Posts

Showing posts from April, 2025

साम-दाम-दंड-भेद नीति के उद्गम के विषय में

बहुत कम ही लोग ये बात पकड़ पाएंगे कि "साम —दाम—दंड—भेद " की नीति भगवान रामचन्द्र की मर्यादा नीति के अति किए जाने से उत्पन्न जनाक्रोश और जनविरोध की प्रतिक्रिया है। कोई भी कल्याणकारी और सद्भाव नीति, जब जब वह चलन में आ जाती है, तब कोई न कोई वर्ग उसका अनिच्छित, अमान्य लाभ उठाने लग जाता है। और फिर ,ऐसे में समाज से लोगों का उस कल्याणकारी नीति से विश्वास ही नष्ट होने लगता है, और तब एक विरोधाभासी नीति भी कहीं न कहीं से उत्पत्ति में आ जाती है। मर्यादा नीति , जिसे भगवान रामचंद्र जी ने समाज में प्रथम बार पालन करके प्रचलन में लाया था, उसके अनुसार व्यक्ति स्व:इच्छा से अच्छे गुणों और कर्मों को सअक्षर —भावना (in letter and spirit) का पालन करता है। वह अपने वचन को इस हद तक निभाता था। जैसे कि रामचंद्र जी ने अपने पिता दशरथ के माता कैकई को दिए वचनों को पालन करने हेतु वन गमन किया था । और फिर, सअक्षर भावना पालन करने की दृष्टि से, अनुज भरत के वापस बुलाने के पर भी नहीं लौटे थे। अनुज लक्ष्मण और माता सीता का रामचंद्र जी के साथ में गमन, "अपने अपने धर्म को निभाने के लिए" , ये सभी कहानी के क्रम...

भारत का अपना, आंतरिक पश्चिमीकरण

आज भारत का सच ये है कि देश की आबादी का एक बड़ा तबका सोचता हैं कि आपको सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद ये सब सदाचरण, अच्छी बातें, वगैरह करनी चाहिए। उससे पहले नहीं। क्योंकि सत्ता कें शीर्ष पर तक पहुंचने के लिए तो सभी दुराचरण, धोखेधड़ी, बुरी बातें कहनी और करनी पड़ती है। यानी, वह मना तो नहीं कर रहा सदाचरण और अच्छी बातों से, मगर वह तबका दोगलेपन और धोखेधड़ी को अनैतिकता की सूची से बाहर निकाल देना चाहता है।  वह आपसे ये चाहता है कि आप अपने मन और मस्तिष्क से दुराचरण और दोगलेपन को, "आज की दुनिया में ज़िंदगी जीने के लिए आवश्यक हथियार" के तौर पर सही बात मान जाएं। मगर दुनिया का सच आज भी ये बना ही हुआ है कि यदि दुराचरण और दोगलेपन को व्यापक स्वीकार्यता प्राप्त हो जाती है, तब ये दुनिया रहने लायक नहीं बचेगी, इसी समाज और इन्हीं इंसानों के लिए ! अब दोनों बातें तो एक साथ संभव कतई नहीं हो सकती है। कि, दुराचरण और दोगलेपन को गलत भी नहीं माना जाए, और समाज के संतुलन और समाज को चलाने वाले मूलभूत आवश्यक धर्म को नष्ट भी न होने दें। तब फिर, आप बूझिए, कि क्या अर्थ हुआ एक बड़े तबके का? जवाब शायद एक शब्द मे...

किसी पेड़ की छांव में बैठ कर शेर बनना आसान होता है, खुद एक घनी छाव देने वाला पेड़ बना मुश्किल होता है

दुनिया भर के देशों में Right Wing वालों ने आगमन करते हुए अपने अपने देश को "वापस पुराने दौर जैसा" महान और शक्तिशाली बनाने का बीड़ा उठा लिया था। मगर जैसे ही अमेरिका में बस एक बार किसी right wing वाले नेता ने आ कर ऐसी कार्यवाही अपने देश को "वापस पुराने दौर जैसा" महान बनाने के लिए कार्यवाही क्या कर दी, पूरी दुनिया को गां@ड़ फट कर हाथ में आ गई ! तो सबक क्या मिलता है :— जब तक अमेरिका ने दुनिया में मानवता और नेकनीयत बनाए रखना का जोखिम उठाया था, सब के सब देश के RW नेता बड़े शेर बन कर दहाड़े मार रहे थे, मगर जैसे ही अमेरिका पीछे हटा, सभी को दुनिया में दुबारा से आपसी सहयोग करने के लिए आधारभूत आवश्यक मानवता और नेकनीयत को पुनर्वास कराने का।दर्द झेलने को पड़ने लगा है ! किसी दूसरे की मानवता और नेतनीयत की छांव तले शेर बनना आसान होता है, मगर जब खुद से मानवता और नेकनीयत का घना पेड़ बनने को आता है, तब सभी शेर औकात में आ जाते हैं

Politicians और Historians की दुश्मनी उतनी ही स्वाभाविक होती है जितना ऊंट और हाथी की

Politicians की Historians (इतिहासकारों) से विशेष दुश्मनी होती है। कपटनीतिज्ञ नेताओं की तो कुछ ज्यादा ही खास शायद इसलिए क्योंकि कपाटनीतिज्ञ नेता की चाहत रहती है कि जनता पिछली बातों को भुलाती रहे। ताकि कपाटनीतिज्ञ को मौके के अनुसार पलटी मारते रहने की सुविधा मिलती रहे। कोई भी आम व्यक्ति उसके दोगलेपन, दूतरफा कर्मों को आसानी से पकड़ नहीं पाए, और सवाल नहीं करे। और इतिहासकारों का तो पेशा ही होता है तारीख अनुसार बातों और बयानों को दर्ज करते हुए जनता को उनकी पुनःस्मृति करवा देना । इसलिए इन दोनों की दुश्मनी स्वाभाविक हुई। जैसे ऊंट और हाथी।