कलयुग में झूठ की marketing

Marketing क्या है ??

Marketing  एक बेहद अलंकृत शब्द है कलयुग में जनता को बुद्धू बना कर झूठ, फरेब, नुक्सानदेहक , नशीली वस्तु को बेचने का, एक "अवैध" वस्तु के व्यापार करने का।

वास्तव में marketing का अर्थ अपने मूल भाव में था किसी  दुर्लभ, अपर्याप्त, मगर वैध व्यापारिक वस्तु की सहज बिक्री और व्यापार हेतु उस वस्तु को जनता के बीच पहुचाने का logistical क्रम बनाना, जिससे उस वस्तु की आसान उपलब्धता से उसकी सहज बिक्री को प्राप्त किया जा सके।
जाहिर है की marketing के प्रासंगिक अर्थो में promotion और advertising भी आता है, क्योंकि जब कोई वस्तु दुर्लभ और अपर्याप्त होती है तब उसकी जन सूचना और जनता के बीच उसकी जानकारी भी कम होती है। इस बाधा को पार लगाने के लिए जिस पद्धति को उपयोग में लाया जाता है उसे promotion और advertising कहते है।

मगर वर्तमान में marketing के मायनो में वह "दुर्लभ और अपर्याप्त" व्यापार की वस्तु एक "अवैध पदार्थ" है, जिसके व्यापार पर आरंभिक दिनों में प्रतिबन्ध माना गया था।

आधुनिक जानकारी युग की  वह अवैध व्यापारिक वस्तु क्या है ?
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"एक बेबुनियाद, स्वयं अपने पैरों पर टिका न रह सकने वाला झूठ" ।
DISINFOMATION.

जी हाँ। आधुनिक काल information age वाला कलयुग है। यहाँ जानकारी बिकती है तो साथ साथ झूठ भी बिकता है। जरूरतों की बात है, कुछ व्यापार अज्ञानता, अबोद्धता , असमंजस जैसी जन चेतना पर ही टिके हुए है। प्रजातान्त्रिक राजनीति भी ऐसा ही एक उपक्रम है। जानकारी में मिलावट करके झूठ को लोगों को निरंतर बेचा जाता है और अरबो रूपए का मुनाफा कमाया जाता है।

झूठ को निरंतर बिकते रहने के लिए जिस logistical क्रम की आवश्यकता होती है वह है propaganda और Disinfomation। जैसे किसी सामान्य वस्तु की बिक्री के लिए जनता में जानकारी लाने हेतु promotion और advertising की जरूरत होती है, उसी तरह झूठ के लिए propaganda चाहिए होता है।
झूठ के propaganda की पद्धति होती है जन सूचना माध्यम। यानि समाचार सूचना तंत्र, जिसे मीडिया केह कर भी बुलाया जाता है।

झूठ की Marketing, यानि झूठ को आसानी से लोगों के बीच स्वीकृत करवाने के लिए जिस logistical (लॉजिस्टिकल) क्रम की आवश्यकता है वह इस प्रकार है
झूठ बोलो,
ज़ोर से बोलो,
बार बार बोलो,
लगातार बोलो,
जब तक की,
लोग उसे ही सच न मान ले।

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