चाइना के उत्पादों का बहिष्कार और श्रमिक कानूनों का उलंघन

चाइना डोकलं में हुंकार भर रहा है।

और इधर भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दे रही है कि evm में vvpat जोड़ना अनावश्यक और पैसा व्यर्थ करने की कार्यवाही होगी , दो-तीन कारणों से। पहला,  क्योंकि evm अपने आप मे कभी भी सिद्ध नही करि गयी है कि इसमें छेड़छाड़ करि जा सकती है। इसलिए evm अपने आप मे ही पर्याप्त मानी जानी चाहिए। दूसरा, की vvpat की भी जीवनअवधि 15 वर्ष तक कि है, evm मशीनों की भांति। यानी हर वर्ष करोड़ो रूपयों का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा निर्वाचन कार्यों में।

शायद चीन को भनक है कि evm मुद्दे के चलते आज भारतीय में वापस वह राष्ट्रीय एकता नष्ट होने लगी है जो कि किसी भी बाहरी शक्ति से लड़ने के लिए आवश्यक होती है। भारत की यह सरकार evm भरोसे चाहे जितना बड़ा बहुमत सिद्ध करके सत्ता में आ जाये, मगर अब यह बाहरी शत्रुओं से बहोत कमज़ोरी से लड़ सकेगी। क्योंकि भारतीय नागरिकों से लेकर सैनिकों में असंतोष व्याप्त होने लगेगा कि अब वह जिन मूल्यों की रक्षा करने के लिए खड़े हैं वह सरकार स्वयं उनके हितों का प्रतिनिधित्व और रक्षा करने में माहर्थ नही रह गयी है। सरकार तो खुद चोरो और माफियाओं की रक्षक बन चुकी है ।

Evm मुद्दा आज इस राष्ट के अस्तित्व पर वापस खतरे की घंटी बजाने लगा है। भारत कोई तुर्की जैसे भौगौलिक स्थिति में बसा देश नही है। यह परमाणु शक्ति से सुसज्जित देश है, और इसके दोनों पड़ोसी भी परमाणु शक्ति सुसजित है, जिनसे दोनों से ही भारत के कुछ अपवाद चलते हैं।

साथ ही भारत विविधताओं का देश है। इसलिए यहां निरंतर प्रशासनिक निष्पक्षता और न्याय को अपने वज़ूद का प्रमाण जनता के मन मे बसाना पड़ता है। पता नही की evm के ठगों को यह बात समझ आ रही है कि नही। देश मे लोगों को अपने हितों के प्रति चेतना आये अभी मात्र 70 वर्ष ही हुए थे। और इस दौरान भी वह भ्रष्टाचार जैसे सर्पो से ही लड़ता रहा था। मगर अब evm की ठगी ने वापस लोगो मे आशंकाए और  निराशा भरना शुरू कर दिया है। भय यह लगता है कि कही 800 साल मुग़लो की गुलामी और 200 साल अंग्रेज़ो की ग़ुलामी झेलने वाला यह देश वापस 70 साल की नई उम्मीद लिए वापस किसी ग़ुलामी में न चला जाये। 

इस निराशा के कारण इतने भूमिविहीन नही है। सरकार का evm मुद्दे पर व्यवहार निरंतर लोगो मे असंतुष्टि भर रहा है।।भले ही यह सरकार इन असंतुष्ट वर्गों को evm के भरोसे अल्पमत साबित कर दे, मगर युद्ध वाले दिन दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जायेगा।  अभी जाते जाते उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी आशंकाओं के उसी तार को छेद दिया है जो कि कईयों के मन मे घर कर गया है।

Evm में छेड़छाड़ देश के तमाम समुदायों की हमारी उम्मीदों और हमारी आशाओं पर हमला करने जैसा है। इससे समुदायों में अपने प्रतिनिधित्व के प्रति वह आशंकाएं आ गयी है जिसको सरकार किसी भी सूक्ष्म प्रतिकात्मता यानी tokenism से कभी भी भर नही सकती है। चाहे जितना भी किसी दलित को राष्ट्रपति बना दे, मगर आरक्षण का खात्मा और हमला देश के आरक्षित वर्गी को वैसी आशंकाओं से भर रहा है जिससे उनकी चेतना को पता चल जाता है कि वास्तविकता और सूक्ष्म प्रतीकात्मकता में क्या अंतर होता है।

सरकार शायद वही पुरानी micheavilli रणनीति के भरोसे evm ठगी के युग मे आगे बढ़ते रहना चाहती है। नागरिकों को ग़ुलामों की भांति अर्धमार करके रखो। न इतनी आज़ादी दो को वह सपने देख सकें, और न ही इतना कुचल दो की वह विद्रोह पर उतर आएं। अभी हाल फिलहाल के शासक भी ऐसी ही रणनीति लिये अपने अपने देशो में evm ठगी करके जी रहे हैं।
मगर भारत वैसे ही सीमा विवादों से घिरा देश है। साथ ही इसकी इतिहासिक , सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्टभूमि भी एकदम अलग है। यहां शायद यह मीचेअविल्ली रणनीति  काम न आने पाए। भारत मे लोगो का ग़ुलामी का इतिहास है और वह शायद अंतर न कर सकें देश के साहूकारों की ग़ुलामी और किसी विदेशी की ग़ुलामी कर बीच का। यहां सामाजिक भेदभाव और पक्षपात का इतिहास है और विदेशी हमलवारों को यहां स्थापित हो कर स्थानीय जनसंख्या के नायक बनने के अवसर बहुत आसानी से मिलते आये हैं। यहां तमाम संस्कृतियां बस गयी है जिनके सोचने के तरीकों में अंतर है और वह सब यहां के प्रशासन में अपना अपना प्रतिनिधित्व को खोजती है।

पता नही evm के ठगों ने यह सब पाठ कभी पढ़े है या नही।


समाज मे अपने सत्यापित प्रतिनिधित्व का अभाव नागरिकों में घर करने लगा है। साहूकारों और उद्योगपतियों के पैसे से evm ठगी करके बनी सरकार में लोग सिर्फ अपने जीवन यापन को सुरक्षित रखने के मकसद से ही सहयोग करते रहेंगे। उनमे वह जोश , जस्बा खत्म होने लगेगा जिसमे कुछ प्राप्त करने के लिए कुछ अंतर प्रेरणा का प्रसार होता है। उन्हें यह एहसास की आगे के अवसर तो उनके लिए इतने संरक्षित नही है, बस इतने ही प्रेरित करेगा कि कैसे भी करके अपने आप और अपने परिवार का जीवनयापन संरक्षित रखो। इंसान और सैनिक अपनो का मोह छोड़ कर आगे कूद जाने के लिए तत्पर नही रह जायेगा क्योंकि अब उसका मन आशंकाओं से घिरा रहेगा कि पता नही उसके बाद उसके पीछे छूट गयी उसके परिवार और हितों की देखरेख कौन करेगा।

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