भाजपा समर्थक और आप पार्टी समर्थकों के चरित्र में क्या क्या अंतर हैं ?

भाजपा समर्थकों और आम आदमी पार्टी के समर्थकों के मध्य का बौद्धिक और भावनात्मक अंतर किसी औपचारिक अध्ययन के लिए रुचिकर विषय बन सकता है।
   मानव संसाधन के क्षेत्र में इन दोनों राजनैतिक पक्षों का दृष्टिकोण भिन्न भिन्न व्यवहार के प्रवहत करेगा, और दोनों पक्षों के समर्थक अपने व्यक्तिगत जीवन में अलग अलग किस्म के नेत्रित्व और कर्मचारी व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे।
    इस लेख का उद्देश्य इसी मानव संसाधन और प्रबंधन के क्षेत्र में एक चर्चा को आरम्भ करने का हैं।
   भाजपा के समर्थक अधिकाँश तौर पर परम्परागत सामंतवादी मानसिकता वाले लोग हैं जिनका मानना है की समाज पर सही और गलत दिशा निर्देशित सिर्फ डंडे के बल पर ही किया जा सकता है। हालाँकि यह प्रजातंत्र की प्रसिद्धि से अवगत हैं ,और इस कारण यह स्वयं को प्रजन्तान्त्रिक घोषित करने में कोई कौतुही नहीं बरतते, मगर अपने व्यवहार में यह सामंतवादी, "अनुशासन कारी", "सम्मान-संवेदित" लोग हैं जो की प्रजातंत्र के गुणों का पालन कतई नहीं करते हैं। वाद विवाद, बहस ,शास्त्रार्थ से तो यह कन्नी काटने वाले लीग हैं।
  मोदी और बेदी के व्यवहारों में इस विचार के प्रमाण खूब साक्षात होते हैं। मोदी जी ने विदेशी दौरों में अधिक समय व्यतीत किया है और संसद भवन में उपस्थिति बहोत न्यूनतम हैं। ठीक यही हाल उनके गृह राज्य गुजरात की विधान सभा का है, जो की वार्षिक उपस्थिति में समूचे देश में सबसे खस्ताहाल है। मोदी का खुद का किसी भी संसदीय विचार विमर्श अथवा डिबेट में प्रतिभाग सबसे खराब हैं।
   प्रजातंत्र तो बना ही है शास्त्रार्थ और डिबेट के माध्यम से चलने के लिए। संसद भवन जो की किसी भी प्रजातंत्र का मंदिर माना जाता है, उसका उद्देश्य ही है की वह स्थान बने जहाँ पर निति निर्माण से सम्बंधित विचार विमर्श और डिबेट्स करी जा सकें। अब अगर यह लोग डिबेट्स और चिंतन वार्ता से ही भागते है तब यह प्रजन्तंत्र के कैसे संचालित करेंगे ??
  इस पहेली का उत्तर यही है की भाजपा समर्थक लोग प्रजन्तंत्र को मात्र एक ढोंग करके ही चला रहे है जो की वास्तव में तानाशाही और मनमौजी गिरी है।
   संसद को न चलने देने का आपसी दोषारोपण दोनों में से किसी को दोषमुक्त नहीं कर सकता है। भाजपा ने अपने विपक्ष के कार्यकाल के दौरान कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया था। और अभी आज कल तो नेता विपक्ष कोई है ही नहीं। अल्पमत पक्षों के हल्ले शोरगुल से दीर्घमत पक्ष के हितों की अवहेलना कतई भी संसदीय बहस को नज़रअंदाज़ कर देने का कारण मानी जा सकती है। आर्डिनेंस (राष्ट्रपति अध्यादेश) के रास्ता हमारे प्रजातंत्र के पतन और नष्ट होने का प्रमाण है। यह वस्तुतः एक आपातकालीन परिस्थिति के समान हैं।
   गौर करने की बात है की भाजपा की सरकार के कार्यकाल में यही सब हो रहा है। इससे हमें भाजपा और उसके समर्थकों के मानव संसाधन कौशल का पता चलता है।

दूसरा विषय होगा - न्याय और प्रमाण परिक्षण की योग्यता। भाजपा में वकीलों की कोई कमी नहीं है, मगर इसमें से एक भी जनहित कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद तो खुद कॉर्पोरेट वकील रहे है जो की आजीवन बड़े औद्योगिक घरानों के हितों की रक्षा के लिए जाने गए हैं। वही से इन वकीलों ने अपनी व्यक्तिगत पूँजी बनाई है, और यदि आम आदमी पार्टी के खुलासों का विश्वास करें तो रविशंकर प्रसाद तो संसद सदस्य बनने के बाद भी रिलायंस घराने के हितों के लिए काम कर रहे थे, जिसके लिए उनकों भुगतान भी प्राप्त था।
  भाजपा समर्थकों ने कंप्यूटर तकनीक के माध्यम से सोशल मीडिया में मिथ्या और भ्रम की जानकारी को भर दिया है। ऐसा करने का उद्देश्य संभवतः साधारण नागरिक, जो की वैधानिक विषयों में इतने प्रवीण नहीं होते हैं, वह सही और प्रमाणित जानकारी से गुमराह रहे और मतदान सम्बंधित उचित निर्णय न ले सकें।
  इसके मुकाबले आम आदमी पार्टी तो निर्भर ही rti कार्यकताओं पर है और जनहित प्रवक्ता इस पार्टी की रीढ़ हैं। आप पार्टी के समर्थकों में प्रमाण परीक्षण की योग्यता भाजपा समर्थकों से बेहतर है। वह निष्कर्ष, निर्णय और न्याय में अधिक प्रवीण है। वह अधिक चिंतनशील है। उनके न्याय अधिक स्थिर है, uniform तथा दीर्घकाल में समान बने रहते हैं। आप समर्थक दार्शनिक गुणों के द्वारा प्रत्ययों में समानता और भिन्नता कर सकने में अधिक कुशल हैं। संक्षेप में कहे तब आप समर्थकों में बौद्धिकता, मानवता और इन सब का केन्द्रीय गुण -अंतरध्वनि - अधिक विक्सित है।
   भाजपा समर्थक लोग अपने द्विअर्थी न्याय को अपनी चपलता के माध्यम से छिपाने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। इसलिए वह मनोरंजन, हास्य, उपहास परिहास का अधिक प्रयोग करते दिखेंगे। अधिकाँश भाजपा समर्थक वह लोग है जो की भारत के अविकसित सामाजिक न्याय के वातावरण में जन्मे ,इसके दोषों से परिपूर्ण लोग हैं। उनको पता ही नहीं है की उनके अपने व्यवहारों में अपने वातावरण में से संक्रमित क्या क्या दोष हैं।
   अधिकाँश भाजपा समर्थकों को यदि हम कोई प्रमाणिक कार्यपत्र(दस्तावेज़) दें तब वह इस प्रमाण की सत्यता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते नज़र आएंगे। यानि 'प्रमाण की प्रमाणिकत' को सुलझा न सकना इनकी सबसे प्रथम न्यायायिक असक्षमता ,अयोग्यता है। भाजपा समर्थक लोग सामाजिक विश्वास के संग्रहकर्ता (respository of public trust) जैसे विचारों को समझने में अयोग्य हैं। इसलिए यह न्यायायिक क्रिया को "प्रमाण की प्रमाणिकता" की दिशा में ले जाकर अंत में अन्याय को विजयी करा देते हैं। यह एक सुव्यवस्थित समाज का निर्माण अथवा प्रयास कभी भी नहीं करने वाले लोग हैं। बदले में यह सिर्फ मृगतृष्णा या द्विःस्वप्न के माध्यम से ही समाज को दिशा नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। वास्तविकता वक्रता क्षेत्र (reality distortion field) के उपयोग से यह जनमानस के अंतरमन को भ्रमित रखने में विश्वास करते हैं।

  

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