जमींदारी मानसिकता से आधार कार्ड तक

मध्यकालीन युग मे एक अत्यंत मनोविकृत ज़मीदार था। मनोविकृत था, तो जाहिर बात है कुबुद्धि, बदमिजाजी, और क्रूर भी था।
अक्सर उसके क्षेत्र में बारिश कम होती थी। तो इस वजह से खेतों में पैदावार कम हो जाती थी। ज़मीदार को जब जब पैदावार कम होती लगी वह अपने खेत पर काम करने वाले मुलाज़िमों को मारता पीटता और सताता था, उनकी श्रमिकी काट देता था, यह कह कर की "यह साले कामचोर है, काम से जी चुराते है, आलसी है"।
तो वह पैदावार सुधारने के तरीकों की तलाश करने लग गया। कि कैसे खेत के मजदूरों को काम चोरी में पकड़ पकड़ के और अधिक और क्रूर दंडित किया जाए कि इनकी रूह कांप जाए  , दुबारा कभी यह लोग काम चोरी नही करें।
फिर 21वी शताब्दी आ गयी। उस ज़मीदार को एक नई टेक्नोलिजी के बारे में पता चला। अगर खेतों के दरवाजों पर बायोमेट्रिक यंत्र लगा कर मज़दूरों के आधार कार्ड से जोड़ दें तो 'यह साले' जब कभी भी कामचोरी करेंगे, इनको झट से पकड़ कर इनकी श्रमिकी काट दूंगा।

मनोविकृत ज़मीदार को लगता था कि खेतों में पैदावार बढ़ाने के लिए टेक्नोलीजि को ऐसे ही प्रयोग किया जाता है। इसी लिए सभी लोग टेक्नोलीजि के प्रयोग पर इतना जोर देते हैं।

खेतो में सिचाई और संसाधनों को बेहतर करने के लिए टेक्नोलॉजी के प्रयोग पर उसका दिमाग बिल्कुल भी नही चला था।

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