Does helmet really make our roads more safe?

क्या वाकई में हेलमेट पहनने की अनिवार्यता से मार्ग गमन सुरक्षित बनते हैं ?


गौर से सोचिएगा। क्या वाकई में हेलमेट की अनिवार्यता हमारे देश मे दुनिया की सबसे असुरक्षित सड़को, राज्यमार्गो और महामार्गो को बेहतर और सुरक्षित बनाने वाली कोई क्रांतिकारी आवश्यकता है ? 

अगर रसायन युक्त भोजन जीवनशैली से कमज़ोर हुए आपके चिंतन मस्तिष्क में थोड़ी सी भी तर्क करने की शक्ति अभी बाकी है तो फिर अब आप पूरा दम और ध्यान लगा कर बात पर मंथन करिये --
कि,
कही हेलमेट अनिवार्यता के कानून हमारे मस्तिष्क में पलते कुतर्कों के नतीजा तो नही है, जिनका धरातल पर अंतिम प्रभाव यह है कि वह एक प्रजातन्त्र देश मे सरकार और पुलिस को साज़िश करने का योगदान दे रहे है नागरिकों के विरुद्ध , उनके ऊपर चाबुक चलाने में, तब जबकि हमारे देश की सड़कों के असुरक्षित बन जाने के सभी आवश्यक कारण तो खुद सरकार और प्रशासन की तमाम विफलताओं में ही पड़े हुए हैं। कही ऐसा तो नही है कि हेलमेट अनिवार्यता का कानून एक साजिश है सरकार में बैठी तानाशाही मानिसकता का, जो खुद अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नही कर सकने की हालत में अपनी विफलताओं का आरोप नागरिको पर डाल देती है ?

आप सोच तो रहे हैं ना?


जहां तक हेलमेट की अनिवार्यता के कानून से किसी सामाजिक हित को पूरित होने का सवाल है, तब तो ऐसी कई सारी अन्य छोटी-छोटी कार्यवाहियों को भी अनिवार्य कर देना चाहिए था। उदाहरण के लिए, कुछ sophisticated से angle वालों से तर्कों से हम चाहे तो ऐसे भी कह सकते हैं कि हेलमेट अनिवार्यता सिर्फ दुपहिया पे ही क्यों, चौपहियों पर भी अनिवार्य करने चाहिए। 
  है कि नही? अरे भई, दुपहिया वाहन पर हेलमेट की अनिवार्यता जिस angle से किसी सामाजिक हित को पूरित करती हुई कोई तर्क देती है, तो फिर उसी angle से हम चौपहिया वाहन पर भी तो हेलमेट की अनिवार्यता के तर्क दे सकते हैं।

और फिर, ऐसे उटपटांग, कमज़ोर और अविशिष्ट,अस्पष्ट (vogue) तर्कों में हम हेलनेट की अनिवार्यता को सिर्फ चौपहिया वाहन ही क्यों, पैदल गामियों और साइकिल सवारकों पर भी अनिवार्य करने के भी तर्क दे सकते हैं? 

सिर्फ हंसिये ही नही, मंथन करके सोचिए भी, है कि नही ?


कमजोर मस्तिष्क में यदि थोड़ी-सी भी तर्क करने की शक्ति बची हुई हो तब सबसे प्रथम इस सत्य को तलाश करने में लगा लें कि किसी भी वस्तु या क्रिया को हमेशा हम कही न कही सामाजिक हित से जोड़ सकते है -- चाहे हल्के angle से, चाहे sophisticated से angle से। बल्कि "सामाजित हित तर्क" को तो दो विपरीत विचारो पर एक संग भी लगाया जा सकता है। मिसाल के तौर पर, जिस मुस्तैदी से हेलमेट की अनिवार्यता पर लगता है, उतनी ही मुस्तैदी से हेलमेट नही पहने की अनिवार्यता पर भी लगया जा सकता है। और फिर, सिर्फ हेलनेट ही क्यों, पैरों में जूते, हाथों में driving gloves और skating वाले कवच, घुटनो और कोहनियों पर सुरक्षा कवच, आंखों पर चश्मा इत्यादि सभी पर भी ऐसे उटपटांग कुतर्कों से हम अनिवार्यता को साबित कर सकते है, बस यदि प्रशासन दंड हमारे हाथों में दे दिया जाए। 

असल मे हेलमेट को अनिवार्य करने का कानून सरकारी तंत्र के साज़िश है नागरिकों के विरुद्ध !

एक आदर्श प्रजातन्त्र में किसी भी वस्तु को अनिवार्य करने का उपयुक्त मार्ग तो यूँ होना चाहिए था कि किसी सामाजिक त्रासदी पर वैज्ञानिक शोध द्वारा यह सर्वप्रकट हो जाये कि अब तो इस कार्य को अनिवार्यता से लागू करने पर उस त्रासदी पर रोकथाम प्राप्त किया जा सकता है। बल्कि आश्चर्यजनक रूप से हमारी न्यायपालिका में शराब पी कर गाड़ी चलाने के विषय मे प्रतिबंध के तर्क महमार्गो से 500 मीटर दूरी तक का ही प्रमाणित हो सके है। शायद शराब विक्रय लॉबी वहाँ सक्रिय थी, इसलिए बच गयी। मगर हेलमेट अनिवार्यता विषय पर कोई नागरिक हित की लाबी नही है। बल्कि हेलमेट बनाने वाले उद्योगों की लाबी अधिक सक्रिय हो सकती है।

वैज्ञानिक शोध ही उचित मार्ग होती है अनिवार्यता के कानून लाने के लिए ,या की कोई सर्वमान्य consensensual agreement। हेलमेट अनिवार्यता कानून में प्रभावकारी वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नही है कि हमारे देश की सड़कें,जो की दुनिया की सबसे असुरक्षित महामार्ग में शामिल है, कैसे हेलमेट की अनिवार्यता कोई विशिष्ट योगदान दे कर उन्हें सुरक्षित बनाती है।

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता