व्यक्तिनिष्ठता भरा मूल्यांकन और थल सेना अध्यक्ष की नियुक्ति

सोचता हूँ कि योग्यता नापने का तराज़ू कौन सा प्रयोग किया गया होगा? कौन सा वस्तुनिष्ट, objective, मापन थर्मामीटर है योग्यता नापने का ? वरिष्ठता का तो पैमाना होता है , मगर योग्यता क्या ?
क्यों supersede करवाया गया सेना अध्यक्ष को ?

व्यक्तिनिष्ठता , यानि subjectivity सामंतवाद युग वाली न्याय व्यवस्था का वह चरित्र है जो की सभी प्रशासनिक बर्बादियों का जड़ था। subjectivity मनमर्ज़ी के कानून को जन्म देती है। प्रमाण और साक्ष्यों को अपनी सुविधा और पसंद से स्वीकृत या अस्वीकृत करने का मौका देती है। discretion और arbitrariness को ही कानून बना देती है। फिर यही से भेदभाव जन्म लेता है। रंगभेद, लिंगभेद, परिवारवाद nepotism, क्षेत्रवाद , जातिवाद , सब कुछ पनपता है। समाज के 80 प्रतिशत आबादी को 15 की आबादी नियंत्रित करने लगती है। वैसी सामाजिक , राजनैतिक और प्रशासनिक परिस्थितियां बनती हैं जिनके सुधार के लिए आज़ादी के युग में आरक्षण सुधार व्यवस्था का जन्म होता है।

पश्चिम के समाज में सामंतवाद की  व्यक्तिनिष्ठता वाली इसी बदखूबी को खत्म करने के लिए Dicey's  rule of law और Driot Administratiff का जन्म हुआ।

बेहद दुखद है की तमाम संविधान और कानून लिख डालने के बावज़ूद भारतीय प्रशासन आज भी वस्तुनिष्ठता यानि subjectivity के तौल ही प्रयोग करना पसंद करता है।
आज भी समझ और ऑब्जेक्टिव पैमानों के परे है की कौन सी फ़िल्म हिट होने लायक है और कौन सी नहीं । बल्कि जब बॉक्स ऑफिस पर कमाई को objective पैमाना माना जाने लगा तब ऐसी ऐसी फिल्मो ने भी कितने सौ करोड़ों की कमाई कर डाली है की मुंह खुला रह जाता है की क्या ऐसी फ़िल्म भी हिट थी ?
यही हाल क्रिकेट के खिलाडियों का है। बल्कि पूरे स्पोर्ट्स प्रशासन का यही हाल है । कौन सा खिलाडी अंत में किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करेगा , यह कोई और जान ही नहीं सकता सिवाए उसका सिलेक्शन पैनल (selection panel)।

आज़ाद भारत में अभी भी तथ्य से अधिक प्रबल श्रद्धा है। लोग प्रमाणों का मूल्यांकन जानते ही नहीं है। गवाहों और मुज़रिम के चरित्र अपने अपने श्रद्धा से समझ कर तय किया जाता है की कौन सही केह रहा है और कौन नहीं। marketing एक अलंकृत शब्द उभर आया है, झूठ और फरेब को बड़ी आबादी को बेचने का। नीतिगत कार्यों के मूल्यांकन का, उनके fact checking और objective मूल्यांकन का कोई प्रबंध नहीं किया गया है।

औसत भारतीय प्रबंधक आज भी performance evaluation में व्यक्तिनिष्ठ पैमानों को अधिक प्रयोग होने देता है । performance evaluation को तो प्रकट रूप में "गाजर" बुलाया जाता है good book culture को ऑफिसों में आपसी सम्बन्धों और नियंत्रणों को लगाने का। मगर फिर भी सब कुछ बदस्तूर जारी है।

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