नकली बहुमत वाले प्रजानतंत्रिक देशो के नागरिकों के पास अपने इन हालात से मुक्ति पाने का कोई भी जरिया नही रह जाता है। नागरिक वर्ग में वास्तविक बहुमत अगर अपनी सरकार से नाखुश भी हो, तो भी वह सरकार के वास्तविक नियंत्रकों को बदल सकने लायक ही नहीं रह जाता है। इसका अर्थ है कि अब प्रजातंत्रों में अंतरात्मा की ध्वनि सुनने के लिए निश्छल व्यक्ति और उसकी सरकार तत्पर नही रह जाएगी।
नकली बहुमत वाले तथाकथित प्रजातंत्रों की संख्या में वृद्धि आने लगी है।
नकली बहुमत वाले प्रजातंत्रों की सरकारों की कार्यव्यवस्था मे कुछ गुण तो विश्वव्यापक स्थायी रूप से देखे जा सकते हैं। जैसे कि नागरिको में राष्ट्रवाद और देशप्रेम की भावनाओ को कुरेदते रहने की निरंतर कोशिशें। नकली बहुमति सरकारों के लिए ऐसा करना इस लिए आवश्यक है क्योंकि इसमें उनके लिए बहोत जीवन-उपयोगी लाभ हैं -- पहला, की सरकार के विरोधियों और विपक्षयों को नियंत्रण करने का अवसर मिलता है; दूसरा, की ऐसी सरकारों से संभावित मुक्ति केवल अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के फेरबदल से ही मिल सकता है ,जैसे आर्थिक प्रतिबंध, या शत्रु देश का आक्रमण। तो नागरिकों को ऐसी सहायता पहुचने से रोकने के लिए भी राष्ट्रवादऔर देशप्रेम के उत्तेजित प्रशासनिक माहौल बहोत सहायक सिद्ध होते हैं।
राष्ट्रवाद और देशप्रेम का माहौल बनाये रखने के लिए किसी देश से शत्रुता पाले रखना आवश्यक बन जाता है।
वैश्वीकरण के युग मे अंतरराष्ट्रीय व्यापार जिन व्यापारिक नियमों पर रचा बुना है , उन क़ानूनों के पैर जमाये रखने के लिए आवश्यक भूमि मानवाधिकारों से बनती है। नकली बहुमत वाले राष्ट्र अक्सर करके मानवाधिकारों का पालन करने में सक्षम नही रह जाते हैं। नागरिकों के विरोध का दमन करने के लिए वह मौलिक अधिकारों का उलंघन करते करते वह मानवधिकारों को भी तोड़ते रहते हैं। ऐसी सरकारें का खुद का जीवनउद्देश्य किसी निजी व्यापारिक अथवा उद्योगिक हित को साधना होता है, जिन आर्थिक व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ही शासन शक्ति का प्रयोग करती रहती हैं। नागरिकों को अर्धमरा करके रखने से ही ऐसी सरकारें खुद का जीवन संरक्षित कर सकती है। इसका अर्थ है कि यह सरकारें देश के वास्तविक बहुमत जनसंख्या को संतुष्ट नही कर सकती हैं, बस एक ऊपरी भ्रम रखती है जिससे कि जनता में नाउम्मीदी न फैलने पाए अन्यथा कोई बड़ा जन विद्रोह हो जाएगा। तमाम आर्थिक और सामाजिक असफलताओं के बावज़ूद नाउम्मीदी को फैलाने से रोकना इसके खुद के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक बन जाता है।
नकली बहुमत वाली सरकारों का भंडाफोड़ विदेशनीति की असफलताओं से ही हो सकता है, अन्यथा अंदरूनी संवैधानिक प्रबंधों से इनका भंडाफोड़ बिल्कुल भी संभव नही है। विदेशनीति के बिंदु है -- जैसे, शत्रु देश का आक्रमण जिसमे संभावित है कि वास्तविक बहुमत नागरिक उस नकली बहुमत सरकार का सहयोग नही करें; या फिर शत्रु देश का और अधिक समृद्ध और शक्तिशाली होना, जिससे यहां के नागरिकों में असंतोष फैले। इस परिस्थित से बचने के लिएयह सरकारें संयुक्त राष्ट्र की कल्याणकारी नीतियोँ में खुरपेंची कर सकती है। जैसे कि, सैन्य शक्ति देशो का ध्रुवीकरण। नागरिकों के स्वतंत्त्र आवाजाही पर प्रतिबंध, और मानवाधिकारवादियों पर शिकंजा कसना।
नकली बहुमत सरकारों में महंगाई बढ़ते रहना एक भयंकर रोग की तरह आर्थिक नीतियों से चिपक जाता है। आर्थिक असफलताओं को छिपाने के लिए यह देश आवश्यक डाटा को गलत उपलब्ध करवाते हैं, या फिर अनावश्यक कह कर उपलब्धता को बंद ही कर देते हैं। किसी भी सूरत में, यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नकली बहुमत वाले देश सहयोगकारी नही रह जाते हैं, खास तौर पर उन देशों के साथ जिनकी सरकारें वास्तव में जनकल्याण उद्देश्यों से कार्य प्रेरित हैं।
नकली बहुमत की सरकारे अपनी राष्ट्रनीतियों को doublespeakयानी "थूक के चाट' तरीको से ही चला पाती है। झट आवश्यकता के अनुसार किसी नीति को जनता के बीच कल्याणकारी प्रक्षेपित करना, और दूसरे ही पल राष्ट्रविरोधी घोषित कर देना। यानी सरकार के हर निर्णय और उस की छवि को प्रतिपल जनता में सकारात्मक बनाये रखना इसके खुद के जीवन के लिये आवश्यक हो जाता है। "थूक के चाट" इस नीति का अर्थ है की नकली बहुमत सरकारें मीडिया औरसूचना तंत्र को निरंतर अपने अधीन रखती है।इसका यह भी अर्थ है कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति मात्र एक छलावा बन कर रह जाती है। और इसका अर्थ है कि नकली बहुमत सरकारों का आए दिन मनावधिकरवादियों से मुठभेड़ होते रहना, जिनके दमन और प्रताड़ना के लिये यह कुख्यात होने लगती हैं।
तो अपनी अर्धमरी जनता को अपने नियंत्रण में रखने के लिए यह सरकारें किसी भी बाहरी दृष्टिकोण और निष्कर्षों को जनता तक पहुचने से रोकना चाहती है ताकि सरकार की असफलता का भंडाफोड़ होने से कोई व्यापक जनविद्रोह न हो जाये। इसके लिए यह सयुंक्त राष्ट्र जैसी उच्च छवि, सम्मानित संस्था में छेड़छाड़ के लिए अवश्य तत्पर रहेंगी और इसके प्रशासनिक कार्यालयों में अपने प्रतिनिधि के रूप में ऐसे ही नुमाइंदे भेजेंगी जो इनके यह गलत मंसूबो को पूरा कर सकें।
इसका अर्थ है कि अब जब कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग यंत्रों के चलते नकली बहुमत वाले प्रजातंत्रों का युग आ गया है तब संयुक्त राष्ट्र के भी विफल हो जाने का समय आरम्भ हो गया हैं।
संयुक्त राष्ट्र को अभी से ही इस विषय पर चर्चा आरम्भ कर देना चाहिए।
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