आरएसएस, भाजपा समर्थक, और मोदी भक्तों की मनोवृति को पालने वाली भूमि

आरएसएस द्वारा संचालित विद्यालयों की श्रृंखला, सरस्वती शिशु मंदिर , के अंदर के माहोल के बारे पढ़ कर बहोत कष्ट हुआ। वैसे भाजपा समर्थक , मोदी भक्त और आरएसएस के लोगों के तर्क, विचार और दृष्टिकोण को देख-समझ कर मुझे पहले ही संदेह हो रहा था की किसी असामाजिक, कट्टरपन्ति मानसिकता के परिणाम में ऐसे लोग इतनी बड़ी जनसँख्या में इस देश में खड़े हैं, और वह भी प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों तक पहुँच चुके हैं। एक सुनियोजित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से ही दुनिया के तमाम बदलावों को दरकिनार करके, विभिन्न धर्मों की नैतिकता और मूल्यों को धात दे कर ऐसी कुटिल(crooked) मानसिकताओं को प्राप्त किया गया है।
       गर्व और अभिमान में अंतर होता है। जो आरएसएस का प्राचीन वैदिक धर्म के बारे में दृष्टिकोण है वह अभिमान है, गर्व नहीं। आरएसएस की स्थापना और मुख्य सञ्चालन जाती-ब्राह्मणों के हाथों में रहा है, जो की स्वयं को दूसरे वर्णों से अधिक श्रेष्ट, बुद्धिमान और सिद्ध मानते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वह वर्ग जो की खुद अभिमान नाम के मनोविकार से पीड़ित लोग हैं। तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए की उनकी संस्थाओं ने भी जिस रूप के राष्ट्रवाद और नवयुग भारत की कल्पना करी है वह स्वयं भी अभिमान के मनोविकार से उत्पन्न साक्षत्कार है।
    अभिमानी व्यक्ति अकारण दूसरे से हिंसा करता है, क्रोध करता है, स्वयं को श्रेष्ट मानता है, विनम्रता नहीं रखता, दूसरे द्वारा दिए गए सम्मान व्यवहार को अपना अधिकार समझता है। यह सब असामाजिक आचरण हैं जिनसे कोई सभ्य समाज को स्थापित कर सकना संभव नहीं है।
    आरएसएस भी 'शक्तिशाली भारत' की कल्पना किसी परमाणू हथियारों से लेस देश से करता है जो की अपने प्रतिद्वंदी, जो की पाकिस्तान है, को मसल कर खाक कर देने को उत्तेजित दिखने में विकृत आनंद अनुभव करता है। नरेंद्र मोदी के भाषणों में, चरित्र में, वस्त्र में और सेल्फ़ी फ़ोटो लेने की आदतों में यही विकृत मानसिकता और उससे प्राप्त आनंद की लत दिखाई पड़ती हैं। भक्तों का यही हाल है। जाहिर है की वह बहु-मापदंड न्याय के अनुपालक है, और समानता को विकृत रूप में समझते हैं।
     आरएसएस के स्कूलों में जिस कदर वस्त्रों पर, मेल जोल पर, बात व्यव्हार पर रोकटोक होने का अहसास मिला, समझ में आ गया की यह मनोविकृत किस प्रकार इतनी बड़ी आबादी में उत्पन्न करी गयी है। आरएसएस के यह आचरण न सिर्फ स्कूल बल्कि बच्चों के घर तक और व्यक्तिजीवन प्रसारित है। लड़कियों को स्कूल के बाद भी जीन्स पहनने पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रताड़ना देकर एक व्यापक सन्देश दिया जाता है की व्यक्तिगत जीवन में स्कूल क्या चाहता है। लड़की लड़कों में मेल जोल स्कूल को सख्त नागंवारा है। टीचरों से, बड़े सहपाठियों से व्यवहार तक नियंत्रित किया गया है। दैविक आस्था को सांप्रदायिक प्रतीक बता कर कच्चे मस्तिष्क में ठूस दिया गया है।
    कोई आश्चर्य नहीं है की आरएसएस और भाजपा सेकुलरिज्म यानि पंथनिरपेक्षता के चरम विरोधी बन कर उभरे हैं। माना की कांग्रेस पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टिकरण किया था, मगर उसके प्रतिउत्तर में जो भाजपा और आरएसएस कर रहे हैं वह मध्य युग का अंधकार समाज को दुबारा अस्तित्व में ले आएगा। प्रजातंत्र और सेकुलरिज्म का सम्बन्ध अटूट होता है। उसके साथ छेड़खाड़ करने पर दूसरा स्वयं ही नष्ट हो जायेगा।
    चाहे जितना भी कोई देश अपने धर्म का अनुयायी दिखने की कोशिश कर ले, मगर वर्तमान युग सेकुलरिज्म का ही युग है। अभी दो माह पूर्व आयरलैंड देश में हुए समलैंगिकता के विषय पर हुए जनमतसंग्रह को स्मरण करें। आखिर कार आयरलैंड ,जो की एक गहरा, protestant ईसाई देश है, उसने समलैंगिकता को अप्राकृतिक, अकुदरती होने के मध्ययुगी नज़रिये को त्याग ही दिया। खुद पोप भी इस विषय में कैथोलिक ईसाइयों में बदलाव लाने के तैयार हो रहे हैं। आखिर कार सब राष्ट्र अपने संप्रदाय ज्ञान से प्रकिति और कुदरत की परिभाषा को नहीं पढ़ना चाहते हैं। यही सेक्युलरिम है।
    मगर लगता है की आरएसएस और भाजपा हमारे राष्ट्र को अपनी विकृत मानसिकता से आसानी से निवृत्त नहीं करने वाले हैं।

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