हेलमेट पहनने की अनिवार्यता और Kakistocracy


जब मूर्ख व्यक्ति तंत्र पर काबिज हो जाते है, kakistocracy आ जाती है तब ऐसा ही होता है।

हमारे देश की सड़कें दुनिया की सबसे असुरक्षित सड़क है। मगर इन्हें सुरक्षित बनाने के लिये ज़ोर दिया जाता है हेलनेट पहने और सीट बेल्ट लगाने की अनिवार्यता पर । बल्कि बड़े बड़े खिलाड़ी , अभिनेता और राजनेता भी इस मूर्खता भरे स्वांग में शामिल होकर सरकारी भाड़े पर टीवी पर चले आते हैं पाठ पढ़ाने की यह दोनों कितनी आवश्यक वस्तु हैं।

जबकी सच यह है कि किसी भी परिवहन दुर्घटना के होने या उसे रोकने में हेलमेट और सीट बेल्ट का योगदान एकदम शून्य होता है। यह दोनों वस्तु तो दुर्घटना हो जाने के उपरांत ही अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सकती हैं, दुर्घटना की चोट को गंभीर या जानलेवा होने से रोक कर। 

मगर मूर्ख देश में सभी कोई अपने कर्तव्यों से बचना चाहता है। जाहिर है, समझदारों के कानून ने इसीलिए ही तो न्यायसूत्र में सबसे पहले ही बुनियादी नियम लिख दिया था कि 'कोई अपना गुनाह कभी भी कबूल नही करता है'। तो बस, जिस पुलिस और प्रशासन के पास सड़क और परिवहन को सुरक्षित बनाने की ज़िम्मेदारी है, और यदि उसके ही पास कानून लिखने की शक्ति भी हो, तो ज़ाहिर है की वह अपने गुनाह को कबूल करने वाले कानून क्यों लिखेगा !? क्या सरकार में बैठे नौकरशाह अपने ही हाथों से कभी कानून लिखेंगे की सड़क की हालात को जानने के लिए आज से मुनिसिपल कमिश्नर साहब को लाल बत्ती गाड़ी नही मिलेगी, उन्हें रोज़ पैदल ही घर से दफ्तर आना-जाना होगा, जिससे उन्हें सड़क के हालात पता रहें। 
भई , सीधी बात है कि गलती करने वाले को ही कानून लिखने को मिलेगा तो कानून यूँ ही लिखा जाएगा की सड़क और परिवहन के बढ़ते सांख्यकी के लिए खुद नागरिक ही जिम्मेदार है कि वह अनिवार्यता से हैलमेट नही पहनता और सीट बेल्ट नही लगाता !

मूर्खों के देश में एक बार मलेरिया फैल गया। तंत्र पर ऐसे ही स्वार्थी , अयोग्य और मूर्ख लोग काबिज़ थे। जब जनता की शिकायत पहुंची तो उन्होंने लंबी मीटिंग करके कानून बनया सभी को quinine की टेबलेट रखनी होंगी। 
जनता की फिर से शिकायत पहुंची की वह उपाय गलत था, उससे कुछ सुधार नही हुआ है। नौकरशाहों ने फिर से लंबी लंबी मीटिंग करि और अबकी बार जगह जगह चौराहों पर सिपाही तैनात कर दीये की लोगों को रोक रोक कर चेक करे कि उन्होंने quinine टेबलेट रखी है या नहीं।
लोगों ने फिर से कहा कि अभी भी मलेरिया रोकथाम में कुछ सुधार नही हुआ है। फिर से लम्बी लंबी मीटिंग हुई, और इस बार प्रचार अभियान का सहारा लिया गया। बड़े बड़े क्रिकेट स्टार और फिल्म अभिनेता लगाए गए प्रचार में कि सभी नागरिक अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए quinine की टेबलेट रखा करें। एक बड़े कद के, मगर बहोत छोटी बुद्धि के नेता जी ने और भावुक भाषण रेडियो पर दे दिया की वह कैसे बिना quinine टेबलेट के घूमते देश के युवा को आत्महत्या करते हुए देखते हैं  , जो कि देश के भविष्य को अंधकार में ले जाने जैसा है। इसलिए वह युवाओं से अनुशासन से देश के विकास में योगदान देने के लिए आनिवार्यता से जेब में quinine टेबलेट ले कर चलने की विनती करते हैं।

जब अभी भी हालात में सुधार नही हुआ तब फिर कानून की गाज और गहरी करते हुए कानून में "सुधार" हुआ कि अब से बिना Quinine टेबलेट चलने पर जुर्माना बड़ा कर हज़ार रुपये कर दिया गया है। कुछ जगहों पर किसी अन्य व्यक्ति को अपने संग चलने वालों पर भी quinine टेबलेट ले कर चलने का कानून बना दिया गया कि उसके लिए भी quinine की गोली आपको ही रखनी होगी।


मूर्खदेश मे फंसी कुछ average बुद्धि के समझदारों कहते ही रह गए की मलेरिया के रोकथाम के लिए उपाय quinine की गोली की अनिवार्यता नही, बल्कि थमे पानी को सुखाना, नालो की सफाई और बहाव बनाए रखना, सुबह शाम मौहल्लों और बागो में धुंवा छिड़काव ,  गंदगी को नष्ट करना, झाड़ झंकार को नियांत्रित करना है। 

मगर मूर्ख देश में ऐसे average लोगो को सुनता कौन है ?

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