भाजपा की राजनीति और ढोंगी बाबाओं के बीच का nexus

गौर करने वाली बात यह है की यह सब पाखंडी और ढोंगी बाबा भारतीय जनता पार्टी के समर्थक है। यह वही लोग है जो की कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को Sickular बुलाते हैं, और वास्तविक secularism से जनता को भ्रमित करते हैं। वास्तविक secularism का सम्बन्ध ऐसे ढोंगपने से मानव समाज की मुक्ति का है। england में church of england की शुरुआत secularism के प्रभाव में ही हुई थी। वह लोग Vatican Pope के अनुयायी नहीं थे। सच यह है कि secularism का विचार democracy का इतना सलंग्न है की वास्तविक डेमोक्रेसी बिना secularism के पनप ही नहीं सकती है।
   भारत में कांग्रेस पार्टी ने सेकुलरिज्म के वास्तविक विचार को तोड़ मरोड़ कर इस लिए अपनाया था की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करा जा सके। कांग्रेस के इस हरकत के विरोधियों ने इस प्रकार के सेकुलरिज्म को ही व्यंग्य में Sickularism नामकरण कर दिया।
   आगे का सच यह है की भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के sickularism का विरोध तो किया है मगर फिर वास्तविक secularism को भी नष्ट हो जाने दिया है जिसके फल स्वरुप आज यह सब ढोंगी और पाखंडी लोग लोगों के दिलो दिमाग पर बिना रोक टोक के छाये हुए हैं।भाजपा के इसी भ्रमकारी आचरण के चलते यह सब पाखंडियों की आप भाजपा का समर्थक पाएंगे।
   यह सब पाखंडी अवैज्ञानिक और अज्ञानता के विचारों के पालक है। मगर इसके दिलो दिमाग में यह समाया हुआ है की वह ही असल वैज्ञानिक सोच और अविष्कारों के जनक है, जिसको अंग्रेज़ो की लायी गयी मैकौले की शिक्षा पद्धति ने साज़िश के तहत दबा दिया है। आप गौर करे की भाजपा और आरएसएस की विचार धारा में pythogoras theorem, वायुयान इत्यादि को प्राचीन भारतीय वैदिक उत्त्पति का माना गया है, जिस गुप्त ज्ञानों को पश्चिमी लोगो यहाँ से चुरा लिया है।
    इस प्रकार की भ्रमकारी ज्ञान का सीधा लाभ इस ढोंगी बाबाओं को अपनी दुकान चलाने में मिलता है। लोगों की आस्था वेद, योग और आयुर्वेद जैसी प्राचीन ज्ञान और पद्धतियों में बढ़ने का यह व्यापारिक और राजनैतिक लाभ है। जबकि वास्तविकता यह है की सटीकता से किसी जानकारी का उत्पत्ति का वैदिक कालीन, उपनिषद , पुराण, आयुर्वेद यह ऋषि मुनि काल के योग से जुड़े होना का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
    एक तथयिक सत्य जो की पुरातत्वकर्ता बताते है यह है की प्राचीन वैदिक ज्ञान श्रुति पर प्रसारित होता था। श्रुति यानी सुन कर और स्मरण करके रखना। इसके चलते पुरतवकर्ताओं ने पाया की भारतीय ज्ञान समयकाल में प्रवाहित ज्ञान है। यद्यपि सामूहिक रूप से इस समूचे ज्ञान को आज भी वैदिक, या आयुर्वेदिक या उपनिषदिय पुकारा जाता है, मगर अब यह सटीकता से बता सकना करीब करीब असंभव है की कौन सा ज्ञान किस काल और युग में उत्पत्ति में आया था। पहले ऋग वेद हुआ जिसमे कुछ संख्या के श्लोक माने गए। समय काल में बाकी तीन वेद ग्रन्थ उत्पति में आये और ऋग् वेद के श्लोकों की संख्या भी बढ़ गयी। ठीक ऐसा ही भगवद् गीता से साथ भी घटित हुआ। रामायण के कई सारे संस्करण उपलब्ध है और इसमें से कई सरे संस्करण प्राचीन वैदिक काल का होने का दावा करते हैं। पुरतत्वकर्ताओं में भी मत भिन्नता है इन दावों की प्रमाणिकता को ले कर।
    वर्तमान के ढोंगी बाबाओं को वैदिक काल सम्बंधित इस असटीकता का लाभ मिलता है। लोगों में वेदों के प्रति आस्था असीम है मगर सटीक जानकारी नहीं है। कुछ कुछ तो सब कोई जानता है, मगर सटीकता से किसी को भी कुछ पता नहीं है। बस, ढोंग की दूकान खोलने के लिए एकदम उपयुक्त माहौल तैयार है। ढोंगी अपने मन मर्ज़ी के दावे ठोक देते है, योग , आयुर्वेद के नाम पर। एड्स और कैंसर का इलाज़ योग और आयुर्वेद से करवा दिया जाता है।
    तब प्रश्न है की कौन और क्या सामाजिक, राजनैतिक और व्यापारिक लाभ कमाया जा रहा है वर्तमान के भारतीय समाज में वैदिक, योग और आयुर्वेद के नाम पर समाज को वापस अंधकार युग में प्रेषित करके ?
   इस प्रश्न का उत्तर हमें भारतीय जनता पार्टी और इन सब ढोंगी , पाखंडी बाबाओं के बीच का गठजोड़ समझ आने पर स्वयं प्राप्त हो जाता है।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs