गोवर्धन पर्वत पूजन का प्रसंग वर्तमान की घटनाओं के परिपेक्ष में

महाभारत की कथा में गोवर्धन पर्वत का पूजन आज के विचारों में प्रासंगिक होगा।
  जब इंद्र के प्रकोप से वृंदावन में पशु और मानव जीवन अस्तव्यत होने लगा तब गाँव वाले एकत्र हो कर इंद्र से क्षमा याचना करने लग गए की यह उन्हें किस पाप की सजा मिल रही है। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर धारण करके उनकी और सभी पशु पक्षियों की रक्षा करी थी इंद्र के प्रकोप से।
   उसके उपरांत कृष्ण ने गांव वालों को यही शिक्षा दी थी की अब उनके पूजन का पात्र यह इंद्र नहीं बल्कि वह सब हैं जो उनको आज का जीवन जीने में सहायता करते हैं, या उनकी जानमाल की रक्षा करते हैं। पूजन का पात्र यह गोवर्धन पर्वत है जो इंद्र के प्रकोप से उठी आंधी और तूफ़ान को रोक कर गाँव की रक्षा करता है। पूजन का पात्र यह गौ धन है (गाय) जिससे प्राप्त आहार के भिन्न स्वरुप सारा जीवन हमारा पोषण करते हैं। गाय की नर संताने हमारे खेत खलिहान जोतने में उपयोग होते हैं। मादा संतान हमें दुग्ध देती हैं। उनके गोबर से प्राप्त कांडों से हमारे चूल्हे जलते हैं। उनके मूत्र को औषधि की तरह उपयोग किया जाता है।
       पौराणिक कथा में देखें तो शायद यह वह प्रसंग है जिससे हिन्दू धर्म में गायों के प्रति सम्मान का भाव आरम्भ हुआ था। अन्यथा हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है जिसमे सभ्य आचरण, आर्य प्रवृत्ति, और विधा के प्रति झुकाव ही इसे परिभाषित करता है। हिन्दू धर्म में सभी विचारधाराओं का सहअस्तित्व है, यहाँ तक की प्रत्यक्ष विरोधी विचारधाराओं का भी। इन विरोधी विचारधाराओं में सामंजस्य की विधि न्याय मानी गयी है, और इसलिए न्याय ही धर्म हैं। महाभारत युद्ध के सार में भी हमें धर्मयुद्ध का यही अर्थ दिखाई देगा। धर्म यानि कर्तव्य का पालन, सद आचरण और न्याय के प्रति सम्मोहन। हिन्दू संसकरों में दूसरे आचरण इसकी पुष्टि करते हैं की न्याय का पालन ही वास्तव हिन्दू धर्म है। शास्त्रार्थ, प्रमाण के नियमों का अन्वेषण, सरस्वती और वेद यानि ज्ञान का स्मरण और श्रुति संग्रह, अहिंसा इत्यादि क्रियाएँ हिन्दू धर्म के केंद्र आचरण में इसलिए लिए विक्सित हुए थे।
   हमें आज की घटनाओं में सन्दर्भ में कृष्ण की गाँववालों को दी शिक्षा को समझने की जरूरत है। हमें पुनर्समीक्षा की आवश्यकता है की वह क्या सब है जो हमारे वर्तमान के, आधुनिक काल में जीवन जीने के लिए सहायक है, या हमारे जानमाल की रक्षा करते हैं। जैसे कृष्ण ने इंद्र का पूजन का विरोध करके अपने युग के रूढ़िवाद का अंत किया था, वैसे ही हमें आज की कुछ अर्थ लुप्त मान्यताओं का विरोध करके वर्तमान के रूढ़िवाद का अंत करना होगा।
   आज के विलुप्तप्राय पशु तो सिंह है, गज है, जटायु है, सर्प है। आधुनिक जीवन पर पर्यावरण प्रदुषण का खतरा मंडरा रहा है जो की हमारी नदियों को जीवन संकट रसायनों से दूषित कर रहा है, और वायुमंडल तापमान की वृद्धि  का कारक है। हमें अगर पूजन करना ही है तब पूजन का पात्र को एक बार फिर से बदल कर उनको बनाना होगा जो की जीवन की रक्षा कर सकें वर्तमान काल के खतरों से।
   किसी रूढ़िवाद में फँस कर बनारस में इलाहबाद उच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद गणेश प्रतिमा का गंगा में विसर्जन के नाम पर हिंसा, या की दादरी में किसी का गौ मांस खाने की शंका के नाम पर हत्या किसी भी रूप में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधत्व नहीं करते हैं।

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