व्यक्तिनिष्ठता और आत्ममुग्धता के बीच का जोड़

व्यक्तिनिष्ठता और आत्ममुग्धता में भी एक जोड़ है।
सामंत लोग अक्सर करके आत्ममुग्धता मनोरोग (Narcissism Personality) से पीड़ित होते थे। आत्ममुग्ध मनोविकार से पीड़ित लोग अच्छा सामाजिक संपर्क नहीं रख सकते है। क्योंकि वह बात बात में खुद को केंद्र रख कर ही विचारों का मुआयना करते है। उनके लिए वह सही है जो उनको लाभ दे, और वह गलत है जो उनको हानि करे। वह दूसरों की दृष्टि से किसी कृत्य का मुआयना नहीं कर सकते हैं।

आत्ममुग्धता एक प्रकार का austism disorder है, जब बाल्य अवस्था की मैं- मेरा-मुझे ( I-me-myself) से इंसान बाहर नहीं निकल पाता है। ऐसा व्यक्ति empathy नाम की मानव गुण को विक्सित नहीं कर पता क्योंकि वह दूसरों की दृष्टि से मुआयना नहीं करना जनता। और न्याय की दुविधा यह है की न्याय का जन्म होता है "don't do unto others, what you would not do unto yourself" के सिद्धांत से ("दूसरे पर वह मत करिये जो आप अपने साथ होना नहीं देखना चाहते")। autism शब्द का मूल अर्थ भी "आत्म केंद्रित" है। आत्म-मुग्धता यानि narcissism का अभिप्राय भी "आत्म केंद्रित" से जुड़ा हुआ है। आत्ममुग्ध व्यक्ति सिर्फ स्वयं के लाभ और हानि को ही समझ पाता है। इसे बोलचाल की भाषा में स्वार्थी आचरण (selfish behavior) बोलते है। वह दूसरों का फायदा उठना स्वयं सीख लेता है।
    असल में शिशु अवस्था में आत्म केन्द्रीयता जीवन उपयोगी आचरण होता है। इसलिए क्रमिक विकास और प्रकृति ने सभी जीव जंतुओं के शिशुकाल में उन्हें आत्मकेंद्रियता से सुसज्जित किया है। दिक्कत यह है की क्रमिक विकास के बड़े जीव, जैसे की मनुष्य, अपने जीवन के लिए सामाजिकता पर निर्भर भी करते है। इसलिये बाल्य विकास के दौरान साधारण मनुष्य बालक शिशु अवस्था के आत्मकेंद्रियता को त्याग करके सामाजिक में तब्दील हो जाता है। और यदि कही पारिवारिक , राजनैतिक या सामाजिक माहौल में कही कोई गड़बड़ उत्पन्न हो जाये (जैसे अत्यंत गरीबी, हिंसा, पारिवारिक क्लेष, इत्यादि) तब शिशु आत्मकेंद्रियता को त्याग नहीं कर पाता और वयस्क हो कर आत्ममुग्ध आचरण का व्यक्ति बन जाता है।

आत्ममुग्धता ऐसे व्यक्ति को सफलता खूब दिलाती है। वह एहसान लेकर भी एहसान फरामोशी कर सकता है। वह धोखा दे सकता, पीठ पीछे खजर चला सकता है। इसलिए वह कामयाब नज़र आता है। बस सामाजिक संबंधों में बाधा रहती है। उसके दोस्त तो बहोत होते हैं, मगर अपने सगे कम होते है।

सामंतो की सफलता भी आत्मकेंद्रियता से ही आती है। इसलिये आत्ममुग्धता अक्सर सामंतवादी चरित्र "गुण" है, जो की वैसे एक शिशु विकास का दोष होता है।

सामंत या वैसी मानसिकता के लोग आसपास ऐसे ही लोग रखते है जो की उनकी हाँ-में-हाँ भरे। न्याय वही करते है जो उन्हें लाभ दे। उनके मस्तिष्क को एक यौन आनंद का अनुभव होता है अपने शत्रु को परास्त करके, उपहास या अपमान करके। वह इस प्रकार के आनंद के आदि होते है।  इसे मनोविज्ञान में narcissistic pleasure supply बुलाया जाता है। आसपास खुदामद और चापलूसों का हुजूम बनाये रहते हैं। ऐसे लोगों को निष्पक्ष होना मुश्किल होता है। वह वस्तुनिष्ठ(objective) व्यवहार नहीं कर सकते हैं। वह व्यक्ति की अपने प्रति निष्ठा को  बढ़ावा देने के लिए उन्हें इनाम में पदोन्नति देते है । और शत्रु और तीखे आलोचकों को सजा के तौर पर प्रताड़ना।
बस, यही से व्यक्तिनिष्ठता सरकारी या कार्यालय का मान्य आचरण बन जाता है।

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