अंतःकरण, आदर्शवाद और बुद्धिमता गुणांक(IQ)

बिना सिद्धांतों के करी जा रही राजनीति के लिए सही शब्द कूटनीति है।
कूट का अर्थ है छल, भ्रम, धोखा

आखिर कूटनीति का मानव मनोविज्ञान पर क्या असर पड़ता है?
   दीर्घ अवधि में कूटनीति के प्रभाव में रहने से शायद मानव समाज की नैतिकता की व्यापक बुद्धि ही नष्ट हो जाने लगती है। गहराई में समझें तो नैतिकता की बुद्धिमत्ता का नाश कूटनीति का परिणाम नहीं बल्कि मानव स्वभाव का तरल और वातावरण के मुताबिक ढल जाने वाली क्षमता का परिणाम होता है।
   जब मनुष्य बहोत लंबे काल तक अन्याय  और अनैतिकता को विजयी होते, शासन सम्बद्ध होते देखता है, तब वह उस अनैतिकता को ही उचित धर्म, नैतिकता का स्थान दे देता है। इसके लिए वह "व्यवहारिकता", "practical", जैसे न्यायोचित करने वाले शब्द विचार विकसित कर लेता है।
   यह वह हालात है जब असामाजिकता का व्यवहार समाज की मर्यादा बन जाती है। रामचंद्र जी बस पूजा अर्चना का बहाना बन जाते है, जबकि वास्तविक आचरण में इनको प्रेरणा का स्रोत नहीं माना जाता है। अब पाखण्ड सफलता का मार्ग होता है।
   लम्बे युगों में गुलामी और विपरीत बोधक परिस्थितियों से गुज़री भारतीय संस्कृति ऐसे ही विकृतियों का शिकार हो चुकी है जहाँ कई सारे असामाजिक ,और अमर्यादित आचरण अब "व्यवहारिकता" का नाम से प्रचलन में हैं। आज यही व्यवहार "संस्कृति" के निर्धारण के पैमाने बने हुए हैं।
   इस प्रकार के अमर्यादित आचरण में मनुष्य के अंतःकरण भ्रम से नष्ट हो चुका होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उचित आदर्श नाम के आचरण रखने वाले लोग समाज में न के बराबर होते है, और यदि होते भी है तो वह व्यंगोक्ति , तिरस्कार, काल्पनिक लघु हास्य के माध्यम से जग-हँसाई के पात्र बना दिए जाते हैं।
  "व्यवहारिक" मानसिकता वाले लोगों का अंतःकरण श्याम-श्वेत वर्ण (either-black-or-white)में ही निर्णय और न्याय करता है।" Secularism में भी या तो आप बहुसंख्यकों के साथ है, अन्यथा आप अल्प-संख्यकों के साथ है"। Secularism का स्पष्ट संतुलित अर्थ समझ सकने में विकृत अंतःकरण ने बुद्धि का नाश कर दिया है।

  'व्यवहारिकता' का यह आचरण कुछ ऐसे है जैसे की मानो रसायनशास्त्र में हम भिन्न-भिन्न गैसों की तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास कर रहे है मगर अभी तक हमने आदर्श गैस के आचरण को ही नहीं विकसित किया है। मस्तिष्क श्याम और श्वेत वर्ण प्रवृत्ति में गैसों की आपसी तुलना कर रहा हो, मगर किसी स्पष्ट निष्कर्ष में नहीं पहुँच पा रहा है। अब मस्तिष्क और अत्यधिक क्रोधित होता है, और तीव्र मत-विभाजन से गुज़र रहा हो।

बौद्धिक गुणांक(IQ) किसी दो विचार,प्रत्यय(Concepts) के बीच तुलनात्मक अध्ययन की क्रिया है। इसी को विश्लेषण बुद्धि (discerning behaviour) भी बोलते हैं। मगर IQ मात्र किन्ही दो प्रत्यय के मध्य समानताएं(similarities) और विषमताएं(differences) खोज निकलने तक सीमित नहीं हैं। IQ वह क्षमता है जिसमे यह न्याय भी करा जा सके की किन्हें समानता मानना है और किन्हें अंतर। दूसरे शब्दों में, IQ को विशाल बनाने के लिए rule और exception का न्याय करने के पैमाने विक्सित करने की आवश्यकता होती है। यहाँ हमें आवश्यकता होगी किसी सैद्धांतिक आदर्श पैमाने की-- जिससे तुलना कर के हम rule और exception के पैमाने बना पाएं। और फिर similarities और differences के सही न्याय कर सकें।
   
