जस्टिस मार्कंडेय काट्जू की वैज्ञानिक विश्लेषण की प्रतिभा और bold old man की भूमिका

जस्टिस मार्कंडेय काट्जू हमारे देश के नए कटू-सत्य वाचक की भूमिका निभा रहे हैं।
  जस्टिस काट्जू ने हाल के दिनों में अपनी फेसबुक पोस्ट के द्वारा न सिर्फ वर्तमान काल की राजनैतिक हस्तियों को आढ़े हाथों लिया है, बल्कि अतीत और स्वतंत्रता काल की महान विभूतियों, जिनमे की गांधी जी, सुभाष बोस, रबिन्द्र नाथ ठाकुर, और बाल गंगाधर तिलक सम्मलित हैं, के सन्दर्भ में भी अनकहे कटु विश्लेषण प्रस्तुत किये हैं। बेशक अपनी आस्था के स्वाधिकार में आप जस्टिस काट्जू के विचारों से सहमत या असहमत होना चाहेंगे। मगर फिर भी तर्क की कसौटी पर जस्टिस काटजू के ज्ञान को, तथयिक जानकारियों के संग्रह को, और वैज्ञानिक मानसिकता से परख करने की पद्धति को पदक अर्पण करना ही पड़ेगा।
    वैज्ञानिक अन्वेषण की प्रक्रिया को हम एक तरह से एक किस्म की मानसिकता मान सकते हैं। जिन व्यक्तियों में वैज्ञानिक अन्वेषण और विश्लेषण का व्यवहार विक्सित हो जाता है वह जीवन के हर क्षेत्र में इसी वैज्ञानिक विश्लेषण का मुजाहिरा करते हैं।
  वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में छात्रों को वैज्ञानिक विश्लेषण के प्रति जागरूकता तो प्रदान करी जाती है मगर पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है। गणित अथवा कंप्यूटर विज्ञान के छात्र logic तथा algorithm जैसे विषयों को पढने से काफी हद तक एक वैज्ञानिक विश्लेषण के स्पष्ट चिंतन व्यवहार को विक्सित करते है। मगर अपने पर्यावरण में वह फिर भी सत्य अनुसन्धान के व्यवहार को निभाने से संकोचते हैं। वह सामाजिक अस्वीकारिता के भय से पीड़ित रहते है की कहीं अत्यधिक कटु-सत्य अन्वेषण उनको असामाजिक हदों की अस्वीकारिता तक ले गया तब वह अलग-थलग, और बहिष्कृत हो जायेंगे।
   वैज्ञानिक अन्वेषण का व्यवहार प्रशिक्षित करने का दूसरा कार्य क्षेत्र विधि और न्याय अध्ययन हैं। विधि-विधान क्षेत्र में तथ्यों और प्रमाणों का विश्लेषण वैज्ञानिक तर्कों पर परख कर किया जाता है। इसलिए अक्सर करके उच्च श्रेणि के अभिवक्ताओं और न्यायधीशों में वैज्ञानिक आचरण का पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त कर लेना स्वाभाविक बन जाता है। संभव है की जस्टिस काट्जू भी कुछ इसी प्रकार का जीवन यापन करके वैज्ञानिक चिंतन के व्यवहार में कुशल बन गए होंगे, और जो की सेवानिवृति के बाद भी उसके संग चल रहा है।
   जस्टिस काटजू सामाजिक राजनैतिक विषयों में इन दिनों bold old man की भूमिका अदा कर रहे हैं। उन्नीस सौ अस्सी के काल में फ़िल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन जिस प्रकार की चरित्र की भूमिका निभाते थे, समय काल में फ़िल्म आलोचकों ने उसको एक संग्रह में angry young man का नाम दिया था। आज जस्टिस काटजू वास्तविक जीवन में bold old man की भूमिका में दिख रहे है, वह भी हमारे इर्द गिर्द हम सबको स्पर्श करने वाले विषयों में।
    जस्टिस काट्जू उम्र के जिस पड़ाव पर है वह अपने विचारों की प्रस्तुत करने में उसके राजनैतिक और सामाजिक प्रभावों की चिंता करते बिलकुल नहीं दिखते हैं। वह असामाजिक होने के भय, अथवा सामाजिक बहिष्कृत हो जाने के भय से परे जा कर कटु सत्य विचार को सब के समक्ष लिख देते हैं। 
   एक साधारण दृष्टिकोण से कभी कभी ऐसा लगता है की जस्टिस काट्जू मन-मस्तिष्क से स्वस्थ नहीं है क्योंकि वह एक कतार में सभी नामी गिनामि विभूतियों की आलोचना करते दिखते हैं। मगर तब शायद हम जीवन के सत्य को भूल जाते है कि एक perfect व्यक्ति का निर्माण तो शायद कुदरत ने भी आज तक नहीं किया है। कही न कही एक कमी हम सभी में है। हम साधारण मानव अपने भावुक चिंतन के चलते अक्सर अपने प्रिय विभूति में उन कमियों को अनदेखा कर देते है जो की जस्टिस काट्जू अपने प्रशिक्षित वैज्ञानिक चिंतन के चलते आभास कर लेते हैं। ऐसा नहीं है की वह जो कहते है वह सब एक प्रमाणित तथा सर्वमान्य न्याय हो, मगर संभावनाओं की तर्क कसौटी पर उसके विचारों को गलत साबित कर सकना आसान नहीं है।

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