"आम आदमी" से क्या अभिप्राय है-- एक चिंतन


Original post on FB, dated 03Jan2014

असल में "आम आदमी" शब्द एक पर्याय है एक ऐसे समाज के व्यक्तियों के लिए जिसकी चारित्रिक विशेषताएं यही हैं जो नीचे लिखी हुई हैं । इसमें कोई शक नहीं है। शेक्स्पेअरे ने इन्हें "प्लेबेइअन"(= निचले तबके के लोग) कह कर बुलाया था और प्राचीन रोमन साम्राज्य में भी इन्हें ऐसे ही पहचाना गया था ।
मेरी समझ से समाज अपनी बौद्धिक जागृती और नैतिकता के आधार पर दो प्रकार से प्रकट होते हैं : 1) आत्म-जागृत समाज conscietious society , और 2)अनुपालक समाज compliant society।
 इन दोनों प्रकारों में अंतर और विशेषताएं क्या हैं?
 क्रमिक विकास की दृष्टि से अनुपालक समाज एक पिछड़ा स्वरुप है एक आत्म जागृत-समाज का । अनुपालक समाज किसी नेता, किसी स्वामी, किसी राजा के आदेशों का पालन करना चाहता है। वह स्वयं से, अपने अंतःकरण के आधार पर नैतिकता के विषयों को नहीं तय करता है। ऐसे समाज में नियम कोई अन्य लिखता है और जनता का कार्य होता है कि नियम को जान कर उसका पालन करे। यहाँ नियम-कानून साधारण ज्ञान का विषय नहीं है  जो की आप स्वयं अपने अंतःकरण की आवाज़ से स्वयं ही प्राप्त कर ले। अगर आप ऐसा करे करेंगे तब आपसे सवाल करा जायेगा- "तुमसे किसने कहा ?", "तुम्हे कैसे पता यह कहाँ लिखा है ?" , "तुम्हें किसने आजादी दी है अपनी मर्ज़ी से ऐसा करो?", इत्यादि।
 यहाँ के समाज का सत्य यह है की "भेजे की सुनेगा तो मरेगा कल्लू"।
आत्म जागृत समाज में साधारण विधि (common law) का न्याय चलता है ,और इस वजह से नियम का ज्ञान सभी को होता है। असल में नियम अंतःकरण के द्वारा स्वयं से भी प्राप्त करे जा सकते हैं और यह विधि न्यायालयों में मान्य होती है।
 आध्यातम और राजनैतिक विज्ञानं , दोनों, के ही समझ से एक आत्म जागृत समाज अधिक विक्सित होता हो। यह समाज अपने स्वभाव से प्रजातान्त्रिक होता है, और अंतःकरण की अधिक मान्यता के चलते इश्वर से अधिक नजदीक होता है। यह आवश्यक नहीं है की आदमी आस्तिक है या कि नास्तिक मगर यदि अंतःकरण की ध्वनि प्रबल है तो इस प्रशन की सार्थकता ही कम हो जाती है। फिर यह आराम से पंथ-निरपेक्ष भी हो जाता है। यह सत्य की अधिक तीव्रता से पहचानता है और स्वीकार करता है। यहाँ पाखण्ड न्यूनतम अथवा शुन्य होती है।
  हजारों सालों की  धर्मांध जीवन शैली जीने के बाद हमें यह तय करने की ज़रुरत है की हमे भविष्य में एक जागृत समाज निर्मित करना है या की एक अनुपालक समाज ही रह जाना है। स्वतंत्रता का अभिप्राय क्या होगा? मात्र यह की अंग्रेजो को धिक्कारना की उन्होंने भारत नाम की एक सोने की चिड़िया को लूट लिया ?
  वर्तमान के एक युवा राजनेता का मानना है की जनता को बहलाना अधिक आसान है , समझाना और निभाना मुश्किल। यह बात तो सही कह रहे हैं मगर चुनाव हमारा खुद का है की आसान काम करना है या मुश्किल।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फेयुड के अनुसार maturity का अर्थ है दीर्घ-काल, विस्तृत लाभ के लिए छोटे,लघु लोभ का त्याग। चुनाव हमारा होगा की एक विस्तृत, सर्व-विकास के लिए क्या हम तुरत-लाभ को त्याग करने को तैयार हैं। हम आसान रास्ता लेते है या कि मुश्किल भरा । जनहित, या की भ्रष्टाचार ?
 
केजरीवाल जी जब आम आदमी शब्द का प्रयोग करते हैं तब उनका अभिप्राय होता है वह व्यति जो की कोई राज नेता, कोई उच्च पदस्थ नौकरशाह, कोई बड़ा सेलिब्रिटी नहीं हो। इसमें आम आदमी को कोई बहुत गुणवान, चरित्रवान कहने का  का अर्थ नहीं होना चाहिए। सिर्फ उसकी योग्यता पर प्रकाश डालना है, कि आम आदमी थोडा अंतःकरण जीवित है। बाकी के लिए तंत्र को बचाव कार्य शुरू करना होगा।
  अनुपालक गुणों वाले भारतीय समाज का एक सत्य यह भी है कि यहाँ के जन-नायकों में भी कोई जागृति नहीं होती है। हालत यह है की यह उच्च-कुलीन खुद भी इतने ही बड़े तर्क-विहीन, अल्प-बौद्धिक लोग हैं जितना की यहाँ की जनता। बल्कि शायद आम जनता के लोगों में ज्यादा काबिल लोग है बनस्पस्त इस उच्च कुलीन लोगों के जो की मात्र अपनी जन्म की दुर्घटना से इन जन-नायक के सामाजिक हद तक पहुचें हुए हैं।
  जन नेत्रित्व करना कोई साधारण कार्य नहीं होता। यह समाज को दिशा देने का कार्य होता है। नेतृत्व करने में बहोत से व्यवहारिक गुणों की आवश्यकता होती है। इन गुणों में भाषा, संवाद , विचार, उदहारण से नेत्रित्व, इत्यादि - सब ही प्रयोग होते हैं। जनता का विश्वास जीतने के लिए पारदर्शिता की आवश्यकता होती है।
 क्या आपको लगता है की मौजूदा जन नायकों में यह गुण विद्द्यमान हैं - ख़ास तौर पर राजनेताओं में।
  इससे भी महतवपूर्ण बात यह है कि यह सब खुद भी नियमों का उतना ही उलंघन करते है जितना की अबोध अज्ञानी मुर्ख आम आदमी। फर्क यह है कि यह सब एक और नियम तोड़ कर या फिर तंत्र में भ्रष्टाचार ला कर खुद बच निकलते हैं और फसता मात्र यह आम आदमी ही है।
  संक्षेप में कहे तो यहाँ कोई भी नेत्रित्व हमारी सामाजिक अबोधता का निवारण करने का इरादा नहीं रखता है, सब इसका लाभ लेना चाहते हैं।

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