साम-दाम-दंड-भेद नीति के उद्गम के विषय में
बहुत कम ही लोग ये बात पकड़ पाएंगे कि "साम —दाम—दंड—भेद " की नीति भगवान रामचन्द्र की मर्यादा नीति के अति किए जाने से उत्पन्न जनाक्रोश और जनविरोध की प्रतिक्रिया है। कोई भी कल्याणकारी और सद्भाव नीति, जब जब वह चलन में आ जाती है, तब कोई न कोई वर्ग उसका अनिच्छित, अमान्य लाभ उठाने लग जाता है। और फिर ,ऐसे में समाज से लोगों का उस कल्याणकारी नीति से विश्वास ही नष्ट होने लगता है, और तब एक विरोधाभासी नीति भी कहीं न कहीं से उत्पत्ति में आ जाती है। मर्यादा नीति , जिसे भगवान रामचंद्र जी ने समाज में प्रथम बार पालन करके प्रचलन में लाया था, उसके अनुसार व्यक्ति स्व:इच्छा से अच्छे गुणों और कर्मों को सअक्षर —भावना (in letter and spirit) का पालन करता है। वह अपने वचन को इस हद तक निभाता था। जैसे कि रामचंद्र जी ने अपने पिता दशरथ के माता कैकई को दिए वचनों को पालन करने हेतु वन गमन किया था । और फिर, सअक्षर भावना पालन करने की दृष्टि से, अनुज भरत के वापस बुलाने के पर भी नहीं लौटे थे। अनुज लक्ष्मण और माता सीता का रामचंद्र जी के साथ में गमन, "अपने अपने धर्म को निभाने के लिए" , ये सभी कहानी के क्रम...