एक चुनावी अभियान - व्यंगोक्ति , तिरस्कार और अपमानजनक असत्य वचनों से भरा हुआ

हिंदी अनुवाद:

एक चुनावी अभियान - व्यंगोक्ति , तिरस्कार और अपमानजनक असत्य वचनों से भरा हुआ

    भाजपाई समर्थक अपने राजनैतिक विरोधियों को राजनैतिक विचारविमर्श के दौरान शिकस्त देने के लिए व्यंगोक्ति , तिरस्कार और अपमानजनक असत्य वचनों का प्रयोग करने के लिए अभ्यस्त हैं।
    ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्तः यह भाजपाई खुद भी एक तर्क-मरोड़ने वाले मक्कार (=कपट करने वाले) और फरेबी लोग है जिनके पास इतने नैतिक शाली तर्क नहीं  हैं कि यह सभ्यता के साथ, आर्यों की भाँती किसी खुले सामाजिक मंच जैसे कि फेसबुक इत्यादि सोशल नेटवर्क पर गंभीर संवादों के दौरान राजनैतिक विरोधियों के साथ तर्क-भेद कर सकें।
   खुल्ले मंचों पर गंभीर मंथन के दौरान अपनी द्विअर्थी मापदंडों के खुलासे से बचने के लिए मक्कारो की प्रबुद्ध भाषण शैली व्यंगोक्ति , तिरस्कार और अपमानजनक असत्यों की होती हैं।
   बल्कि भाजपा ने अपने मक्कार और अबोध समर्थकों को लोकसभा 2014 के आम चुनावों के दौरान राजनैतिक संवादों का सामना करने के लिए ख़ास प्रकार से तैयार ही किया था।
हज़ारों करोड़ रुपयों का प्रचार अभियान का जो खर्चा था उसका एक बड़ा हिस्सा विरोधियों का परिहासक विडियो , तिरस्कारजनक जोक्स (उपहासपूर्ण कल्प), और अपमानजनक मिथकों को जन संवाद में पोषित करने के लिए किया गया था।
  इस प्रकार के प्रचार साधनों का उपयोग का उद्देश्य होता है कि निकृष्ट मानसिकताओं वाले समर्थकों का "हृदय जीता" जा सके , यानि संकुचित मानिसकता, तथा आत्म-मोह से भरी सोच को पोषित करने वाले निकृष्ट सुख की अनुभूति प्रदान करें।
   व्यंगोक्ति, ताने , नकारात्मक उपहास, और अपमानजनक असत्य वाचन - यह कपटी और मक्कार लोगों के पसंदीदा हथियार होते हैं। मक्कार लोग दोहरे मापदंड रखते हैं। यह दूसरों की शिक्षा स्तर का परिहास करते है और फिर स्वयं नकली और झूठे दस्तावेजों से अपनी शिक्षा को प्रमाणित कर के उसका बचाव व्यंगोक्ति द्वारा ही करते हैं। यह नारी सम्मान की बात करते हैं और फिर नारी पर यौन हिंसा के आरोपित चार्जशीटेड व्यक्ति को मंत्री बनाते है। ऐसे कर्म और दोहरी मापदंड वाले व्यक्ति भला और  किस तरह से निष्कपटता(Sincerity) और सच्चाई का सामना कर सकेंगे सिवाए व्यंगोक्ति, और अपमानजनक मिथकों के प्रयोग के !?? 
    व्यंगोक्ति और अपमानजनक मिथक- इनका भाषा विज्ञानं के समझ से यह भीतरी गुण होता है की यह सच्चे और निष्कपट व्यक्ति को शिकार बना कर बचाव की मुद्रा में डाल देता है।
   ज़ाहिर है कि सच्चे और ईमानदार का सामना करने का कोई और साधन नहीं था सिवाय इसके की उसका उपहास करें और व्यंगात्मक आरोप लगायें की "सिर्फ तुम ही तो दूध के धुले हो", " तुम ही तो हो ईमानदारी के देवता" , इत्यादि।
  नैतिकता को परास्त करना कपटी लोगों की परम आवश्यकता होती है। नैतिकता को और कैसे परास्त करे सिवाय इसके कि जो भी नैतिकता का समर्थन करते लगे उस पर व्यंगात्मक आरोप लगायें कि "बड़ा नैतिकतावान बन रहा है "।
     समयोप्रांत घटनाओं के विवेचन से स्पष्ट हो जाना चाहिए की कूटनीति से भरी अंतर्दालीय द्वन्द में भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चे का प्रथम भोग हुआ था सत्तारूड दल को जनता की नज़र से विस्थापित करने के लिए। और फिर भ्रष्टाचार-विरोधी खेमे को दोहरे मापदंड वाले भोगी दल ने व्यंगोक्ति, परिहास, तिरस्कार का प्रयोग द्वारा जनता को भ्रमित करके पीछे करवा दिया।
तो इसी प्रकार से दोहरे मापदंड वालों ने सच्चाई, ईमानदारी और निष्कपटता(Sincerity) को हरा दिया और सत्ता पर काबिज़ हो गए है।

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