Lateral Inversion of the socio-political ideas during "adoption" of the Constitution
Physics विषय मे जब भी Light and Reflection के बारे में पढ़ाया जाता है तब प्रतिबिम्ब में lateral inversion का सबक भी सामने आता है। lateral inversion उस प्रत्यय का नाम है जब किसी आईने (mirror) में उत्पन्न प्रतिबिम्ब किसी मूल वस्तु के दाहिने हिस्से को बायां दर्शाता है।
कहते हैं कि नकल करने में भी अकल की ज़रूरत होती है। और कभी कभी नकल करना किसी को अपने अंदर प्रतिबिम्बित करने का जैसा ही होता है। और तब ही इस प्रत्यय की अकल रखनी पड़ती है जी नकल करने में हम कही किसी प्रत्यय को उल्टा पुल्टा तो नही लागू कर दे रहे हैं।
भारत का संविधान भी अपने किस्म का एक नकल ही है, क्योंकि वह जिन कानूनी मूल्यों को लागू करने का आपसी संकल्प करता है उन मूल्यों का क्रमिक विकास या सामाजिक उत्थान भारत भूमि पर हुआ नही हैं। इसलिए भारत के संविधान की दास्तान भी शायद कुछ ऐसे ही गलतियों से भरी हुई है।
मूल सामाजिक घटनाओं के चलते उत्पन्न संविधान के लिए आवश्यक सामाजिक चेतना अलग होती है, और नकल करके लाये गए संविधान को लागू करने के लिए दूसरे समाज या देश मे वह सामाजिक चेतना विलुप्त होती है। यहां से नकल करने में अक्ल की कमी का भेद खुलने लग जाता है।
भारत मे भी कुछ ऐसा ही घट रहा हैं। हम भारतीयों ने वैसे तो प्रजातंत्र को ही अपना सामाजिक-प्रशासनिक मूल्य संविधान में लिख लिया है, मगर गलती यह है कि हमने किसी राजा या सम्राट की शक्तियों को नियंत्रित करने की बजाए आम नागरिक की शक्तियों को ही नियंत्रित कर दिया है।
यही होता है असल और नकल का फर्क। पश्चिमी देशों में जहां संविधान के कानूनी और प्रशासनिक प्रत्यय वहां के सामाजिक इतिहास से प्राप्त पाठ से आये हैं, और इस लिए उनके संरक्षण के लिए आवश्यक भावनात्मक सामाजिक चेतना सहज उपलब्ध है, भारत मे उन प्रत्ययों के लिए नासमझी अधिक है और इसलिए संविधान का आवश्यक संरक्षण नही हो पा रहा हैं। नतीजे यह है कि किसी अधिक बलवान समूह को जब भी आवश्यकता पड़ती है वह संस्थाओं और न्याय को संविधान के विरुद्ध जा कर तोड़ कर नतीज़ों को अपने पक्ष में कर लेता है।
चाहे चुनाव आयोग का दंत रहित संस्था होने की बात हो, या सीबीआई का राजनैतिक चाबी होने का मुद्दा हो, या जस्टिस कर्णनं का sitting judge रहते हुए बिना impeachment करे सज़ा देने का मुद्दा हो, कुछ अगोचर गुटों ने आसानी से संविधान को भेद करके यह सब प्राप्त कर के दिखाया है और संविधान के संकल्प को संरक्षण देने की आवश्यक सामाजिक चेतना वस्तुतः अनुपलाध ही रही है बीच बचाव करने संविधान की मर्यादा बचाने के लिए।
*यह सब हुआ ही क्यों ?*
सर्वप्रथम तो हमारे सामाजिक इतिहास में यह सबक है ही नही की प्रजा का शत्रु राजा , सामंतवाद , निकृष्ट मानसिकता, असमान कपट न्याय, और राजा के सिपहसालार और सैनिक ही थे। हमारे यहाँ राष्ट्रवाद हमे स्कूली किताबो के माध्यम से ठूस जाता है, वह स्वेच्छा से प्राकृतिक प्रवाह में उत्पन्न नही हुआ है। शायद ऐसा इसलिए कि भारत भूमि ने अत्यधिक आपसी, अंतर जातिय या अंतर धर्मी संधर्ष नही देखा। यहाँ दंगे होते हैं क्योंकि अतीत से लेकर आज तक जंग हुई ही नही है।
नतीज़ों में शक्तियों को नियंत्रण करने वाले आवश्यक शक्ति संतुलन के सबक प्राप्त ही नही हुए और फिर नकल नकल के खेल में हमने किसी राजा और उसके सैनिकों की शक्तियां संतुलित-नियंत्रित करने की बजाए उन्हें और अधिक बलशाली बना दिया है, सैनिक और फौजों को परम बलिदानी और पूजनीया मानना शुरू कर दिया है, और प्रशासन शक्ति पूरा ही राजनेताओं और अधिकारियों को सौंप दिया है।
राष्ट्रवाद का सबक भारत में खुद उत्पन्न नही होने का ही यह नतीजा है। पश्चिम देशों में राष्ट्रवाद और उसके मूल्य अत्यधिक आपसी संघर्ष के उपरांत समाज में शांति कायम करने के मद्देनजर पैदा हुए।
यहां भारत मे राष्ट्रवाद के मूल्य की मंशा ठीक उल्टा ही, सामाजिक शांति कायम करने की बजाए दुश्मन देश से रक्षा करने के लिए है।
अभी हाल में व्हाट्सएप्प पर भी किसी सद्गुरु की वीडियो क्लिप देखी जिसमे वह राष्ट्रवाद के सबक को बाल्यकाल से ही पढ़ाने का हिमायत कर रहे थे । मैं वह क्लिप देख कर आस्चर्य चकित था की हमारा देश नकल करने के प्रयासों में lateral inversion के प्रभावों से कितने भीतर तक प्रभावित हो गए हैं। हमारे धार्मिक मूल्य भी राष्ट्रवाद और सामाजिक व्यवस्था और शांति के अभेद संबंध को समझ नही सके है और ठीक उल्टा राष्ट्रवाद के मूल्यों को brainwash करके करवाई जाने वाली सैनिकीय हिंसा को प्रसारित करने के लिए दूषित कर रहे है।
वर्तमान भारत मे कही कोई भी गुट नही है जो कि भारत के संविधान में भारत के राजदंड द्वारा किये गए इन अपवादों का विरोध दर्ज करने के किये राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करे। मगर राष्ट्रवाद भावना के माध्यम से दुश्मन देश से शत्रुता निभाने के लिए बहोत सारे वाचक और गुट सामने खड़े हैं। शायद इसलिए क्योंकि दुश्मन देश से लड़ाई के माध्यम से ही सैनिक, पुलिस और प्रशासन के सम्मान का विचार निकलता है जिससे राजदंड का नियंत्रित कर रहे लाभान्वित गुट सत्ता सुख का भोग कर रहा है।
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