देश की अशिक्षित अजागृत जनता को गुमराह करने वाला उच्च शिक्षित वर्ग

The problem is not just the ignorant masses that abound Indian population which is generally seen as the reason for wrong and mistaken political choices our democracy has yielded. Problem is also because of those high qualified people who are truly of crooked thinking and they use their persona to mislead the ignorant masses into making such political choices by which they may fulfil their own agendas.
   My reference in the above context is with Mr Chetan Bhagat and the likes (Kiran Bedi, Subramanian Swamy, Mr Satya Pal Singh, ~~). That 31% which is a unyielding supporter of their own political choice. They sincerely believe that good of this country can only and exclusively be secured by victory of their political choice. These people don't stand for and conmonly agreed ideal and the principles on how to rationanlise what should be good for the large and myriad communities within this country. They simply see the victory of their group to be serving everyone's purposes. They are the ones who mislead that largely ignorant masses which India has in abundance.  
  To me, it is these wicked people who are the greatest culprits of India's sorrows.
    A few of the misguided people seem to be coming home now. Subramanian Swamy and Ram Jethmalani have openly admitted how have been fooled and deceived into giving their support. But the 31% is too big to be affected by a few homecomings.

हिंदी अनुवाद
समस्या सिर्फ अशिक्षित जनसँख्या नहीं है जो की इस देश में सर्वाधिक विस्तृत है, और जिनके गलत व्यक्ति को दिए मतदान को हम दोषी मानते है की इस देश पर गलत राजनैतिक नेतृत्व देने के लिए । वरन, समस्या वह पढ़े लिखे शिक्षित लोग है जो की धूर्त बुद्धि और कुटिल अंतर्मन के हैं, और जो अपने व्यक्तित्व , अपनी जनछवि के प्रभाव से उस अशिक्षित अजागृत जनता को गुमराह कर रहे होते हैं किसी विशेष राजनैतिक दल को मतदान के लिए, ऐसा दल जो की उनके व्यक्तिगत हितों और महत्वकांक्षाओं को साधता है।
    मेरा स्पष्ट सन्दर्भ श्री चेतन भगत और उनके जैसे लोगों से है (किरण बेदी, सुब्रमणियम स्वामी, सत्यपाल सिंह, इत्यादि)।  मेरा सन्दर्भ उस 31प्रतिशत आबादी से है जो की किसी भी सूरतेहाल में अपनी उस ख़ास पोलिटिकल पार्टी को ही मत देने से नहीं चूकेगी, चाहे वह दल देश का कितना भी अनर्थ कर डाले। वह 31% से है जो की पूरी सत्यनिष्ठा, और निष्कपटता से यह समझती है की देश का भला करने की सिर्फ और सिर्फ उसी राजनैतिक पार्टी को ही जीतना होगा। वह 31% जो की किसी आदर्श, किसी सिद्धांत के लिए नहीं मतदान करती है, वह सर्वसम्मत सिद्धांत जिनसे यह तय किया जा सके की हमारे बहुरंगी और विशाल भिन्नता वाले देश के लिए क्या उचित प्रशासन नीति रहेगी और क्या नहीं। वह लोग जो की सिर्फ अपने राजनैतिक दल की विजय में सभी देशवासियों का हित समझते हैं। यह वह लोग है जो की देश की बाकी अशिक्षित आबादी को गुमराह करते हैं।
    मेरे विचार से इस देश के जो कुछ गलत हो रहा है उसके असली दोषी यह उच्च शिक्षित, मगर कपट अन्तर्मन् वाले लोग हैं।
    अभी हाल के दिनों में ऐसे ही कुछ लोगों की घर वापसी देखने को मिली। सुब्रमणियम स्वामी और राम जेठमलानी ने सबके समक्ष अपनी बेवकूफियों को स्वीकार कर लिया है की उनको धोखे मिला है किसी विशेष राजनैतिक दल को समर्थन दे कर। लेकिन अभी भी यह एक दो घर वापसी कम पड़ेंगे उस 31% वाली विशाल आबादी की आँखें खोलने के लिए।

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