Dilip Chandra Mandal जी के नाम खुला पत्र

"जाति तू क्यों नहीं जाती"

@Dilip C Mandal जी,
मुझे लगता है कि इस देश में आरक्षणवादी भी उतने ही बड़े ढकोसले वाले हैं जितना की आरक्षण-विरोधी। अगर किसी आरक्षण-विरोधी बॉस के जमीदारी के व्यवहार से आप परेशान हैं और फिर उसके स्थान पर कोई आरक्षण समर्थक आ जाये तो आप कतई यह अपेक्षा मत रखियेगा की अब आप को जमीदारी और सामंतीय व्यवहार से मुक्ति मिल जायेगी ।
बॉस आपका जैसा भी हो -- चाहे आरक्षण-विरोधी हो, चाहे आरक्षण-समर्थक हो, रहता वह जमीदारी दिमाग वाला ही है ।
कारण यह है कि आरक्षण समर्थकों को भी खुद असल में आरक्षण चाहिए "बॉस" के पद तक पहुँचाने के लिए। ताकि फिर वह लोग अपनी तरह का जमीदारी का डंडा चला सके। मगर चलेगा जमीदारी पना ही। इस देश में जमीदारी पने यानि सामंतवाद का असल में विरोधी तो कोई है ही नहीं। अतीत काल में सवर्ण लोगों ने जिस तरह के तर्क और व्यवहार करके समाज में भेदभाव , ऊँच-नीच फैलाया, तब उससे त्रस्त होकर उससे मुक्ति माँगने वालों ने आरक्षण का दामन पकड़ा। मगर अब खुद आरक्षण के भरोसे "बॉस" बनने पर वापस वही जमीदारी वाला तर्क और व्यवहार ही करते हैं।

और फिर जब आरक्षण-विरोधी आरक्षण से हुए नए युग के भेदभावों से परेशान हो कर आरक्षण व्यवस्था की शिकायत करते हैं तब आरक्षवादि टिपण्णी करते हैं कि, "जाति तू क्यों नहीं जाती"।
आखिर जाति जायेगी कहाँ से ? सामंतवाद वाला तर्क और व्यवहार किसी की जाति से चिपका हुआ नहीं है। और तुमने विरोध जातिवाद का किया है, सामंतवाद का नहीं !! जातवाद तो कोई समस्या न थी, और न हैं। दुनिया भर में feudalism यानि सामंतवाद को समस्या के रूप में चिन्हित किया गया, मगर इसके चरित्र को पहचान करके इसका निवारण किया गया। भारत में आरक्षणवादि, जो की सामंतवाद के सबसे प्रथम पीड़ित रहे हैं, वह सामंतवाद को उसके चरित्रों से न पहचान कर, उसके कुलनाम यानि surname से पहचानते हैं।
अब खुद ही बोलें, आखिर जाति जायेगी कहाँ ?? जब आरक्षणवादि खुद शक्ति आसीन होते हैं तब वह खुद भी सामंतवादी तर्क और व्यवहार ही करते फिरते हैं !! तब फिर सवर्ण नए किस्मम के पीड़ित बन जाते हैं और वह इस सामन्तवादी व्यवहार को वापस इनके surname से पहचानने लगते हैं। बात एक गोल चक्र में घुमने लगती हैं। आप खुद बताये,   कहाँ मुक्ति मिलेगी जाति से ??!!

सामंतवादी तर्क और व्यवहार क्या है, इसके बारे में भारत में कोई चर्चा नहीं होती है।

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