क्या भाजपा छोटी रिश्वतखोरी का कारक आम जनता को बता कर बड़ी, मंत्रिपद की रिश्वतखोरी रोकने की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है ??
भ्रष्टाचार का एक ख़ास प्रकार- रिश्वतखोरी- को भाजपा वाले बहाना बना कर अपनी संवैधानिक सुधार की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे है।
यह लोग इस तर्ज़ पर चल रहे हैं कि जो पकड़ा गया वोह ही चोर,और जो बच निकला वह चोर भी नहीं,और न ही कहीं कोई चोरी मानी जाएगी !
छोटे ,नौकरीपेशा लोगों के जीवन के छोटे छोटे काले कर्मों का वास्ता दे कर प्रशासन की विशाल सामाजिक उद्देश्यों में काल गुजारियों को नहीं ढका जा सकता है।
जब गडकरी की कंपनियों में निवेशकों के बारे में खुलासे हुए ,कि निवेशकों का गडकरी के मंत्रिपद पर रहने से क्या संबध स्थापित हुए, जब गडकरी की कंपनी के निर्देशकों के नाम पते के खुलासे हुए- उसके बावजूद बिना किसी स्पष्ट कारण --गडकरी जी को "साफ़" होने का प्रमाणपत्र मिलता है ,तब होंसले बढ़ते हैं इन छोटे मोटे रिश्वतखोरी के।
गरीब, नौकरीशुदा आदमी को 50रुपये की रिश्वतखोरी पर 15साल झेलना पड़ता है, और बड़े नेता "साफ़-साफ़" बच निकलते हैं।
क्या छोटी, आम नागरिक और सरकारी नौकरीशुदा लोग की छोटी मोटी रिश्वतखोरी का वास्ता देकर हम सभी लोग अपने संविधान में सुधार की ज़िम्मेदारी से बच सकते है,-- कि कही हमे संविधान व्यवस्था ही दुरस्त करने की ज़रुरत है ? सबसे पहले तो यहाँ न्याय के दुतरफा मानदंड चल रहे है क्योंकि छोटे आदमी रिश्वतखोरी में फँस जाते है और बड़े नेता निकल जाते है। यह इसलिए हो रहा है क्योंकि शायद जांच/अन्वेषण संस्थाएं खुद इन्ही नेताओं के आधीन हैं।
कोर्ट द्वारा चलाई विशेष जाँच टीम(SIT) पर कब तक और कहाँ तक भरोसा कर सकते हैं ? कभी न कभी तो इस विशेष जांच टीम के सदस्य वापस अपने पैत्रिक संस्था में जायेंगे ,जहाँ यह फिर से किसी न किसी राजनैतिक वर्ग के आदमी के आधीन हो जायेंगे। बल्कि यह सदस्य आये भी तो ऐसे ही हालत से हुए है,जहाँ इनके "पुराने उधार" होने की गुंजाइश है।
क्या भाजपा कोंग्रेस को भ्रस्टाचार में कोसने के बाद अपनी निति-सुधारक ज़िम्मेदारी से यह कह कर बच सकती है कि भ्रष्टाचार तो आम आदमी के रिश्वत देने की ज़रूरतों की वजह से होता है, प्रसासनिक शिथिलता की वजह से नहीं ??
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