secularism विरोध, और वैज्ञानिक चिंतन शैली का नाश
1986 या 1987 की बात है। जो आज की मध्य पीढ़ी है , उस समय अपने बचपने में, करीब 10वर्ष या उससे भी कम आयु की थी। टीवी पर दूरदर्शन ही एकमात्र सेवा प्रदानकर्ता हुआ करता था। तब भारत मे विज्ञान और समाज मे वैज्ञानिक विचारधार को प्रसारित करने के लिए बहोत सारे सार्थक प्रयासों की दिशा मे कई सारे science fiction , यह वैज्ञानिक परिकल्पना के कार्यक्रम आया करते थे।छोटे बच्चों में खास तौर पर वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करने के लिये। उस धारावाहिकों में कुछ प्रमुख नाम है सिग्मा और और इंद्रधनुष।
इन परिकल्पनाओं में दिखाया जाता था कि भविष्य में जब कंप्यूटर आ जाएंगे तब कैसे सिर्फ बटन दबाने मात्र से कितनों ही बड़े और अजीबोंगरीब मशीनी कारनामे यूँ ही पलक झपकने में ही घट जाएंगे।
भारत मे कंप्यूटर बस आना शुरू ही हुआ था और बहोत कम, शायद कुछ खुशकिस्मत लोगों की ही कंप्यूटर तक पहुंच संभव हो पाई थी।
और तत्कालीन छोटी पीढ़ी , जो कि आज की मध्य आयु युवा पीढ़ी है, ने इस परिकल्पनिक मंच कला से बहोत प्रेरित हो अपने अपने कंप्यूटरों से कुछ ऐसे ही कारनामा करने के प्रयास किये थे। वह यह कभी न कर पाए, मगर इस बहोत सी कोशिशों के बाद कंप्यूटर तकनीक का सत्य ज्ञान जरूर प्राप्त कर लिया था कि मात्र प्रोग्राम लिखने से कंप्यूटर कोई कारनामा नही कर देता है, उसको परिपूर्ण करने के लिए सम्बंधित कलपुर्जे यानी हार्डवेयर भी होना चाहिए।
यह पुराने चिट्टे को खोलने की आवश्यकता आज इसलिए पड़ गयी कि बहोत सारे लोगों ने कुछ मीडिया चेनलों के तथाकथित समाचार को व्हाट्सएप्प पर भेजा कि कुक विशेष 9 संख्या वाले फ़ोन नंबर को दबाने से आपका मोबाइल फ़ोन धमाका कर जाएगा, और यदि को आसपास हुआ तो उसको जानलेवा क्षति हो सकती है।
मैं आस्चर्य में हूँ कि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के जिस सबक को हमारी पीढ़ी ने '90 के दशक के आरंभिक काल मे ही प्राप्त कर लिए था, जब कि कंप्यूटर बहोत अनुपलब्ध थे, वह आज की पीढ़ी जिसके पास मोबाइल और कंप्यूटर इतनी सहज उपलब्ध है, वह अभी तक प्राप्त नही कर सकी है।
मन विचलित हो कर सवाल करता है कि क्या आज की युवा पीढ़ी कंप्यूटर इतनी अज्ञानी है कि वह समझती है उनके हाथ का कंप्यूटर या मोबाइल कोई श्रमिक कृत्य को कभी भी, यूँ ही कुछ बटन दबाने से कर गुज़रेगा वह भी बिना किसी समर्थिक कलपुर्जा संसाधन के ?
क्या हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी कंप्यूटर प्रौद्योगिकी की सहज उपलब्धता आने से और अधिक मूढ़ और अतार्किक हो गयी है, अपने खोजी मस्तिष्क को नष्ट कर बैठी है , जबकि इससे बेहतर की युवा पीढ़ी तब ही थी जब कंप्यूटर दुर्लभ थे, और मोबाइल तो अंजाना, अनसुना ही था ?
हां, शायद।
आज वैज्ञानिकता का प्रसार हमारे समाज की आवश्यकता नही रह गया है। आज के secularism विरोधी राजनैतिक काल मे विज्ञान का सामाजिक प्रचार तो कई सारे लोगों के कूटनैतिक उद्देश्यों के विपरीत है। आज पद्म विभूषण उन लोगों को दिया जाता है जो वैज्ञानिक परिकल्पना के नाम पर समाचार दिखाते हैं कि क्या गाय को एलियन ने अपहरण किया था। वह जो कि सुबह की शुरुआत "हमारी संस्कृति" के प्रचार के नाम पर ज्योतिष "विज्ञान" से करते है, और दोपहर में मनोविकृत व्यवहारों से भरे धारावाहिकों की कहानियों को समाचार बना कर दिखाया करते है।
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