the difference between US and India in reading the heart of the law pertaining to Free Speech

reference the news: http://timesofindia.indiatimes.com/tech/social-media/US-ignores-Indias-request-against-Google-Facebook/articleshow/19870023.cms
US ignores India's request against Google, Facebook   
ऐसा लगता है की कांग्रेस पार्टी की यह वकील-संग-विधेयक सिबल , तिवारी और सिंघवी की तिकड़ी को स्वतंत्र अभिव्यक्ति सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार नियम को समझने में कुछ कम-मानसिक क्षमता की बीमारी है । यह तीनो ही स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मानवाधिकार नियम को कुछ यूँ पढ़ते हैं कि , "नागरिक किसी के भी सम्बन्ध में कुछ भी असत्य , द्वेष पूर्ण , निंदा पूर्ण , या अपशब्द नहीं बोल सकता । इस बहार उसे स्वतंत्र अभिव्यक्ति प्राप्त है । "
       जबकि अमरीकी और अन्तराष्ट्रीय नियम में स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कुछ ऐसा समझा जाता है की, " नागरिक को कुछ भी भाव दिखलाने की पूर्ण स्वतंत्र अभिव्यक्ति प्राप्त होगी , हालाँकि नागरिक कोशिश करेगा की वह किसी के भी सम्बन्ध में अपनी यह स्वतंत्रता कुछ भी असत्य , द्वेष पूर्ण , निंदा पूर्ण , या अपशब्द बोलने के लिए नहीं करेगा "।
       बुद्धि से कमज़ोर इन तीन वकीलों को तिकड़ी ऊपर लिखे दोनों संदर्भो के बीच में अंतर कर सकने में असक्षम लगता है । शब्दों की स्थिति में परिवर्तन से दोनों वाक्यों के केन्द्रीय भाव में जो अंतर है, यह तीनो वकीलों विधेयक इसको समझ सकने में नाकाबिल लगते हैं ।

      It seems like Sibal, Tiwari, Singhvi have a psycho trouble in understanding the idea of free speech. These three lawyer-cum-legislators seems to read the free speech Idea and principle as " You cannot speak anything untruthful, slanderous, critical ,and obscene about anyone. Outside of this, you have free speech".
          The US founders of the nations designed the free speech idea as " You can speak anything, however avoid the untruth, slanderous, critical , obscene about anyone".
      The troika of Congress is mentally incompetent to know the difference between the two kinds of readings.

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