autism और धार्मिक उन्माद, कट्टरपंथिता, चरमपंथ

कविता और शायरी में अक्सर खूबसूरत लड़कियों की आँखें झील सी गहरी बताई जाती है।
तो क्या घर में नहाने धोने का पानी कम पड़ने पर हम किसी खूबसूरत लड़की की आँखों वाली झील से पानी निकाल कर काम नहीं चला सकते ?

सुनने से ही यह बात मज़ाकियां लगेगी। मगर बाल्य विकास में इस प्रकार के आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder) हैं , जिसमे भाषा और उसके सन्दर्भ सम्बंधित मानिसक विकास में बाँधा होने पर इस मनोविकार से ग्रस्त बच्चे बड़े होने पर ऐसे वयस्क बनते है जो इस तरह की बेवकूफियों वाली बातें पूरी गंभीरता से करते हैं।
    आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, यानि आत्म-केंद्रित बहुरंग (मानसिक) विकार बाल्य विकास के दौरान घटी कुदरती बाधाओं के सामूहिक लक्षणों का नाम है। इसमें बच्चे को कोई चोट नहीं लगती है,मगर वह साधारण से हट कर, कुछ अटपटा, अनबुझा बात-व्यवहार करता है।
   जैसा की जस्टिस मार्कंडेय काटजू नीचे जुड़े वेबलिंक में कहते है, मेरा भी मानना है की गाय के प्रति यह माता वाली जो बहस और उससे जुडी जो हिंसा देखने को मिल रही है, यह ऐसे ही वयस्कों से फैलाई जा रही है जो शायद आत्म-केंद्रित बहुरंग मनोविकार से ग्रस्त रहे होंगे।
   semantic pragmatic disorder, pragmatic language inability कुछ विशिष्ट लक्षणों की सूची है जो की विस्तृत आयाम में आटिज्म मनोकर का स्वरुप हैं। अधिक जानकारी के लिए गूगल करके इंटरनेट पर पढ़ा जा सकता है।
   वैज्ञानिक समझ में आटिज्म के स्पष्ट कारणों को अभी तक समझा नहीं जा सका है। मगर सांस्कृतिक और पारवारिक माहौल का योगदान सबसे प्रबल कारण समझा जाता है।
   कट्टरपंथी धार्मिक उन्माद के लोगों में आप आटिज्म सम्बंधित विकारों के लक्षणों को बखूबी और भरपूर देख सकते हैं।

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