सच यूँ भी रहा है पुजारी विचारधारा में किया गया झाडफू जिसे पुनः यौवन पाने वाला अर्क या अमर बनाने वाला या सोना बनाने वाला अर्क निकल आये, वही alchemy ही आधार बनी आधुनिक chemistry की।
कोर्ट के फैसलों में आज भी secularist reasoning और sacramental reasoning के अंतरों को समझने की गलतियां आज भी आसानी से करते हैं। खास तौर पर धार्मिक विषयों वाले मुकद्दमों के फैसलों में।
कोर्ट के फैसलों के इस दृष्टि से व्याख्यान जनता में कम ही बातचीत में आता है। sacramentalist तुरंत ऐसे फैसलों में पक्षपात और राजनीति का आरोप लगा कर अपना उल्लू सीधा करने वाला काम कर जाते है।
दिक्कत यह भी है कि कोर्ट में जजों की नियुक्ति के जो तरीके हैं, उसमे पक्षपात या भेदभाव करके अपने किस्म के लोगों को जज के पदों तक पहुंचाने की संभावना पूरी तरह खुली हुई है। तो कोर्ट के सभी फैसलों को हम आसानी से सिर्फ secular तर्क वाला फैसला या sacramental तर्क वाला फैसला मान भी नही सकते हैं।
यह सब अनिश्चितता हमारे न्यायिक तंत्र को और भी अस्पष्ट, विश्वास विहीन , संदेह से भरा हुआ, पक्षपात और भेदभाव करने वाला बना देते हैं।
अभी कुछ एक साल पहले एक बड़े कद के वरिष्ठ अभिनेता भी गौ मांस वाली बहस में कूद पड़े थे और उनका कहना था कि जब अमेरिका में घोड़े का मांस पर प्रतिबंध लग सकता है , तब फिर भारत मे गौ मांस पर क्यों नहीं।
Secular Reasoning और sacramental Reasoning में भेद कर सकने की मानसिक योग्यता की ज़रूरत ऐसे ही पल में होती है।
अमेरिका में घोड़े के मांस पर प्रतिबंध एक secular reasoning से होता है कि अश्व मांस में कीड़े होते हैं।
जबकि भारत मे गौ मांस पर प्रतिबंध एक sacramental कारणों से किया गया है!
Comments
Post a Comment