अरुण जेटली का निर्भया घटना से सम्बंधित दुर्भाग्यपूर्ण बयान के विषय में

अरुण जेटली ने निर्भया घटना को पर्यटन पर हुयी हानि की वजह से "छोटी घटना" कह कर बहोत छोटी, एवं खपतखोरी-मुनाफाखोरी मानसिकता का परिचय दिया है। इस प्रकार की मानसिकता वाले लोग सामाजिक और मानवीय भावनाओं की कद्र नहीं करते हैं बल्कि पैसे, धन और अर्थ को ही सभी भावनाओं-सुख और दुःख का केंद्र मानते हैं। यह निकृष्ट और नीच सोच है जिससे कभी भी जन-कल्याण नहीं साधा जा सकता ,बल्कि विकास और अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के नाम पर इंसान और समाज में अमानवीयता, बेचैनी, लोभ जैसे दुर्गुण ही आते।
  यह सही है की निर्भया घटना ने देश की छवि पर दुश्प्रसार किया। मगर फिर इसने देश की अंतरात्मा को जगाया भी था। जेटली जी शायद पर्यटन में सुधार और देश की छवि सुधारने के लिए प्रशासन व्यवस्था दुरुस्त करते। अपनी पार्टी में से निहाल चाँद जैसे आरोपी मंत्रियों को निकालते। यह क्या किया कि निर्भया को ही घटना से आये प्रभावों का दोषी बना दिया और अपनी अंतरात्मा को फिर से बेच कर सुला दिया।
क्या मानवीय भावना और संवेदनशीलता प्रचार और विज्ञापन की मोहताज होती है? क्या अंतरात्मा को आर्थिक आवश्यकताओं के आगे झुक कर मनुष्य को ख़ुशी अनुभुतित हो सकती है?
जेटली जी जैसे पढ़े लिखे वकील जब इस मानसिकता के हैं और देश के वित्त और रक्षा मंत्री पद पर आसीन हो कर ऐसा बोलते है तो अब क्या संभावना रहती है की यह देश दुबारा एक और निर्भया घटना नहीं देखेगा। संभावित पर्यटक क्या आंकलन करेंगे इस देश के बारे में?
खुद ही सोचिये...।

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