शिस्टाचार कभी भी तर्क विहीन नहीं हो सकते

      सदगुण , शिष्टाचार तो कभी-कभी ऐसे सुनाई देते हैं की मानो यह सिर्फ विश्वास और आस्था से उदित है, इसलिए सांस्कृतिक कर्त्तव्य है, और इनमे तर्क दूड़ना अपराध होगा / शिष्टाचार का अनुस्मरण तो आजकल कुछ ऐसे ही करवाया जा रहा है / "आज कल इस देश में राजनीति की भाषा ऐसी बदल है , इतनी गन्दी हो गयी है की लोग एक दूसरे पर कीचड उछाल रहे हैं " ! / "कुछ लोग बिना प्रमाण के कुछ प्रतिष्ठित लोगों पर बे-बुनियाद आरोप लगा रहे हैं "/ "सार्वजनिक जीवन में अपने विरोशी के प्रति ऐसे शब्दों का प्रयोग उचित नहीं हैं "/
    अन्धकार में करी जाने वाली भारतीय राजनीति में कुछ शिष्टाचार की आस्थाओं का भी खूब प्रयोग हुआ है / जैसे की , अपने राजनैतिक विरोधी के चरित्र पर हमला करना एक अच्छा "शिस्टाचार" नहीं है (यानी की शिस्ट-आचरण नहीं है ) / क्यों नहीं है, किन सीमाओं के भीतर में नहीं है , इस पर तर्क करना ही अपने आप में बेवकूफी समझ ली गयी है / क्यों न हो, भारतीय सभ्यता में "सभ्यता" इतनी अधिक है की समालोचनात्मक चिंतन का आभाव बहुत गहरा और गंभीर है / यहाँ विश्वास अधिक महत्व पूर्ण है , विवेक नहीं / "विवेक" सिर्फ बच्चों के नाम रखने पर ही अच्छा सुनिए देता है /
      और नतीजा यह है की अब अपराधी राजनीति में घुसपैट कर चुके है / क्या अब भी इस पर बहस करनी पड़ेगी, कि फिर वही , "मामला अभी कोर्ट में लंबित है " , या फिर की, "जब तब प्रमाणित न हो जाए प्रत्येक व्यक्ति को निर्दोष ही मन जाना चाहिए " /
     शिस्टाचार कभी भी तर्क विहीन  नहीं हो सकते / वह अक्सर अपने बीते हुए युग के तर्क पर आधारित होते है / जब युग बदल जाता है, तकनीक बदल जाती है, तब शिष्टाचार के तर्क भी बदल जाते हैं / कभी कभी वह एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में रख लिए जाते है और तब उन्हें संस्कृति के कर पुकारा जाता है/ यह सत्य है कि तब ऐसे शिस्टाचार में वर्तमान युग के अनुरूप इस्थापित तर्क नहीं रह जाता है , मगर यह अपने आप में एक तर्क बन जाता है कि वह ऐतिहासिक धरोहर मान कर संरक्षित करे गयें हैं / क्या यह उचित होगा कि शिष्टाचार को मात्र सदगुण होने कि वजह से लगो करने का अनुस्मरण करा जाए, जब कि ऐसा करने पर किसी मौजूदा सत्य और धर्म का पतन ही क्यों न हो /
      राजनीति में एक अच्छा शिष्टाचार है कि प्रतिद्वंदियों कि अपनी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता सिर्फ  राजनैतिक क्षेत्र तक ही रखनी चाहिए / क्योंकि इंसानों में मत-भेद तो होते हैं, मगर इंसानियत कि रिश्ता नहीं ख़तम होना चाहिए / यह एक अच्छा शिस्टाचार है/ अब अगर कुटिल-बुद्धि राजनैतिक इस मान्यता का दुरुओप्योग करें कि राजनातिक क्षेत्र में चुपके से संथ-गाँठ कर ले और राजनैतिक प्रतिद्वादिता भी जनता को लूटने के लिए प्रयोग करें तब भी क्या शिस्टाचार ज्यादा तर्क-वान और विवेक-पूर्ण माना जाना चाहिए? क्या तब भी प्रतिद्वंदियों के व्यक्तिगत जीवन में छिपे सांठ-गाँठ के प्रमाणों को सब के सम्मुख नहीं करना चाहिए ?

      भारतीय राजनीति भ्रम पर ही चलती है / यहाँ पूर्ण कोशिश होती है कि सत्य-स्थापन की तकनीकें लागू न हो पाए , जिससे कि राजनाति करने का अंधियारा कायम रहे / भ्रांतियां विवेक को दूषित करती है / शिस्टाचार तर्क-विहीन नहीं है / शिस्टाचार भी इंसान के विकास के साथ सम्बंधित रही कुछ घटनायों में से उत्त्पतित होता है / इंसान के विकास के साथ साथ शिस्टाचार के तर्क भी बदलते हैं, और शिस्टाचार की मान्यताएं भी/

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