बौद्धिक कपट का श्राप है हमारे समाज पर

Mass ignorance and unawareness is not the bane on this country..
it is the INTELLECTUAL DISHONESTY which is the curse on our society

अशिक्षा और सामाजिक अबोधता हमारे समाज का दोष नहीं है..
असल श्राप तो बौद्धिक कपट है जिससे हमारा समाज पीड़ित है।

जस्टिस मार्कंडेय काट्जू अपने फेसबुक के एक लेख में वर्तमान भारत में हो रही सोशल मीडिया क्रांति में बौद्धिजीवियों की भूमिका का विषय उठाते हुए बताते है की कैसे अतीत में फ्रांस की क्रांति से पहले बेर्तण्ड रुस्सेल जैसे लेखको ने अपने लेखों के माध्यम से उस क्रांति के के परिणाम को प्रभावित किया और फ्रांस को सामंतवाद से मुक्ति दिल का एक समान अधिकार वादी समाज दिया। फ्रांस की क्रांति की सीख - लिबर्टी (स्वतंत्रता), इक्वलिटी( परस्परता), फ्रटर्निटी (भाईचारा) - ऐसे बुद्धिजीवियों के लेखों का परिणाम थी। जस्टिस काटजू का मनना है की वर्तमान भारत को भी ऐसे ही बुद्धिजीवियों की आवश्यकता आन पड़ी है जो की सोशल मीडिया के माध्यम से आ रहे बदलाव और उथल पुथल में हमारे देश को नया मार्ग सूझ सकें।
    वर्तमान भारतीय समाज दोगले पन वाला, पाखण्ड वाला, "थूक कर चाटने" वाला समाज है। हम सब इसकी निंदा करने के व्यसन से पीड़ित हो गए है, मगर इसके कारणों की समीक्षा बहोत कम ही लोग कर रहे हैं। शायद यह हमें नए सिरे से बुद्धिजीवी भूमिक अदा कर सकने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होगी जो की समाज को कुछ नए सर्वसम्मत आदर्श और सिद्धांत दे सके जिनको हम आम सहमति का मापदंड में स्वीकार करे। तभी हम अपनी सामाजिक पाखण्ड से मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे और अपने सर्वदा दोष निकालने के व्यसन से निजात भी।
   वर्तमान के बुद्धिजीव असल में अभी भी कपट के दोष से पीड़ित है। वह किसी एक दोष तो निकाल देते हैं, मगर फिर खुद भी किसी अन्य रूप में उसी दोष को दोहरा रहे होते हैं। इनकी आलोचनाओं का सार बस इनकी खुद की पसंद और खुद की मर्ज़ी चलाने का मार्ग बनाने का होता है। जो गलत हो रहा होता है, वह वैसा का वैसा ही गलत ज़ारी रहता है, बस पीड़ित और सितमगर के पात्र बदल जाते हैं। तो एक तरह से वर्तमान के बद्धिजीवि एक प्रकार का कपट कर गुज़रते है हमारी विशाल अशिक्षित आबादी के साथ। एक धूर्तता, जो की प्रत्येक आलोचल का मुख्य चरित्र दोष बन कर सामने आने लगा है।

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