एस्परगर सिंड्रोम

       एस्परगर सिंड्रोम (Asperger Syndrome ) नाम का मनोविकार एक "स्वलीन क्ष्रेणी के विकार" की (Autism Spectrum disorder ) समूह का बौधिक विकास सम्बंधित विकार है । इस बौधिक मनोविकार के मुख्य लक्षण हैं सामाजिक सम्बन्ध अथवा बात-व्यवहार में दिक्कत होने (या की समझ का न होना की कब, कहाँ, कैसे व्यवहार करना है ); और इसके साथ-साथ कुछ सीमित किस्म के व्यवहारों का पुनरावृत प्रदर्शन अथवा सामान्य, विस्तृत अभिरुचियों की कमी ( या की बार-बार कुछ ख़ास किस्म के व्यवहार को दोहरना )।
               एस्परगर सिंड्रोम (Asperger Syndrome ) को "स्वलीन(= जो अपने में ही तल्लीन होते है, बाहरी दुनिया से जुड़ सकने में बौधिक रूप से कुशल / सक्षम नहीं होते) क्ष्रेणी के विकार" से स्पष्ट रूप से भिन्न कर सकना थोडा मुश्किल होता है । जो कुछ अंतर है वह बस वजन और मात्रा का ही है की किस गंभीरता से भाषाई और संज्ञानात्मक(=cognitive ) विकास का आभाव हुआ है । एस्परगर सिंड्रोम में Cognitive डेवलपमेंट इतना अधिक बंधित नहीं होता माना जाता है । तो एक तरीके से एस्परगर सिंड्रोम में भी मरीज के अन्दर बोल-चाल की भाषा का अविकसित स्वरुप पाया ही जाता है , या फिर की अटपटा प्रयोग। शारीरिक संरचना और चहरे के देखने में भी कुछ फूहड़ पन होता है ।

      अस्पेर्गेर सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे के सामाजिक सम्बन्ध, दोस्ती, बात-चीत कर सकने में एक परिपूर्ण व्यक्तित्व नहीं रखते हैं । वह अक्सर कर के कुछ अटपटी सी बात कह देते हैं । अकसर कर के उनमे किसी वस्तु अथवा विषय को लेकर कुछ व्य्सनित करने वाली अभिरूचि मिलती है । डॉक्टर लोग 'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' को 'स्वलीन समूह के मनोविकार' में समूहित करते हैं । इस समूह के मनोविकार शिशुओं के विस्तृत विकास - बौधिक और शारीरिक - से सम्बंधित मनोरोगों का वर्णन करते हैं । इसलिए इस समूह को pervasive developmental disorders के नाम से भी बुलाया जाता है ।
        अस्पेर्गेर सिंड्रोम जैसे मनोविकारो का उपचार आजतक तो खोज नहीं जा सका है , मगर इनके लक्षणों की सही जानकरी के द्वारा इनके रोगियों को एक संचालित जीवन देना,( एक बढ़िया, संतुलित जीवन जीने) में सहायत करी जा सकती है ।

 अस्पेर्गेर सिंड्रोम के कुछ सूचक (लक्षण ) इस प्रकार हैं : 
१) किसी भी प्रकार की लम्बी , एक-तरफा बातचीत में अभ्यस्त होना , यह समझे बिना की सुनने वाला आपके बातों /विचार को सुनने में रूचि रखता है भी की नहीं । अगर श्रोता बातचीत का विषय बदलना चाहता है , कोई संकेत देता है और व्यक्ति उसे समझने में असमर्थ है , तब भी यह 'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' के लक्षणों में है ।
   २) बातचीत के दौरान कुछ अलग ही शारीरिक भाषा के लक्षण -- जैसे की आंख-से-आंख संपर्क की कमी , चेहरे के भावो का व्यक्त करे जा रहे विचार से ताल-मेल न होना , या पर्याप्त हाव-भाव की कमी ; ज्यादातर एक तना हुआ, 'मानो जैसे क्रोध में हो' वाला चहरे के भाव ।
 ३) बातचीत में कुछ गिने-चुने ही विषयों पर थोडा बहुत संतुलित बातचीत कर सकना । जैसे की क्रिकेट , फ़िल्म , ट्रेनों के आवागमन की जानकारी , मौसम, सांप , शेर , कुत्ते , इत्यादि । अन्य विषयों पर बातचीत में बांधा महसूस करना।
    ४) उसके भावों से यह आभास आना की वह बातचीत को समझ नहीं पा रहा है । या की वह बातचीत में वरणित विचार और भावना को सही से ग्रहण नहीं कर पा रहा है । उसके अनुरूप बातचीत की प्रतिक्रीय नहीं दे रहा है ।
 ५) दूसरो के हास्य को , भावना को, प्रसंग और अर्थ को समझने में दिक्कत ।
    ६) वाणी में सिर्फ एक ही भावना का होना -- जैसे की सिर्फ उदासीन भाव से सम्बंधित वाणी का प्रयोग , या फिर की कुछ अधिक तीव्रता से शब्दों का निष्कर्षण , या भारी आवाज ।
 ७) चलते समय चाल ढाल में हाथ पाँव में संतुलित क्रिया न होना ।