     अत्यधिक कूटनीति हमारे समाज में व्याप्त अन्याय का परिणाम है, और इस कूटनीति ने नैतिकता को विस्थापित कर दिया है। इसके नतीजे में आज हम लोग और अधिक कूटनीति ही कर रहे है ,अंतःकरण की ध्वनि को अनसुना कर दे रहे हैं। अंतःकरण को अनसुना करने से आदर्श और सिद्धांतों का अन्वेषण नहीं हो रहा है। हम आपसी समानताओं को नहीं दूंढ़ पा रहे हैं, क्योंकि हम आदर्श तथा सिद्धांत का अन्वेषण नहीं कर रहे हैं। समाज और अधिक मत-विभाजन की क्रिया से गुज़र रहा है। इसका परिणाम है कि हम एक टूटते, पतन की और जाते देश बन गए है , और धर्म को किसी और पंथ से घृणा करने में दूंढ़ने लग गए है। 'राष्ट्र' को हम किसी बहारी आक्रमण से रक्षा करने वाला इलाका समझते हैं; राष्ट्र से हमारा अभिप्राय आपसी विचारे से , एक नैतिकता और एक न्याय सूत्र से बंधा समाज नहीं है।
  अंतःकरण को अनसुना करने का दूसरा परिणाम यह है की हम आदर्श पैमाना की खोज भी नहीं कर सक रहे हैं। तब हम मूर्खों का समाज बन गए है जो की श्याम-अथवा-श्वेत वर्ण की मानसिक क्षमता के चलते बौद्धिक अयोग्य, 'मुर्ख' बन गया है।
   श्याम-अथवा-श्वेत वर्ण मानसिक क्षमता का मनुष्य एक प्रसिद्द मिथक कथा हनुमानजी और शनि भगवान् के मध्य घटे हास्यास्पद व्यवहार के समान है।  इस मनुष्य का प्रतिक्रियात्मक आचरण है, जिसमें स्वयं का अंतःकरण के प्रयोग नहीं किया गया है। इसलिए संभावित खतरों के ध्वस्त करने के लिए किया गया हर प्रयास असफल हो जाता है।
  शनि भगवान् ने हनुमान जी को चेतवानी दी थी कि शनिवार के दिन वह हनुमान जी पर सवार होंगे। हनुमानजी भगवान् शनि के कथन को ध्वस्त करने के लिए शनिवार के दिन प्रातः से ही अपने दोनों पैर पटखने लगते है कि अगर वह पहले से ही चालित रहेंगे तब भगवान् शनि को उनपर सवार होने का मौका ही नहीं मिलगा। भगवान शनि हनुमानजी की यह पैर पटखने वाली हालत देख कर मुस्करा कर चले जाते है कि यही हनुमान जी का यही आचरण भगवान् शनि द्वारा सवारी किये जाने वाला आचरण है।
  यानि प्रतिक्रिय में किया गया आचरण भी उतना ही असफल होता है, जितना की पूर्व-चेतावनी में घोषित हुआ था। अर्थात, पूर्ण-चेतावनी स्वतःस्फूर्त हो जाती है। यह निम्म IQ होने का परिणाम हैं। यह निम्म IQ आदर्श और सिद्धांतों के अभाव से उत्पन्न हुआ, और जो स्वयं अंतःकरण की ध्वनि को बारबार अनसुना करने का नतीजा है।
   भारतीयों की वर्तमान पीड़ी ऐसे ही हालत से गुज़र रही है। हम अपने ही समाज के लिए एक खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। IQ के निम्म होने की वजह से यह खतरे स्वतःस्फूर्त हो जायेंगे।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs