सर्वत्र बुद्धू

कल्पनाओं के देश 'अंधेर नगरी' में पूंजीवादी ऐश काट रहे थे। वहां 'चोन्ग्रेस' नाम के राजनैतिक दल सत्ता में था और जनता को अंधेरे में रख कर राजकोष और राष्ट्रिय सम्पदा को पूँजीवादियों के हाथों बेचे जा रहा था। कुछ गैर-सरकारी एक्टिविस्ट , खेजरीवाल ,अंधकार से लड़ने के लिए सूचना का कानून जैसी नीतियों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
   तो चोन्ग्रेस सरकार पूंजीपतियों के साथ मिली-भगत में खा-पी भी रही थी, और जनता में पकड़ बनाये रखने के लिए खेजरीवाल जैसे एक्टिविस्टों को बढ़ावा भी देती थी। भाई वोट जनता का था, और पैसा पूंजीपतियों का। अंधेर नगरी के बुद्धू जनता आखिर रहेंगे बुद्धू के बुद्धू ही। जनता को बुद्धू बनाने वाले चोन्ग्रेसि असल में खुद भी बुद्धू की जात ही थे और अनजाने में सूचना कानून को पारित कर बैठे। और ऊपर से उस कानून को लाने की वाहवाही भी लूटने में लगे थे। टीवी,रेडियो सब जगह प्रचार करवाते घूम रहे थे।
   सुसु स्वामी जैसे कुछ वकीलि राजनेता ने सूचना कानून का सहारा लेकर पूंजीपतियों और चोन्ग्रेस की मिलीभगत के घोटाले पकड़ लिए। मामला सर्वोच्च न्यायलय तक गया और पूंजीपति यह सब मामले हार गए। पूंजीपति वर्ग में सारा दोष चोन्ग्रेस के दोहरे खेल का माना गया। अगर खुद भी खाती थी तब फिर सूचना कानून लाने की क्या ज़रुरत थी ?
  मगर अब क्या ?
चोन्ग्रेस को सजा दो। चोन्ग्रेस की हिम्मत कैसे हुई कि व्यापारी वर्ग से ही "धंधा"  करेगी। अभी सबक सिखाते हैं।
कैसे ?
    चोन्ग्रेस को अल्पसंखाओं का तुष्टिकरण में फँसाओं। चोन्ग्रेस यह तो थोडा बहोत  करती आ ही रही थी।  बस इसको वही फसाओ। और उधर 'चाभपा' में अपने आदमी को आगे बढ़ा कर तैनात कर दो अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए।
   पढ़े-लिखे IIT पास पर्रिकर, पुराने नेता अडवाणी, ज्यादा सुशासन प्रमाणित नितीश जैसे को पछाड़ कर एक अनपढ़, चाय बेचने वाला, दंगाई, सरकारी तंत्रों का दुरपयोग और निजी भोग करने वाला 'भोन्दु' चाभपा का नेता बन गया।
  इधर सुसु स्वामी भी बुद्धू के बुद्धू निकले। समाजवादी प्रदेश के समाजवादी यादव को बच्चा बुलाने वाले सुसु स्वामी खुद भी बुद्ध निकले और भोन्दु को चुनावी समर्थन दे बैठे। भोन्दु ने उनको वित्त मंत्री बनाने का झांसा दिया था।
  वरिष्ट अभिवक्ता राम मालिनी भी उल्लू बनाये गए। वह चोन्ग्रेस के घपलों को पहले से ही जानते थे इसलिए उनको भी लगा की भोन्दु प्रधानमंत्री बनेगा तब अंधेर नगरी में सुधार आएगा।
   चुनाव हुए, और चोन्ग्रेस के घोटालों से त्रस्त जनता ने भोन्दु के पीछे बैठे पूंजीपन्तियों को अनदेखा कर, सुसु स्वामी और राम मालानी के कहने पर भोन्दु को ही भोट दे कर जीता दिया। बहोत सी बुद्धू जनता अल्पसंख्यकों की घृणा में भोन्दु को भोट दे आयी क्योंकि भोन्दु की पहचान ऐसे दंगो से ही थी। उसके जीवन की असल उपलब्धि बस यही एक तो थी। बाकी वह मॉडल तो प्रचार और विज्ञापन का छल था। चुनावों के बाद में 'सोहार्दिक पटेल' ने उसकी भी पोल उधेड़ दी थी।
    भोन्दु ने सब हाँ-हाँ करके सारे कर्म ठीक उल्टे, ना-ना वाले करे। सबसे पहले तो सूचना कानून को लगाम में लिया। और घृणा रोग से पीड़ित अपने समर्थकों से विकास के नाम पर बुद्धू बना कर असल मंशाओं को ढक लिया।
   सुसु स्वामी का तूतिया कट गया था। भोन्दु ने उन्हें कोई मंत्री तक नहीं बनाया। कैसे बनाता। पिछली चोन्ग्रेस सरकार में सुसु ने ही तो इन्ही पूंजीपन्तियों को झेलाया था। वही तो भोन्दु के असल आका थे। वित्त मंत्री भोन्दु ने इन्ही पुंजिपन्तियों के वकील 'भरून जैटली' को बनाया।  राम मालिनी ने तो सार्वजनिक तौर पर मान लिया की भोन्दु ने उनको बुद्धू बना दिया है। और सुसु ने भी टीवी इंटरव्यू में मान लिया वह वित्त मंत्री बनने के झांसे में बुद्धू बना दिए गए हैं।

   अंधेर नगरी का नामकरण बिना कारणों से नहीं था,भई। यहाँ सभी बुद्धू बनाये गए है। पूंजीपन्तियों को सुसु स्वामी ने। सुसु ने समाजवादी यादव को बच्चा बुद्धू बनाया। अमूल गांधी को बुद्धू बकते थे। बुद्धू जनता ने सुसु से बुद्धू बन कर भोन्दु को प्रधानमंत्री बनाया। भोन्दु तो पूंजीपन्तियों का चिंटू है ही। उसने सुसु को ही बुद्धू बना दिया। हो गया 'बुद्धू चक्र' पूरा। किसने किसको बुद्धू बनाया , कुछ पता नहीं मगर बुद्धू सभी कोई बना है। हो गया अंधेर नगरी नाम सिद्ध।
   और जो सब समझ रहे हैं वह अंधेर नगरी वासी होने की बुद्धू गिरी में नित दिन बुद्धू बन रहे हैं।

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