 छोटे शिशु , २ से ३ साल तक की उम्र के , अस्पेरेगर सिंड्रोम में अक्सर समय से अधिक समय बाद बातचीत आरम्भ करते हैं । वह कुछ शारीरिक क्रियाएं जैसे गेंद पकड़ना , दोस्ती करना , चेहरे के भाव में प्रतिक्रिया करना देर से आरम्भ करते हैं । वयस्क 'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' के रोगी अपने शरीर के संचलन में कमज़ोर होते हैं । इन्हें खेल के मैदान में सबसे पिछड़े खिलाड़ी के रूप में देखा जा सकता है । शारीरिक नियंत्रण की कमी की वजह से यह अक्सर कर के चोटिल होते रहते हैं । जैसे, अपने पास आती गेंद को सही समय में न देख पाना , या अपने शरीर को तुरंत प्रतिक्रिया कर के गेंद के रस्ते से बचा पाना । ऐसे में इन्हें चोटें ज्यादा लगती हैं ।

  कभी-कभी छोटे शिशु अपने शिशु काल में तो संतुलित रूप से जीवंत और क्रियाशील होते हैं मगर 'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' के लक्षण आगे बाल्य अवस्था में दिखाई देना शुरू होते है । वह अक्सर कर के युवा अवस्था में आने तक 'अवस्वाद' (=कोई अजीब सा दुःख ), या छोटी बाते पे बहोत अधिक "मनोविकृत चिंतित" (anxiety ) के रोग से ग्रस्त होने लगते हैं ।

कभी-कभी अस्पेर्गेर सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे कुछ अदभुत कौशल भी दिखलाते हैं जैसे गणित , संगीत इत्यादि क्षेत्रों में । अभिरुचि का दायरा असामान्य रूप से छोटा होने की वजह से, या फिर किसी वस्तु अथवा विषय में एक व्यसन (=ग्रस्त मानसिकता) के जैसे अभिरूचि होने की वजह से वह इस छोटे क्षेत्र में कुछ अधिक ही कुशल हो जाते है । और फिर एक सामान्य कुशल मनुष्य होने का आभास देते हैं , जबकि वह असल में अस्पेर्गेर सिंड्रोम से प्रभावित होते हैं ।   

अस्पेर्गेर सिंड्रोम के कारक : 
अस्पेर्गेर सिंड्रोम के सही कारकों को अभी पूरी तरह से नहीं जाना जाता है । ऐसा माना जाता है की यह शिशु को नाभिकीय अवस्था के समय हुए कुपोषण या माता को किसी मनोवैज्ञानिक दुःख/ सदमा इत्यादि से होता है जब उसके मस्तिष्क का विकास सामान्य से कुछ अलग हो जाता है । शिशु नाभिकीय अवस्था से ही सही/सामान्य मस्तिष्क संरचना नहीं प्राप्त कर पाता है । मस्तिष्क की कोशिकाएं आपसी जोड़ उचित और सामान्य नहीं रख पाती हैं ।
    आगे जन्म के उपरान्त भी परिवार में उपलब्ध माहोल "अस्पेर्गेर सिंड्रोम" के कारणों को उत्पन्न कर सकता है , या पहले से ही मौजूद 'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' को गंभीर कर सकता है ।
    'अस्पेर्गेर सिंड्रोम' की पुरुष लिंग के शिशुओं में स्त्री-शिशु के अपेक्षा अधिक संभावना होती है।

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