रचनात्मकता की कमी, बदलाव में नियंत्रण लगाने की तरीकों की खोज

*रचनात्मकता की कमी* हमारे देश के बुद्धिजीवियों के दर्शन में सबसे कमजोर बिंदु है।
क्या आप इस देश में एक ऐसा क्षेत्र, एक ऐसी पार्टी, बता सकते हैं जो कि बाप-बेटावाद से मुक्त है?
नहीं न ?
जी हां। यह कुछ ऐसा ही है जैसे गरीब उत्पीड़ित लोगो की क्रांति में होता है। वह उत्पीड़न और शोषण से परेशान हो कर विद्रोह करते हैं, क्रांति लाते हैं।
मगर फिर उसके दर्शन में *रचनात्मक्ता की कमी* होती है। क्रांति के बाद तख्तापलट होता है, और जब सत्ता उनके हाथों में आती है तो वापस वही करना चालू कर देते हैं जिससे कि वापस उत्पीड़न और शोषण की नई दास्ताँ शुरू हो जाती है।

यह देशों में देखा गया है। फ्रांस की क्रांति के बाद उनका संविधान कम से कम 5 बार पूरा का पूरा बदला गया है , मगर आज तक समाज मे शांति और स्थिरता नही ले सका है। फ्रांस आज भी उत्पीड़न और शोषण में संवेदनशील है, भेदभाव और vvip संस्कृति से ग्रस्त है।

स्थिरता का आरंभ बहोत ही जटिल बिंदु से होता है- बदलाव को नियंत्रित करने से। मगर बदलाव प्रकृति की सबसे बड़ी शक्ति है, हर व्यक्ति हर वस्तु की चाहत है।
तो फिर स्थिरता आएगी कैसे?
शायद समाज मे स्थिरता और बदलाव के बड़े बीज एक संग डालने पड़ेंगे, की  दोनों आवश्कयता अनुसार प्राप्त किया जा सके। स्थिरता आती है जब किसी एक रेखा पर चलते हुए उसमे अनुभवों के अनुसार बदलाव करते रहे तो। यानी एक-पंथ होना और बदलाव करते रहना, दोनों ही एक संग, तभी स्थिरता को प्राप्त करना संभव है। यदि बदलाव को प्रकृति की परम शक्ति मान कर हर पद, हर स्थान पर बदलाव को स्थान दे बैठे तो आप अस्थिरता को खुला न्यौता दे बैठेंगे, जब u turn और ढोंग समाज का सर्वसाधारण आचरण बन जायेग।
थोड़ा और आसान शब्दो मे बात को समझें तो evolution और change में अंतर को गौर करिये। evolution के पथ को खुला रखना होगा, मगर change यानी changing the goal post वाले हालात से बचना होगा।
हमारे देश ने changing the goal post वाली राह पकड़ी हुई है। यहां सब कुछ अस्थिर है, क्योंकि कोई भी बदलाव जरूरत के अनुसार स्थिर नही क्या जा सकता है। यदि केजरीवाल अच्छी सरकार चला रहे हैं तो भी यह सम्भव नही की हम उसे स्थिर बना सकें। जैसे ही केजरीवाल सत्ता से बाहर निकलेंगे, यह तयशुदा किस्मत मान लीजिए कि नौकरशाही सब कुछ वापस पहले जैसा कर देगी - वही बदहाली, वही खस्तापन, वही घूसखोरी।

अस्थिरता के दुष्परिणाम यह होते हैं कि जो वर्ग अधिकः शक्तिशाली होते हैं वह आर्थिक टुकड़े पर पकड़ मजबूत करते चले जाते है। यह बारबार घटता ही रहता है जबतक की विद्रोह और क्रांति नही होती। और फिर यदि क्रांति के बाद बदलाव के बिंदु सही न हों तो वापस यह प्रक्रिया घटने लगती है।

ब्रिटेन इस मामले में फ्रांस से अलग है। ब्रिटेन स्थिरता का अच्छा उदाहरण है। वहां कई प्रक्रियाएं 13 शताब्दी से आरम्भ हुई है और आजतक बदस्तूर चालू हैं। multi culturalism ने समस्याएं बड़ाई है, मगर फिर भी समाज मे स्थिरता बनी हुई है।।राजशाही वही बारहवीं शताब्दी से पैर जमाये हुई है। यह रचनात्मकता की देन है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सही तरीके से प्रयोग किया गया है रचनात्मकता की प्रक्रिया को प्राप्त करने के लिए। राजशाही ने रचनात्मकता में evolution के मार्ग खोल कर random change के मार्ग पर अवरोध बनाया हुआ है। संविधान आज तक लिखित ही नही हुआ है, मौखिक common law पर सब कुछ चलता है , मगर फिर भी बदस्तूर है। काफी हदों तक सुचारू है।

क्या कारण हो सकते हैं?
शायद यही की बदलाव के बीच मे कही एक न बदलने वाला बीज भी जमा हुआ है। राजशाही।

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता