भारतीय तंत्र और अंधेर नगरी का उत्थान
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Via Mani M
पूछ सकते है अंधेर नगरी का क्या मतलब? तब आप बताएं दिल्ली में लोग यदि महिनों से सीलिंग के रोने में बार-बार दिल्ली बंद कर रहे है तो क्या नहीं लगेगा कि कोई देखने, सुनने, समझने वाला नहीं है? यदि भारत की एकलौती फुलप्रूफ रही परीक्षा संस्था सीबीएसई लाखों लडकों को रूला दे तो राज कहां है? यदि संसद कई सप्ताह से ठप्प रहे तो क्या कहेगें? यदि तमिलनाडु में कावेरी पानी के हाहाकार में सांसद आत्महत्या तक की धमकी देने लगे तो क्या सोचा जाए? यदि देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट अपना एक जज नियुक्त नहीं करा पाए, उसके चीफ जस्टीस के खिलाफ महाअभियोग का हल्ला बने तो क्या कहेंगे? यदि बंगाल, बिहार दोनों पक्ष-विपक्ष की सरकार के बावजूद सांप्रदायिक आग में जले तो क्या माने? यदि सरकारी बैंकों के बाद प्राइवेट बैंकों में भी घोटालों के किस्से बनने लगे, सरकारी बैंक लूट से लगभग दिवालिया स्थिति में आ जाए और न सरकार जिम्मेवारी ले न रिर्जव बैंक तो क्या सोचेगें? किसान टमाटर चार रूपए धड़ी की रेट में बेच रोता मिले, नौजवान बेराजगारी में सोशल मीडिया पर पकौड़ा प्रलाप करता मिले तो क्या कहेगें?
संदेह नहीं कि दुनिया के परिपेक्ष्य में भारत स्थाई अंधेर नगरी है। भारत के लोग राजा की जवाबदेही न जानते है और न मानते है। सब कहते है कोई नृप हो हमें का हानी! हम हिंदू नादिर शाह से लूटे या नीरव मोदी से लुट जाए, सभी स्थितियों में यही सोचेगे कि किस्मत में यही था। हिंदू अंधेरे में रहने, आंखों में पट्टी बांध कर जीने, भक्ति में खोए रहने की आदत लिए हुए है! हम अंधेरे के वे जुगनू है जो ख्याल पाले रहते है कि देखों अपनी यह जगमगाबट दुनिया में कैसी बिरली है। और अपना मानना है कि एक औसत हिंदू जैसे सोचता है वैसे उसका राजा भी सोचता है। न प्रजा को अंधेरा समझ आता है और न राजा को।
Via Mani S
बहोत सही।
कल्पनाओं में जा कर अगर मुझे प्रशासनिक तंत्र को विकसित करके राष्ट्र निर्माण के प्रयास करने हो तो सबसे प्रथम मैं कुछ सर्वमान्य सिद्धांतों को रचता। वैसे अब इस अवस्था मे मुझे लगता है की इन सिद्धांतों को रचने की बजाए किताबों में पहले से संरक्षित करे गए, पुराने विश्वविख्यात दार्शनिकों से ही ले लेना चाहिए।
सोचें तो मैं इसमे नया कुछ नही करूंगा। हमारे तंत्र में यही काम काम तो पहले से ही हुआ है। हमारे लोगों ने गलती करि है उन अंतरराष्ट्रीय सर्वमान्य सिद्धांतों का indianisation करते समय।
मेरे व्यक्तिगत खोज से एक अकेली गलती जहां से यह सब अंधेर नगरी आज हमें भुगतनी पड़ रही है वह है कि हमने राष्ट्रपति पद अपना लिया, बजाए किसी राजशाही तंत्र को अपनाने के !
क्योंकि हमारा वर्तमान प्रशासनिक और राजनैतिक संसदीय तंत्र ब्रिटेन की नकल पर है और अधिकांशतः भारत सरकार अधिनियम 1935 पर आधारित है..
@%@^@&
इसलिए यह तंत्र ब्रिटेन के तंत्र का नकल माना जा सकता है। और क्योंकि ब्रिटेन का तंत्र वहां की इतिहासिक घटनाओं से trial एंड error से विकसित हुआ था, उसका सबसे प्रमुख अंश वहां की राजशाही ही है जो कि आज तक कायम है। पूरा का पूरा तंत्र राजशाही की शक्तियों को संसद के द्वारा शक्ति संतुलन के सिद्धांत पर टिका हुआ है। राजशाही आज भी royal charter यानी शाही फरमान पर ही चलती है, और act of parliament से शक्ति संतुलन प्राप्त करती है।
भारत मे संविधान निर्माता समिति राजशाही से पूर्वग्रहीत थी। तो उन्होंने राष्ट्रपति बैठा दिया। और उसका चयन खुद संसद और राजनेताओं को सौंप दिया। हुआ ने महामूर्ख काम। राजनेता क्या अपना शक्ति संतुलन खुद करेंगे ??
तो अब यहाँ अंतरात्मा की ध्वनि सुनने वाला कोई पद नही बचा है, खास तौर पर उच्च राजनेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ अभियोगों में।
झेलिया, अंधेर नगरी।
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