कैसे ब्रिटेन की प्रशासनिक व्यवस्था स्वायत्तता प्राप्त करती है राजनैतिज्ञ वर्ग से
ब्रिटेन में bbc को कैसे समाज को सही मार्ग या सत्मार्ग दिखाने वाली खबर और जानकारी देने की स्वायत्तता मिल जाती है, बिना इस बात के डर से की कुछ शीर्ष पदों के तबादले, निलम्बन या सेवामुक्ति देखने पड़ सकते हैं ?
यहां दूरदर्शन के दो मुलाजिम प्रधानमंत्री के भाषण की रिकॉर्डिंग के दौरान मात्र हंस क्या दिए, उनको नौकरी से हाथ धोना पड़ गया। किसी एक मुलाज़िम ने जनता के बीच जा कर सच क्या बोल दिया कि कोई एक भाषण वाकई में किस तारीख में रिकॉर्ड हुआ था, उसे भी परिणाम भुगतने के लिए नौकरी से निकाल दिया गया।
Whatsapp के सदवाणी संदेश कहते है कि संसार का बुरा किसी बुराई के कर्म करने वालो से इतना अधिक नही होता है, जितना कि भले लोगो के चुप रहने से, और बर्दाश्त कर जाने से होता है।
अबोध भारत की बहोत बड़ी आबादी अपने भ्रमकारी कुतर्क से यह समझती/समझाती है कि समाज को भ्रष्टाचार मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासनिक तंत्र आवश्यक नही है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को भ्रष्टाचार विमुक्त आचरण से ही मुक्ति मिलेगी। खास तौर पर वर्तमान काल के राजनैतिक वर्ग यही कुतर्क जनता में बेचना चाहता है, और लोकपाल क़ानूम जैसे विधान आने के बावजूद उन्हें लागू करने से बचना चाहता है।
सवाल लोकपाल कानून या जनलोकपाल कानून का नही है, बल्कि यह है कि भ्रष्टाचार, राजनैतिक स्वार्थ लिए controversy, मीडिया के पक्षपात, इत्यादि से मुक्ति दिलाने के लिये आवश्यक संसाधन क्या है ---? क्या समाज को ईमानदारी का फल तभी खाने को मिलेगा जब प्रत्येक व्यक्ति ईमानदार बनेगा, या तब जब समाज के कुछ एक व्यक्ति जो ईमानदारी की मिसाल है, जो कि कभी जीवन मे एक ईमानदारी का निर्णय लेते है, उन्हें सहायक माहौल देने वाले प्रशासनिक तंत्र की स्थापना होगी?
ऐसा नही की भारतिय समाज मे ईमानदार लोगो की कमी थी, जिस कमी की वजह से भारत मे अथाह भ्रष्टाचार है। बल्कि भारत के प्रशासनिक राजनैतिक तंत्र मे ईमानदारों के संग जो हश्र हुआ है - उन्हें अशोक खेमखा और संजीव चतुर्वेदी बना दिया जाता है, जज की संदेहास्पद हत्या हो जाती है, और मनपसंद जज को राज्यपाल पद दे दिया जाता है,
तो खुद ही सोचिए कि बुराई पर चुप्पी नही रखने वाला, बर्दाश्त नही करने वाला कोई ईमानदार कैसे पनपे का इस समाज मे और मुक्ति दिलाएगा ?
मगर ब्रिटेन की प्रशासनिक व्यवस्था में यह मुक्ति कैसे मिलती है ? वहां की मीडिया और उच्च शिक्षा संस्थान कैसे बिना किसी प्रशासनिक प्रतिक्रिया के भय के अपने विचार को सुदृढ़ता से प्रकट कर देते है, निष्पक्षता और सदमार्ग का प्रसार कर लेते है, समाज को जागृत बनाये रखते हैं ?
इस सवाल का जवाब वहां के प्रशासन व्यवस्था के उपज के सामाजिक-इतिहासिक घटनाओं में छिपा है।
बीबीसी जैसी जनसूचना की उच्च संस्था *संसदीय कानून* से नही बल्कि *शाही फरमान* से चलती है। ब्रिटेन में सरकार को चलाने के लिए एक नही, दो अलग अलग उच्च केंद्र है। *act of parliament (संसदीय कानून)* अलग है , और *royal charter (शाही फरमान)* अलग है।
बीबीसी और इसके ही जैसे सेकड़ो उच्च संस्थान , उनकी शास्त्र सेनाएं, professional associations इत्यादि *संसदीय कानून* की बजाए *शाही फरमान* के आधीन निर्मित हुए और कार्य करते है। यह *प्रधानमंत्री कार्यालय* के जगह *crown services* से आदेश प्राप्त करती है। विकिपीडिया के अनुसार 15वी शताब्दी से लेकर आज तक 900 से अधिक शाही फरमान जारी हुए हैं जिनसे वहां के उच्च शिक्षण संस्था, professional association, इत्यादि निर्माण हुई है और वह संसदीय कानूनों का पालन तो करती है, मगर प्रधानमंत्री कार्यालय के आधीन नही आती है, इसलिए राजनैतिक वर्ग उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार निलंबन, बर्खास्त, या तबादला नही कर सकता है।
भारत मे राष्ट्रपति है, राजशाही है ही नही। और राष्ट्रपति खुद ही पांच साल की नौकरी वाले है; अधिकांश राष्ट्रपति और राज्यपाल राजनीतिज्ञों की पृष्टभूमि वाले है;राष्ट्रपति पद किसी बुज़ुर्ग राजनीतिज्ञ को पार्टी की वफादारी का इनाम देने के लिए, या किसी विरोधी की राज्यसरकार का चक्का केंद्र सरकार के हाथों डगमगाने के लिए।
शाही फरमान जैसी व्यवस्था भारत मे presidential order है। मगर साधारण गूगल सर्च से बात मालूम देती है की presidential order आज तक एक ही निकला है, वह भी गुप्त तरीके से , राजनैतिक -प्रजातांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध , संविधान में अनुच्छेद 35A डालने के लिए, राष्ट्रहित के विरुद्ध !
भारत में अमूमन एक कच्ची गिनती से १३ हज़ार से अधिक कानून है, मगर राष्ट्रपति फरमान (presidential order ) सिर्फ एक बार ही निकला है | ब्रिटैन में भी संसदीय कानून बहोत हैं , मगर शाही फरमान 900 से अधिक बार निकला है | इस तरह ब्रिटैन में राजनीतिज वर्ग और शाही घराना , दोनों ही एक दूसरे से मुक्ति , स्वायत्तता प्राप्त करते हैं |
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