उत्सव, जुलूस जैसा माहौल

गौर करने की बात है की इस सरकार में निरंतर, एक के बाद एक , एक्शन किये जा रहे है जो की euphoria (उत्सव, जुलूस जैसा माहौल) के साथ हो रहे है। surgical strikes, अब FICN ₹500/1000 के चलन नोटों पर पाबन्दी, वगैरह।
जबकि अपनी समीक्षा में यह सब कार्यवाही जनता में पहुंचाई गयी बातों से कही दूर,  एक अर्धसत्य साबित हो रही है।
सोचने की बात है की रणनीति क्या है इनकी ?
क्या यह की,
झूठ बोलो,
तो
ज़ोर से बोलो,
बार बार बोलो
तब तक बोलो
जब तक की
वह सच न मान लिया जाये
euphoria फैलाने से क्या मकसद सधता हैं ?? शायद यह की जनता के एक वर्ग में ,खास कर भक्त वर्ग में , यह आभास बना रहता है की सब ठीक है, अब सब ठीक हो जायेगा ।
शेक्सपियर के नाटक जूलियस सीज़र में राजनीति और जुलूसों का यह सबंध खूब दिखाया गया है। एक रोमन कूट (धूर्त) शासक ने कहा भी था की अगर जनता को रोटी नहीं दे सकते हो तो सर्कस ही दे दो। यह मुद्दों को और भूख को , दोनों ही भूल जायेंगे। आखिर ग्लैडिएटर और अम्फिठेटर का निर्माण ऐसे ही कूटनैतिक कारणों से ही करवाया गया था।
मकसद था, जनता को उल्लू बनाना।

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार